लालू यादव विशेष: राजनीति का बिजूका जो सोशल जस्टिस और सेक्युलरिज़्म के पतवार से खेता रहा अपनी राजनीतिक नैया

जेपी आंदोलन से अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत करने वाले लालू यादव का जन्म 11 जून 1948 को बिहार के परिवार में हुआ था। लालू यादव का बचपन बेहद गरीबी के साए में बीता है। पिता कुंदन राय खेतिहर मजदूर थे।

फोटो: सोशल मीडिया 
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नवजीवन डेस्क

राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने बुधवार को 72वां जन्मदिन मनाया। लालू यादव इस वक्त चारा घोटाले में रांची के होटवार जेल में सजा काट रहे हैं। लेकिन जब भी लालू यादव का नाम सामने आता है तो उनकी जो छवि दिमाग में बन कर आती है वो हाजिरजवाब होने के साथ साथ तेज तर्रार की होती है।

लालू यादव विशेष: राजनीति का बिजूका जो सोशल जस्टिस और सेक्युलरिज़्म के पतवार से खेता रहा अपनी राजनीतिक नैया

जेपी आंदोलन से अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत करने वाले लालू यादव का जन्म 11 जून 1948 को बिहार के परिवार में हुआ था। लालू यादव का बचपन बेहद गरीबी के साए में बीता है। पिता कुंदन राय खेतिहर मजदूर थे। लालू यादव के बड़े भाई की चपरासी में नौकरी लगी, जिसके बाद लालू प्रसाद यादव भी अपने भाई के साथ चपरासी क्वार्टर में रहने लगे। बताया जाता है कि बिहार का सीएम बनने के बाद करीब 4 महीने तक भी लालू यादव उसी चपरासी क्वार्टर में रहे थे।

लालू यादव विशेष: राजनीति का बिजूका जो सोशल जस्टिस और सेक्युलरिज़्म के पतवार से खेता रहा अपनी राजनीतिक नैया

राजनीतिक जीवन की बात करें तो उनका राजनीतिक जीवन कई उतार चढ़ाव से भरा पड़ा है। विधायक के तौर पर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले लालू यादव बिहार के गद्दी पर दो बार बैठे। इसके अलावा एक बार लोकसभा सांसद रहे और एक बार राज्य सभा सांसद, एक बार केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं। करीब-करीब बिहार की राजनीति में तीन दशक से एक प्रमुख चेहरा रह चुके लालू यादव ने बचपन में एक डॉक्टर बनने का सपना देखा था। राजनीति में आने का उनका दूर-दूर तक कोई सपना नहीं था।

लालू यादव विशेष: राजनीति का बिजूका जो सोशल जस्टिस और सेक्युलरिज़्म के पतवार से खेता रहा अपनी राजनीतिक नैया

लालू यादव ने 1970 में पटना यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन (पुसू) के महासचिव के रूप में छात्र राजनीति में प्रवेश किया और 1973 में अपने अध्यक्ष बने। 1974 में, उन्होंने बिहार आंदोलन, जयप्रकाश नारायण (जेपी) की अगुवाई वाली छात्र आंदोलन में बढ़ोतरी, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के खिलाफ शामिल हो गए। पुसू ने बिहार छात्र संघर्ष समिति का गठन किया था, जिसने लालू प्रसाद को राष्ट्रपति के रूप में आंदोलन दिया था। आंदोलन के दौरान प्रसाद जनवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता के करीब आए और 1977 में लोकसभा चुनाव में छपरा से जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में नामित हुए, बिहार राज्य के तत्कालीन राष्ट्रपति जनता पार्टी और बिहार के नेता सत्येंद्र नारायण सिन्हा ने उनके लिए प्रचार किया।। जनता पार्टी ने भारत के इतिहास में पहली गैर-कांग्रेस सरकार बनाई और 29 साल की उम्र में, वह उस समय भारतीय संसद के सबसे युवा सदस्यों में से एक बन गए। उन्होंने सफलतापूर्वक 1980 में बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा और बिहार विधान सभा के सदस्य बने। 1985 में वह बिहार विधानसभा के लिए फिर से निर्वाचित हुए थे। बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर की मृत्यु के बाद लालू प्रसाद यादव 1989 में विपक्षी बिहार विधानसभा के नेता बन गए। इसले अलावा लालू यादव 1990 में वे बिहार के मुख्यमंत्री बने और 1995 में भी भारी बहुमत से विजयी रहे। 1997 में लालू यादव ने जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल के नाम से नयी पार्टी बना ली।


लालू यादवों का विवादों से भी काफी नाता रहा है। 1996 में सबसे पहले बीबीसी ने खबर ब्रेक की थी, जिसमें 950 करोड़ के चारा घोटाले की बात उभरकर जनता के सामने आयी थी। पुलिस ने तफतीश शुरू की तो इस घोटाले में लालू प्रसाद यादव भी लिप्‍त पाये गये। सभी विपक्षी दलों ने लालू यादव पर हमला बोल दिया था। इसी की वजह से लालू को पद से इस्‍तीफा देना पड़ा और उनकी पत्‍नी राबड़ी देवी को बिहार का मुख्‍यमंत्री चुना गया।

लालू यादव ने राजनीतिक सफर के साथ-साथ पारिवारिक जीवन को भी बखूबी निभाया। जून 1973 में लालू यादव की शादी पड़ोस के गांव की लड़की राबड़ी देवी से हुई। बताया जाता है कि शादी के समय राबड़ी देवी की उम्र 14 साल थी। इस शादी को लेकर राबड़ी देवी के चाचा तैयार नहीं थे। एक टीवी कार्यक्रम में लालू बताते हैं कि राबड़ी देवी के चाचा उनसे शादी लेकर गुस्सा थे। उन्होंने अपना भाई यानी राबड़ी देवी के पिता से कहा था कि हमारी लड़की पक्के मकान में रही है और लड़के का मिट्टी का घर है। ऐसे में लड़की कैसे वहां रहेगी।

लालू यादव विशेष: राजनीति का बिजूका जो सोशल जस्टिस और सेक्युलरिज़्म के पतवार से खेता रहा अपनी राजनीतिक नैया

लालू के नाम पर ये कहावत सबसे ज्यादा चर्चाओं में रही है। जब तक सरेहा समोसे में आलू तब तक बिहार में रहेगा लालू। लालू यादव के अंदाज की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके अंदाज का नकल कई लोग करते हैं।

लालू यादव के बयानों को लोग आज भी याद कर चर्चा करते हैं। एक बार लालू यादव से बिहार में परीक्षा के दौरान नकल पर सवाल पूछा गया तो उन्‍होंने कहा था कि हम तो छात्रों को पूरी किताब ही दे देते थे।। रेल मंत्री रहते लालू का यह बयान भी चर्चा में रहा था। उन्होंने कहा था कि अगर आप गाय को पूरी तरह नहीं दुहेंगे, तो वह बीमार पड़ जायेगी। वहीं रेलवे में बढ़ती चोरी की घटनाओं पर लालू यादव ने कहा था कि यह तो होते रहता है। रेल का दायित्व भगवान विश्वकर्मा पर है। मैं उनका काम संभालने के लिए विवश नहीं हूं।

लेकिन सबसे ज्यादा उस बयान पर हुआ था जब लालू यादव ने कहा था कि जब-तक समोसे में आलू रहेगा, तब तक बिहार में लालू रहेगा।

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