अमेरिका में 18 स्टेटस में परफॉर्म कर सकता हूं, इंडिया में 4 में भी नहीं, कुणाल कामरा से हास्य की भूमिका पर बातचीत

राजस्थान में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में शामिल हुए कुणाल कामरा और कन्याकुमारी से कश्मीर की इस पदयात्रा में भाग ले रहे योगेंद्र यादव ने हास्य की भूमिका पर बातचीत की।  

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

राजस्थान में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में शामिल हुए कुणाल कामरा और कन्याकुमारी से कश्मीर की इस पदयात्रा में भाग ले रहे योगेंद्र यादव ने हास्य की भूमिका पर बातचीत की। ऐसे समय जब नाखुश सरकारी अफसर खुद को ‘संघी’ दिखाने के लिए वैसे ही पोस्ट वाट्सएप पर फॉरर्वड कर रहे हैं, लोग सफेद झूठ पर भी प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं, यह हास्य ही है जिसमें उम्मीद की किरण दिख रही है। बातचीत के अंश:     

योगेंद्र यादवः आज हमारे साथ खास मेहमान हैं कुणाल कामरा। आज से दो-तीन साल पहले इन्होंने मेरे साथ शो किया था। मुझे और जावेद अख्तर साहब को बैठाकर बड़े टेढ़े-टेढ़े सवाल पूछे थे, तो मैंने कहा कि उसका बदला लूंगा। अब कुणाल कामरा सवाल पूछेंगे नहीं, जवाब देंगे। मैं बिल्कुल टीवी वालों की तरह पूछूंगा। तो मेरा पहला सवाल है कि कुणाल कामरा भारत जोड़ो यात्रा में क्या कर रहे हैं?

कुणाल कामराः अगर टीवी वाले अपना काम करें, तो हम घर बैठकर मजा करें। टीवी वाले अपना काम नहीं कर रहे हैं। पहले मैं यात्रा में 8 दिसंबर को आया। कन्हैया से मिला, थोड़ा यात्रा को आब्जर्व किया कि लोग क्या, क्यों और कैसे जुड़ रहे हैं। करीब एक सप्ताह बाद समझ में आया कि अगर अब भी सोचा कि हम तो न्यूट्रल हैं, कांग्रेस के साथ नहीं जुड़ सकते, तो ठीक नहीं होगा। हम सैद्धांतिक तौर पर तो हमेशा से ही जुड़े रहे हैं। यात्रा से नहीं जुड़ने का कोई कारण नहीं।

मतलब आप हमेशा से कांग्रेसी रहे हैं। लगा दें ब्रेकिंग कि कुणाल कामरा ने माना कि हमेशा से कांग्रेसी थे, छद्म कांग्रेसी।

चाहे लेफ्ट हो, चाहे समाजवादी पार्टी। सब तो कांग्रेस से ही रिवोल्ट करके आगे गए हैं। कांग्रेस का विरोध भी बहुत किया है। पर एक विपक्ष के साथ ऐसे टाइम में खड़े होना भी तो लोकतांत्रिक होगा जब कोई नहीं खड़ा हो रहा। सोशल मीडिया पर एक फॉलोईंग के साथ सोशल रिस्पांसिबिलिटी भी आती है कि हां, कांग्रेस का विरोध तो बहुत किया लेकिन अब यात्रा को नहीं सपोर्ट करने का कोई कारण नहीं है।

लोग कहते हैं कि कुणाल कामरा का अब शो तो होता नहीं इंडिया में। अब बेचारा और क्या करे। इंप्लाइमेंट ढूंढ़ रहा है भारत जोड़ो यात्रा में आकर।

नहीं, नहीं। शो करने जाता हूं न बाहर। डॉलर जोड़ो यात्रा। उसका रेट बड़ा है। शो की तो कोई दिक्कत नहीं है। फरवरी में यूके जा रहा हूं। अप्रैल के अंत में ऑस्ट्रेलिया जाऊंगा।

मतलब बाहर डॉलर कमाएं और देश में क्रांति।

वही तो, देश में कमा सकते, तो बाहर जाने की इतनी जरूरत नहीं पड़ती। मुझे तो कोई मजा नहीं आ रहा है हर छह महीने मेरा डॉक्यूमेंट समिट करके वीजा के लिए रुककर, बायोमेट्रिक का स्टैंप लगाकर बाहर जाएं। वह तो करना पड़ रहा है। अमेरिका में 18 स्टेट्स में परफॉर्म कर सकता हूं और इंडिया में चार में भी नहीं।

अच्छा, चार भी नहीं हैं इंडिया में!

