मीना कुमारी: मुहब्बत भी मिली, शादी भी हुई, फिर आखिर क्यों जिंदगी भर तन्हा रहीं ‘पाकीज़ा’!

कमाल अमरोही की बेरूखी के दौर में ही भारत भूषण, धर्मेंद्र, फिल्मकार सावन कुमार और गुलजार से मीना कुमारी की नजदीकियां बढ़ीं, लेकिन किसी के साथ ने भी उन्हें वो सुकून नहीं दिया जिसकी उन्हें तलाश थी। आखिर क्या तलाश रही थीं मीना कुमारी। आज उनका जन्मदिन है।

फोटो: फिल्म के पोस्टर से
फोटो: फिल्म के पोस्टर से
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इकबाल रिजवी

पर्दे पर निभाए गए बेहद असरदार किरदारों की वजह से उन्हें ट्रेजडी क्वीन का खिताब मिला।उनकी बदकिस्मती ये रही की उनका निजी जीवन भी एक ट्रेजडी की तरह बीता। जहां तन्हाई और शोषण के सिवा उनके हाथ कुछ ना आया। कहने को मां बाप थे, मशहूर पति थे और प्रेमियों की तो लाइन लगी रही, लेकिन उनके हिस्से में तो बचपन से इस्तेमाल होना लिखा था। यहां तक की मौत के बाद भी उनके नाम का इस्तेमाल किया गया।

ये कहानी है महजबीन उर्फ बेबी मीना उर्फ मीना कुमारी की। 1 अगस्त 1932 को मुंबई में जन्मी महजबीन के पिता अलीबख्श संगीत के मास्टर थे, उन्होंने कुछ फिल्मों में संगीत निर्देशकों के लिए हारमोनियम बजाया और कुछ छोटे-छोटे रोल भी किये। घर का खर्च बड़ी मुश्किल से चल पाता था इसलिये महजबीन की मां इकबाल बानो ने समूह नृत्य और नाटकों में काम करना शुरू कर दिया लेकिन घर को गरीबी दीमक की तरह चाटे जा रही थी। मजबूर हो कर महजबीन को 7 साल की उम्र में घर चलाने के लिए एक्टिंग के मैदान में उतारा गया।

मीना कुमारी: मुहब्बत भी मिली, शादी भी हुई, फिर आखिर क्यों  जिंदगी भर तन्हा रहीं ‘पाकीज़ा’!
10 मार्च 1961 के फिल्मफेयर के अंक में छपी मीना कुमारी की तस्वीर

उनकी पहली फिल्म आयी लेदर फेस (1939), इसमें उन्होंने बेबी मीना के नाम से काम किया। इसके अलावा बहन, गरीब, कसौटी, प्रतिज्ञा जैसी सात आठ और फिल्मों में महजबीन ने बेबी मीना के नाम से काम किया. घर की गाड़ी किसी तरह खिंचती रही, हांलाकि महजबीन को एक्टिंग से कोई दिलचस्पी नहीं थी। 15 साल की उम्र तक पहुंचते पहुंचते बेबी मीना के हुस्न के चर्चे होने लगे और फिर बच्चों का खेल (1946) फिल्म से बेबी मीना बाकायदा हिरोइन बना दी गयीं। इसके बाद पिया घर आजा (1947) और बिछड़े बालम (1948) जैसी फिल्मों में मीना ने काम किया लेकिन उन्हें शोहरत मिली स्टंट और धार्मिक फिल्मों से। वीर घटोत्कच (1949), श्री गणेश महिमा (1950), हनुमान पाताल विजय (1951) और लक्ष्मीनारायण जैसी कई फिल्मों में मीना कुमारी नायिका बन कर आयीं।

कहते हैं कि कोई एक फिल्म ऐसी होती है जो अभिनेता या अभिनेत्री के जीवन में मील का पत्थर साबित हो जाती है, लेकिन मीना की जिंदगी में कई ऐसी फिल्में रहीं जो मील का पत्थर साबित हुयीं।1952 में आयी बैजूबावरा वो पहली फिल्म थी जिसने मीनाकुमारी को सुपर हिट की श्रेणी में ला खड़ा किया।

मीना कुमारी: मुहब्बत भी मिली, शादी भी हुई, फिर आखिर क्यों  जिंदगी भर तन्हा रहीं ‘पाकीज़ा’!
1976 के अगस्त महीने में स्टारडस्ट में प्रकाशित मीना कुमारी की तस्वीर

