मुश्ताक अहमद यूसुफी: चली गई व्यंग्यों की चुटीली दुनिया की खट्टी-मीठी चुभन

मुश्ताक अहमद यूसुफी को साहित्यकार और शायर घेरे में लिए रहते थे और सब की यही ख्वाहिश होती कि यूसूफी या तो किसी कार्यक्रम में शामिल हो जाएं या उनकी किसी किताब की समीक्षा लिखकर किताब को अमर कर दें या फिर किसी किताब के फ्लैप के लिए ही कुछ बातें लिख दें।

फोटोः सोशल मीडिया
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उर्दू के लोकप्रिय साहित्यकार मुश्ताक अहमद यूसुफी का लंबी बीमारी की वजह से 94 साल की उम्र में 20 जून को कराची में निधन हो गया। मुश्ताक अहमद यूसुफी के चुभते लेख, समाज और इंसानी सोच पर गहरी नजर, उर्दू सभ्यता से जुड़ी कई नई रिवायतों को जन्म देना, उर्दू साहित्य में उनके ऊंचे स्थान की गवाही देती हैं। उनकी प्रकाशित किताबों में ‘चराग तले’, ‘खाकम बा दहन’, ]जरगुजश्त’, ‘आब-ए-गम’ और ‘शाम शेरे यारां’ थीं। उर्दू साहित्य में अहम योगदान के लिए मुश्ताक अहमद यूसुफी को पाकिस्तान सरकार की ओर से 1999 में ‘सितारा-ए-इम्तेयाज’ और 2002 में ‘हिलाल-ए-इम्तेयाज’ से नवाजा गया था।

मुश्ताक अहमद यूसुफी 4 सितंबर 1923 को जयपुर में पैदा हुए थे। वह एक बैंक अधिकारी थे। उर्दू साहित्य में, उन्हें उनकी अनूठी और बेहद नई शैली में व्यंग्य और हास्य की रचना की वजह से पहली पंक्ति के साहित्यकारों में गिना जाता है।

मुश्ताक अहमद यूसुफी के पिता जयपुर में ग्रेजुएशन तक शिक्षा हासिल करने वाले पहले मुसलमान थे। मुश्ताक यूसुफी का परिवार 1956 में पाकिस्तान चला गया था और उनका ज्यादातर वक्त वहां कराची में गुजरा।

मुश्ताक अहमद यूसुफी: चली गई व्यंग्यों की चुटीली दुनिया की खट्टी-मीठी चुभन

उर्दू शायरी की रवायत रही है कि किसी मुशायरे की अध्यक्षता हमेशा कोई शायर ही करता है। लेकिन इसके बावजूद मुश्ताक अहमद यूसुफी की उर्दू भाषा पर पकड़ और उर्दू साहित्य में उनके कद की वजह से अक्सर मुशायरों की अध्यक्षता उन्हें दे दी जाती थी। साल 2007 में भी मुश्ताक अहमद यूसुफी को ऐसी ही एक शेरो शायरी की महफिल की अध्यक्षता दी गई। कराची के मशहूर डिफेंस इलाके में आयोजित शायरी की इस निजी महफिल में शहर भर के शायर मौजूद थे, इसके बावजूद कार्यक्रम की अध्यक्षता मुश्ताक यूसुफी को सौंपी गई।

उसी महफिल का एक मजेदार वाकया है। हुआ यूं कि मुशायरे में कुछ नये शायर भी थे, इसलिये तय हुआ कि सभी लोग अपना-अपना परिचय करा दें। शुरुआत करते हुए मशहूर शायर मोईन खालिद ने अपना परिचय देते हुए कहा, “मेरा नाम खालिद मोईन है और मेरा संबंध जंग ग्रुप से है।” इसके बाद उनके बराबर में बैठे राशिद अनवर ने अपना परिचय देते हुए कहा, “मेरा नाम राशिद अनवर है और मेरा संबंध नवाए वक्त ग्रुप से है।” इसके बाद बारी आई उनके आगे बैठे मुश्ताक यूसुफी की। अपना परिचय देते हुए उन्होंने कहा, “मेरा नाम मुश्ताक अहमद यूसुफी है और मेरा संबंध किसी ग्रुप से नहीं है।” उनकी इस बात पर चारों तरफ से वाह-वाह का शोर मचने लगा और वहां मौजूद सभी शायर एक लम्हे में हर ग्रुप से जैसे आजाद हो गए।

यूसुफी साहब को आमतौर पर साहित्यकार और शायर अपने घेरे में लिए रखते थे और सब की यही ख्वाहिश होती कि यूसुफी या तो किसी कार्यक्रम में शामिल हो जाएं, उन की किसी किताब की समीक्षा लिखकर उस किताब को अमर कर दें या किसी किताब के फ्लैप के लिए ही कुछ बातें लिख दें।

मुश्ताक अहमद यूसुफी उर्दू जबान और अदब का एक ऐसा सितारा थे, जो एक लंबे अरसे तक अहदे यूसुफी बनकर चमकता रहेगा। आइये मुश्ताक अहमद यूसुफी की कलम से निकले कुछ चुटीले जुमलों पर एक नजर डालते हैं।

  • मर्द की आंख और औरत की जबान का दम सबसे आखिर में निकलता है।
  • लफ्जों की जंग में फतह किसी भी फरीक की हो, शहीद हमेशा सच्चाई होती है।
  • जो देश जितना गरीब होगा, उतना ही आलू और मजहब का चलन ज्यादा होगा।
  • दुश्मनों के तीन दर्जे हैः दुश्मन, जानी दुश्मन और रिश्तेदार।
  • मुसलमान किसी ऐसे जानवर को मुहब्बत से नहीं पालते जिसे जिबह करके खा न सकें।
  • मुहब्बत अंधी होती है, लिहाजा औरत के लिए खूबसूरत होना जरूरी नहीं, बस मर्द का नाबीना (अंधा) होना काफी होता है।
  • बुढ़ापे की शादी और बैंक की चौकीदारी में जरा भी फर्क नहीं, सोते में भी एक आंख खुली रखनी पड़ती है।
  • आदमी एक बार प्रोफेसर हो जाए तो उम्र भर प्रोफेसर ही रहता है, चाहे बाद में समझदारी की बातें ही क्यों ना करने लगे।
  • नाई की जरूरत सारी दुनिया को रहेगी जब तक कि सारी दुनिया सिक्ख धर्म ना अपना ले और सिक्ख ऐसा कभी होने नहीं देंगे।

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