कहां हैं? केरल को तो गिनिए मत। वहां तो लोग सुनने नहीं, सुनाने आते हैं। बाकी कौन-सा स्टेट बचा है। बहुत कम जगहें बची हैं कॉमेडी के लिए। मुंबई में अभी नहीं कर रहे हैं झगड़ा। पर अब मनमुटाव है।


अब तो सरकार बदल गई है वहां। क्या हाल है?

पर जब इनकी सरकार थी भी न 2014 से 2019 तक। तब भी ये ज्यादा नहीं करते थे मुंबई, पूना में। असल में महाराष्ट्र वह जगह है जो हर आइडियोलॉजी बराबर से एक्सेप्ट करके चलती है। आप देखेंगे कि जो भी इंडिया की आइडियोलॉजीज है, उसमें काफी महाराष्ट्र से ही निकले हुए लोग हैं। महाराष्ट्र में प्राब्लम नहीं हुई है, पर कब होना चालू हो जाए, पता नहीं। अगर आप कॉमेडी कर ही रहे हो, तो सम प्लाइंट आप इनको डिस्टर्ब करोगे ही, नहीं तो खुद डिस्टर्ब हो जाओगे। 

थ्योरी ये है सिम्पली कि दुनिया में जहां भी डिक्टेटर होता है, उसे किसी आंकड़े से कोई समस्या नहीं होती। कह दीजिए कि किसान की इनकम डबल होने की बजाय कम हो गई, कोई फर्क नहीं पड़ता। डिक्टेटर को तर्क से कोई फर्क नहीं पड़ता। डिक्टेटर को सिर्फ एक चीज से डर लगता है और वह है कॉमेडी और खास तौर पर उस डिक्टेटर को जो खुद भी जोकर हो।

जो अपने आप को बहुत सीरियसली लेते हैं, वे कॉमेडी के फैन ही नहीं हो सकते क्योंकि कई बार कॉमेडी उनकी लाइफ की च्वाइसेस को भी अपने तरीके से प्रस्तुत करती है। चाहे वह कॉरपोरेट कल्चर हो, चाहे वह एक मोनार्क हो उसको भी कॉमेडी डिस्टर्ब करेगी। और ये सब जो हैं फाइनली तो भाजपा के साथ ही चिटकते हैं। जो अपनी पॉलिटिकल लाइफ में डेमोक्रेटिक नहीं होंगे। तो कॉमेडी और भाजपा आपस में पोलर अपोजिट हैं।

जहां-जहां डिक्टेटर होता है, कॉमेडी से डरता है। बाकी किसी से नहीं। मेरे जैसे लोग बोलते रहें, कोई फर्क नहीं पड़ता। ठीक है यादव जी बोलते हैं, ज्यादा बोलते हैं। कभी-कभी कहते हैं कि यादव जी बहुत अच्छा बोलते हो आप। आप बड़े शरीफ हो, बड़ी अच्छी बातें करते हो, वैसे आप गलत साइड पर हो। लेकिन कोई बात नहीं। मुझसे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। आपकी बात सुनकर तिलमिलाते हैं, बौखलाहट होती है, कुछ चिढ़ मचती है।

क्या होता है कि कॉमेडी में कोई भी बात चिटक जाती है। जैसे मैं कभी फ्लाइट में जा रहा होता हूं या एयरपोर्ट पर चल रहा होता हूं, तो एक बंदा चिल्लाकर बोल देगा कि अंबानी को ही बना देते पीएम। तो वह लाइन चिटक जाती है। वह ऐसा नैरेटिव बना देती है। कॉमेडी से ही तो इन्होंने कांग्रेस को इतने टाइम से टैकेल किया हुआ है। एक कॉमिक इमेज बनाकर ही तो चले हैं।

