जॉनी वॉकर...जो शराब के नाम से हुए मशहूर, सिल्वर स्क्रीन पर ताउम्र बने शराबी, लेकिन कभी भी शराब को नहीं लगाया हाथ

गुरुदत्त नें उनका नाम बदरुद्दीन जमालुद्दीन क़ाज़ी से बदलकर जॉनी वॉकर रखा। जोकि एक ब्रांडेड व्हिस्की का नाम था। साथ ही गुरुदत्त ने जॉनी वॉकर को अपनी फ़िल्म बाज़ी में एक शराबी का रोल भी दिया।

हिंदी सिनेमा के मशहूर हास्य अभिनेता जॉनी वॉकर की आज 20वीं पुण्यतिथि है।
हिंदी सिनेमा के मशहूर हास्य अभिनेता जॉनी वॉकर की आज 20वीं पुण्यतिथि है।
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अतहर मसूद

हिंदी सिनेमा के मशहूर हास्य अभिनेता जॉनी वॉकर की आज 20वीं पुण्यतिथि है। ऐ दिल है मुश्किल, जीना यहां और सर जो तेरा चकराए जैसे मस्ती और कॉमेडी से भरे गानों के जरिए जॉनी वॉकर आज भी लाखों दिलों में मौजूद है। जॉनी वॉकर ने ही हिंदी सिनेमा में कॉमेडियन का किरदार रखने की परंपरा शुरू की थी। हिंदी सिनेमा में यूं तो बहुत से हास्य अभिनेता हुए लेकिन जॉनी वॉकर की बात ही कुछ और थी।

जॉनी वॉकर की पैदाइश 11 नवंबर 1926 को मध्य प्रदेश के इंदौर में हुई थी। उनका असल नाम बदरुद्दीन जमालुद्दीन क़ाज़ी था। उनके पिता इंदौर की एक मिल में काम करते थे। जब उनकी नौकरी चली गई तो वह अपने परिवार के साथ बॉम्बे जाकर बस गए। बॉम्बे में जॉनी वॉकर नें अपने पिता का हाथ बटाने के लिए बस में कंडक्टर की नौकरी करनी शुरू कर दी। वह बस में यात्रियों से मज़ाकिया लहजे में बात करते के साथ मिमिक्री भी किया करते थे।

एक दिन उनकी बस में उस दौर के मशहूर फ़िल्म अभिनेता बलराज साहनी सफ़र कर रहे थे। उन्होंने जॉनी वॉकर को बस में कॉमेडी और मिमिक्री करते हुए देखा। बलराज साहनी को जॉनी वॉकर की कॉमेडी और मिमिक्री बहुत पसंद आई। बलराज साहनी उन्हें लेकर मशहूर फ़िल्म अभिनेता और निर्माता-निर्देशक गुरुदत्त के पास पहुंचे। उस वक़्त गुरुदत्त अपनी फ़िल्म बाज़ी बना रहे थे। जॉनी वॉकर नें गुरुदत्त के सामने अपनी शराबी की एक्टिंग पेश की। गुरुदत्त को उनकी शराबी की एक्टिंग बहुत पसंद आई। उसी वक़्त गुरुदत्त ने उनका नाम बदरुद्दीन जमालुद्दीन क़ाज़ी से बदलकर जॉनी वॉकर रख दिया। जोकि एक ब्रांडेड व्हिस्की का नाम था। साथ ही गुरुदत्त ने जॉनी वॉकर को अपनी फ़िल्म बाज़ी में एक शराबी का रोल भी दे दिया, जोकि साल 1951 में रिलीज़ हुई।

फ़िल्म बाज़ी के बाद जॉनी वॉकर नें गुरुदत्त की आर-पार, मिस्टर एंड मिसेज़ 55, सी.आई.डी, कागज़ के फूल और प्यासा जैसी हिट फ़िल्मों से हिंदी सिनेमा में अपनी पहचान एक ज़बरदस्त कॉमेडियन के तौर पर बनाई। जॉनी वॉकर हर फ़िल्म निर्माता-निर्देशक की पहली पसंद बन गए। उसके बाद वह राज कपूर के साथ फ़िल्म चोरी-चोरी और दिलीप कुमार के साथ फ़िल्म नया दौर और मधुमती में नज़र आए। यह सभी फ़िल्में उनकी सुपरहिट साबित हुईं। धीरे-धीरे जॉनी वॉकर फ़िल्मों की एक अहम ज़रुरत बन गए।


