आज के दिन निकला था ‘चौदहवीं का चांद’

वहीदा रहमान उन चंद अदाकाराओं में से एक हैं जो अपनी जाति और फिल्मी जिंदगी को अलग रखने में कामयाब हुयीं।

फोटो: सोशल मीडिया 
फोटो: सोशल मीडिया
user

प्रगति सक्सेना

वहीदा रहमान उन चंद अदाकाराओं में से एक हैं जो अपनी जाति और फिल्मी जिंदगी को अलग रखने में कामयाब हुयीं। पिता की मौत के बाद उन्हें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा और बहुत छोटी उम्र में उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में काम शुरू कर दिया।

वे मुस्लिम और तमिल तहजीब की नफीस मिसाल हैं। भरतनाट्यम में माहिर वहीदा ने एक इंटरव्यू में यह माना था कि उन्हें डांस करने और कैमरा फेस करने में कोई हिचक नहीं होती थी। नर्तकी रही थीं इसलिए चेहरे पर भाव भंगिमाएं लाने में भी कोई दिक्कत नहीं। लेकिन संवाद बोलते वक्त वे घबरा जातीं। बरसों पहले एक इंटरव्यू में उन्होंने यह बात कबूली भी थी कि जब साउंड रिकार्डिस्ट सेट पर उन्हें डायलॉग्स जरा जोर से बोलने के लिए कहा जाता तो वे नर्वस हो जातीं। उन्हें हमेशा ऐसा लगता कि उनकी आवाज खराब और बहुत कमजोर है।

आज के दिन निकला था ‘चौदहवीं का चांद’

वहीदा और गुरुदत्त के रिश्तों को लेकर अक्सर फिल्म इंडस्ट्री और उसके बाहर तरह-तरह के कयास लगाए जाते रहे हैं। लेकिन एक बात तय है कि गुरुदत्त पर वहीदा की संजीदगी और शालीनता का काफी असर होता था और उनके बेचैन मिजाज के लिए वे एक राहत की तरह थीं। खुद वहीदा ने यह माना है कि गुरुदत्त शूटिंग के दौरान तकनीकी लोगों के साथ बहुत अधीरता से पेश आते थे। उन्हें लगातार सब्र रखने और शांत रहने के लिए कहा जाता था।

शुरूआती दिनों में वहीदा और गीता दत्त में भी घनिष्ठता थी। बल्कि यह भी कहा जाता है वहीदा की शख्सियत को नफीस और आकर्षक बनाने में गीता दत्त ने काफी योगदान दिया। वहीदा उन दिनों एक टीन एजर ही थीं। उनकी शख्सियत को संवारने के लिए जिस ग्रूमिंग की जरुरत थी, वह उन्हें गीता दत्त की सोहबत में ही मिली।

वहीदा ने अपने उस इंटरव्यू में एक बहुत ही दिलचस्प वाक्या फिल्म ‘चौदहवीं का चांद’ के बारे में सुनाया। यह फिल्म गुरु दत्त ने ‘कागज के फूल’ के फ्लॉप हो जाने के बाद बनायी और वे इस रोमांटिक फिल्म में मसाला डालने के लिए इसके मुख्य गाने को रंगीन (कलर) फिल्म में फिल्माना चाहते थे। उन दिनों रंगीन फिल्में बनना शुरू ही हुयी थीं।

आज के दिन निकला था ‘चौदहवीं का चांद’

ब्लैक एंड वाइट में बेहतरीन लगने वाले गाने ‘चौदहवीं का चांद हो..’ जब रंगीन रूप में सेंसर बोर्ड के पास पहुंचा तो बोर्ड ने कहा कि यह गाना बहुत ‘हॉट’ है। जिसको सुनकर गुरुदत्त बहुत हैरान हुए। ब्लैक एंड वाइट में तो यह गाना ठीक लगा था फिर रंगीन में ऐसा क्या हो गया? सेंसर बोर्ड का तर्क था कि कलर्ड संस्करण में वहीदा की आंखें लाल हो गयीं हैं। जिससे वे बहुत कामुक लग रही हैं। गुरुदत्त सेंसर की इस प्रतिक्रिया पर बहुत हंसे।

वहीदा को सह-कलाकार की हैसियत से देव आनंद बहुत पसंद थे। दोनों ने साथ-साथ बहुत हिट फिल्में भी कीं। गाइड में अगर कोई नायिका के उलझे और इंटेंस किरदार को निभा सकता था तो वो सिर्फ वहीदा ही थीं, यह बात देव आनंद अच्छी तरह जानते थे। फिल्म गाइड में निर्देशक विजय आनंद ने दो नए प्रयोग किये। एक उन्होंने लगभग एक ही धुन पर दो गाने फिल्माए, एक गाना उदासी का और दूसरा उल्लास का और दूसरे गाने को स्थायी से शुरू ना कर, अंतरे से शुरू करना।

आज के दिन निकला था ‘चौदहवीं का चांद’

गाइड एक सफल फिल्म रही। वहीदा भी एक सफल और मशहूर अदाकारा रहीं। लेकिन उन्होंने भी अपनी सबसे अच्छी दोस्त नंदा की तरह अभिनय को महज एक काम ही समझा, उसे अपनी निजी जिन्दगी पर हावी नहीं होने दिया। यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है कि करोड़ों लोगों की मनपसंद अभिनेत्री होने के बावजूद वहीदा ने निजी ज़िन्दगी का लोगों के बीच कोई तमाशा या दिखावा नहीं किया। जिस तरह नंदा मनमोहन देसाई से अपने रिश्ते को लेकर कभी कुछ खास नहीं बोलीं, उसी तरह वहीदा भी गुरुदत्त से अपने रिश्ते को लेकर चुप ही रही हैं। यही इन रिश्तों की खूबी है। सफल हों या असफल, इनके बारे में हम इतना ही जानते हैं कि इन रिश्तों की बदौलत हमें कुछ बेहद खूबसूरत फिल्में और बेहतरीन अदायगी देखने को मिली। उन रिश्तों को लेकर खामोशी बरकरार रखना ही वहीदा जैसे अभिनेताओं की क्रियेटिव आजादी है और उनकी शालीनता और गहनता का परिचायक भी।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia


Published: 03 Feb 2018, 6:28 PM