कॉमिक इमेज बनाने के सौ तरीके हैं। बताइए, कौन आदमी है जो दिन में पांच बार कपड़े बदलता होगा, कौन आदमी है जो अपनी मां को मिलने के लिए छह कैमरामैन लेकर जाए। मतलब उससे बड़ा जोकर वाला काम मुझे तो लगता नहीं। फोटो आती है कि खाली गुफा में मोदी जी हाथ हिला रहे हैं। मतलब स्ट्रैंज टाइप आफ पर्सन। एम्बुलेंस वाला नाटक कर रहे हैं। जनता को दिखता नहीं कि आदमी ऐसा नाटक कर रहा है। कोई बंदा इनका इंटरव्यू करने गया, दूरदर्शन का था। अब वह दूरदर्शन में नहीं है, तो बता सकता हूं। कहा कि प्राइममिनिस्टर ने 15 मिनट तक कैमरे का एंगल हमें बताया। यहां से नहीं, वहां से, लाइट उधर से ऐसे लगाओ। बताओ, क्या ये लोग नहीं देखते।

राजा बाबू का वह सीन याद आता है- लायर बने हैं, जज बने हैं। राजा बाबू करते क्या हैं। वैसे ही है इनका। देखिए न आप गाड़ी में बैठे हैं, हम गाड़ी में बैठे हैं। गाड़ी के अंदर क्या स्ट्रांग लाइट कि जैसे कोई प्रकट हुआ हो। क्या लाइट लगाई है। ये दिखता है लोगों को।

मुझे लगता है कि एक दिन ऐसा आएगा, वह एक कहानी है न कि बच्चे ने कह दिया और सारे दरबारी मुंह हिला रहे थे कि हां जी, बड़े अच्छे कपड़े हैं लेकिन बच्चे ने कह दिया कि ये तो नंगा है। मुझे लगता है कि ऐसा समय आएगा कि घर-घर में बच्चा बोलेगा कि ये तो झूठा है।

अभी दो दिन पहले वे मेट्रो में संडे को स्कूली यूनिफार्म पहनाकर बच्चों को घुमा रहे थे। कौन-सा स्कूल है जो संडे को खुला रहता है। दिख तो रहा है सबको पर होगा जब तब होगा। बस उस दिन के लिए हम इंतजार करेंगे जब भारत में 26 जगह शो हो सके, चार को छोड़कर।

बात करते-करते मैं कनविंस होने लगा। मैं भूल गया वो जर्नलिस्ट वाला सवाल। तो ये बताओ क्या कुणाल कामरा कांग्रेस से टिकट लेने का कुछ कर रहे हैं।

ये डिक्लेयर्ड है। न ही पॉलिटिक्स ज्वाइन करूंगा, न टिकट लूंगा। आब्जेक्टिविटी खत्म हो जाएगी। हम अपने फील्ड में एक्सेल करें। मुझे जोक सुनाना आता है, वह भी मैं टॉप फाइव में अभी हूं नहीं... आ जाऊंगा कभी न कभी।


मैं हमेशा कहता हूं हर जोक के पीछे एक कॉमेडी होती है।

सफरिंग प्लस टाइम इज कॉमेडी। गोल्डेन रूल है। जो भी हमारे कमेडियन्स हमको इंसपायर करते हैं वे बोलते हैं कि तुम जो आज जी रहे हो, दो साल के बाद उस पर बढ़िया जोक लिख सकोगे। इंडिगो ने बैन कर दिया छह महीने के लिए, उस पर बढिया जोक लिखना। सुप्रीम कोर्ट ने कांटेम्प्ट डाल दिया, दो साल बाद बढ़िया जोक लिखना।

ऐसा झूठा प्रधानमंत्री कभी नहीं देखा। यह एक लाइन पता नहीं कितनी मिलियन बार चल चुकी है। झूठ की तो इंतिहा हो गई है। झूठ भी हो गया इस देश में और टाइम भी हो गया। जोक कब आएगा।

ये जाएं। जैसे कांटेन्ट बन रहा है 2004 से 2014 के बीच हुआ है उस पर। तो ये जाएंगे तो कांटेन्ट बनेगा जो 2014 से 2024 के बीच हुआ होगा उस पर। लोग भी नहीं समझ रहे और मीडिया भी नहीं समझ रहा। सब इंस्टीट्यूशन एक-एक करके कोलैप्स कर रहे हैं। ज्यूडीशियरी का हाल देखिए।

कुल मिलाकर जो चीज आती है वह निराशाजनक है।

इलेक्शन फ्रॉड इंडिया में पछली बार कब कोर्ट में गया था। इंदिरा गांधी के टाइम में। उसके बाद अब तक नहीं गया, तो क्या इलेक्शन एकदम सही चल रहा है देश में। नहीं चल रहे होंगे। वह तो दिख रहा है। इलेक्शन कमीशन कहां है?

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