21 साल की उम्र में अपने घरवालों की मर्जी के खिलाफ मीना ने अपने से दो गुनी उम्र के कमाल अमरोही से प्रेम विवाह कर लिया। मीना कुमारी कमाल अमरोही की शायरी की फैन थीं। इस शादी से मीना कुमारी को कुछ भी हासिल नहीं हुआ, यहां तक की वो मां भी नहीं बन सकीं।

पहले वो बाप के इशारों पर कठपुतली बनी हुई थीं और शादी के बाद उनकी बागडोर पति के हाथों में चली गयी। उनकी कमाई कहां जाती थी, उसका कमाल अमरोही कैसे इस्तेमाल करते थे, ये जानने की मीना ने ना कभी कोशिश की ना ही कमाल अमरोही ने उन्हें कभी इसकी जानकारी दी। धीरे धीरे एक सफल अभिनेत्री और एक चर्चित फिल्मकार के बीच ईगो के टकराव ने मीना कुमारी और कमाल अमरोही के बीच दूरियां बढ़ा दीं।

लेकिन ये दूरियां बढ़न से पहले मीना ने कमाल के लिये दायरा नाम की फिल्म में काम किया। फिल्म तो सफल नहीं रही, लेकिन अपने बेमिसाल अभिनय के लिये मीना कुमारी ट्रेजडी क्वीन कहलाने लगीं। फ़िल्म परिणिता में भी गंभीर अभिनय का जौहर दिखा कर मीना ने सबके हैरान कर दिया। धीरे धीरे मीना कुमारी, निराश, भावुक और किस्मत की मारी महिलाओं के रोल के लिये आदर्श मानी जाने लगीं। चिराग कहां रोशनी कहां, दिल अपना और प्रीत परायी, साहब बीबी और गुलाम, भाभी की चूड़ियां, दिल एक मंदिर, और मैं चुप रहूंगी जैसी फिल्मों से मीना ने भावुक दर्शकों को खूब रुलाया।

कमाल अमरोही की बेरूखी के दौर में ही भारत भूषण, धर्मेंद्र, फिल्मकार सावन कुमार और गुलजार से मीना कुमारी की नजदीकियां बढ़ीं, लेकिन किसी के साथ ने भी उन्हें वो सुकून नहीं दिया जिसकी उन्हें तलाश थी। तब मीना कुमारी से शराब को अपना सबसे करीबी दोस्त बना लिया। बचपन में ही काम के बोझ ने मीना को पढ़ाई करने का मौका नहीं दिया, जिसका उन्हें जीवन भर दुख रहा। लेकिन घर में उर्दू के माहौल में पलते बढ़ते हुए मीना कुमारी कब शे’र लिखने लगीं इसका उन्हें एहसास ही नहीं हुआ. इस शायरी में दिलचस्पी की वजह से ही उनकी कमाल अमरोही से नजदीकियां बढ़ी थीं।

मीना कुमारी और कमाल अमरोही के बीच मतभेद इतने बढ़ गये कि मीना ने उनका घर छोड़ दिया। तब तक कमाल अमरोही फिल्म पाकीजा शुरू कर चुके थे। फिल्म का काम रूक गया। मीना कुमारी ने खुद को शायरी और शराब के हवाले कर दिया। अब उन्होंने फ़िल्मों में छोटे छोटे रोल भी करने शुरू कर दिये। दुशमन और मेरे अपने ऐसी ही फिल्में थीं जिनमें मीना कुमारी ने उम्र दराज महिला का किरदार निभाया। इस बीच नर्गिस और सुनील दत्त ने पाकीजा फिल्म के शूट हुए कुछ हिस्से देखे। उन्होंने मीना से अनुरोध किया कि पाकीजा जरूर पूरी करें। मीना कुमारी राजी हो गयीं और इस तरह फिल्म पाकीजा पूरी हुयी. ये फिल्म मीना कुमारी और कमाल अमरोही की ही ज़िंदगी में नहीं बल्कि हिंदी सिनेमा के इतिहास में भी मील का पत्थर साबित हुई.

पाकीजा के रिलीज होने के हफ्ते भर बाद ही जिंदगी के दर्द से अकेले लड़ते लड़ते मीना कुमारी ने 31 मार्च 1972 को दम तोड़ दिया। लेकिन मरने से पहले मीना कुमारी भारतीय सिनेमा जगत का एक ऐसा सितारा बन गयीं जिसकी चमक मौत के 46 साल बाद भी धीमी नहीं पड़ी है.

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Published: 31 Mar 2018, 11:47 AM
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