उस दौर में जब फ़िल्मों में दर्शक गंभीर दृश्य देख कर थोड़ा गंभीर हो जाया करते थे। तब फ़िल्म में जॉनी वॉकर  अपनी कॉमेडी को लेकर दर्शकों को गुदगुदाने आते थे। यह उनके टैलेंट का ही दम था कि फ़िल्म के डिस्ट्रिब्यूटर्स, फ़िल्म निर्माता-निर्देशक से कहकर फ़िल्म में एक गाना उन पर ज़रूर रखवाते थे, जिसे मोहम्मद रफ़ी जैसे इंडस्ट्री के दिग्गज गायक गाते थे। उन पर फ़िल्माए गए गाने आज भी बहुत पॉपुलर है। जैसे फ़िल्म सी.आई.डी में उनका गाना, ऐ दिल है मुश्किल जीना यहां, फ़िल्म प्यासा में उनका गाना सर जो तेरा चकराए या दिल डूबा जाए, फ़िल्म मिस्टर एंड मिसेज़ 55 में उनका गाना जाने कहां मेरा जिगर गया जी अभी अभी यहीं था किधर गया जी, आज भी खूब सुना जाता हैं।

जॉनी वॉकर की शादी मशहूर फ़िल्म अभिनेत्री शकीला की बहन नूरजहां से हुई थी। उन दोनों की मुलाक़ात 1955 में गुरुदत्त की फ़िल्म मिस्टर एंड मिसेज़ 55 के सेट पर हुई। इस शादी से जॉनी वॉकर को तीन बेटियां और तीन बेटे हुए। आज उनके छोटे बेटे नासिर एक नामी फ़िल्म और टीवी अभिनेता हैं।

जॉनी वॉकर ने अपनी ज़िन्दगी में कभी शराब को नहीं छुआ, लेकिन उन्होंने एक शराबी की एक्टिंग से करोड़ों लोगों के दिल को छुआ। 50 और 60 के दशक की फ़िल्मों में जॉनी वॉकर की कॉमेडी का तड़का ज़रूर होता था। उस दौर के हिंदी सिनेमा की वह ज़रूरत बन गए थे, जिसे आज भी उनका गोल्डन एरा कहा जाता है। डॉयरेक्टर ऋषिकेश मुखर्जी की फ़िल्म आनंद में उनके निभाए गए किरदार को दर्शक आज तक नही भूल पाए हैं। 60 के ही दशक में महमूद की बढ़ती लोकप्रियता ने फ़िल्मों में उनकी डिमांड कम कर दी, लेकिन जॉनी वॉकर ने उनसे कभी कोई बैर नहीं रखा बल्कि वह ख़ुद महमूद को बहुत पसंद करते थे।

जॉनी वॉकर एक नेचुरल कॉमेडियन थे। उनकी कॉमेडी में कभी कोई भद्दापन नही होता था। अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि उन्होंने तक़रीबन 300 से ज़्यादा फ़िल्मों में काम किया, लेकिन सेंसर बोर्ड ने कभी भी उनके किरदार की एक भी लाइन पर कैंची नही चलाई। दिलीप कुमार, नौशाद, मजरूह सुल्तानपुरी और मोहम्मद रफ़ी से उनकी बहुत गहरी दोस्ती थी। यह सभी बांद्रा में रहा करते थे। फ़िल्म छोड़ने के कई सालों बाद साल जॉनी वॉकर आख़िरी बार साल 1997 में रिलीज़ हुई कमल हासन की फ़िल्म चाची 420 में नज़र आए थे। इस फ़िल्म में काम करने के लिए कमल हासन नें उनकी बहुत मिन्नतें की थी। तब जाकर वह उनकी फ़िल्म में काम करने के लिए राज़ी हुए थे।

जॉनी वॉकर को साल 1959 में फ़िल्म मधुमती के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता और 1969 में फ़िल्म शिकार के लिए सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड मिला था। आज ही के दिन यानी 29 जुलाई 2003 को 77 साल की उम्र में अपने हास्य किरदारों से दर्शकों को गुदगुदाने वाले जॉनी वॉकर नें इस फ़ानी दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था।

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Published: 29 Jul 2023, 3:41 PM