जयंती विशेष: संगीत के जादूगर रफी साहब का वो किस्सा, जिसने रातोंरात उन्हें पहुंचा दिया था शोहरत की बुलंदियों पर

बात तब की है जब फिल्म इंडस्ट्री के महान संगीतकार नौशाद 1952 में अपनी फिल्म 'बैजू बावरा' के लिए तलत महमूद से गाना रिकॉर्ड करवाना चाहते थे, लेकिन एक दिन उन्होंने तलत महमूद को सिगरेट पीते हुए देख लिया।

फोटो: सोशल मीडिया
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अतहर मसूद

संगीत के जादूगर और मखमली आवाज के मालिक रहे मोहम्मद रफी साहब की आज 98वीं जयंती है। इस मौके पर भारत समेत दुनियाभर के संगीत प्रेमी आज उन्हें याद कर श्रद्धांजलि दे रहे हैं। 1952 में आई फिल्म 'बैजू बावरा' के भजन 'मन तड़पत हरि दर्शन को आज' ने रातों रात फिल्म इंडस्ट्री में आए नए नौजवान गायक मोहम्मद रफी को बुलंदी पर पहुंचा दिया था। इससे पहले रफी साहब ने 40 के दशक की फिल्मों में जैसे अनमोल घड़ी, मेला, शहीद और दुलारी जैसी फिल्मों में बॉलीवुड के नामी संगीतकार नौशाद के संगीत निर्देशन में कई गाने गाए थे।

सबसे पहले संगीतकार श्याम सुंदर ने मोहम्मद रफी की प्रतिभा को पहचाना और 1944 में उन्हें पंजाबी फिल्म 'गुल बलोच' में गाने का मौका दिया था। इसके बाद 1946 में वह बम्बई आ गए और यहां उन्होंने नौशाद के संगीत निर्देशन में कई फिल्मों के गीत गाए, जो की काफी हिट हुए, लेकिन अभी मोहम्मद रफी सफलता के उस पायदान पर नही पहुंचे थे, जिसने उन्हें इंडस्ट्री का महान गायक बनाया था।


बात तब की है जब फिल्म इंडस्ट्री के महान संगीतकार नौशाद 1952 में अपनी फिल्म 'बैजू बावरा' के लिए तलत महमूद से गाना रिकॉर्ड करवाना चाहते थे, लेकिन एक दिन उन्होंने तलत महमूद को सिगरेट पीते हुए देख लिया। नौशाद थोड़ा सख्त मिजाज के थे। उन्हें स्टूडियो के अंदर यह सब बिल्कुल भी पसंद नही था। कहते हैं कि इस वाकये के बाद नौशाद ने बैजू बावरा का गाना तलत महमूद की बजाय मोहम्मद रफी से गवाने का मन बना लिया। इससे पहले वह रफी साहब से एक दो गाने रिकॉर्ड करवा चुके थे। तलत महमूद से गाना ना गवाने की एक वजह और थी। दरअसल नौशाद को इस बार अपनी फिल्म के लिए ऐसे गायक की तलाश थी, जो काफी हाई रेंज में गाना गा सके। नौशाद ने फिल्म में मोहम्मद रफी से एक ऐसा भजन गवाया जो पूरी तरह क्लासिकल और हाई रेंज वाला था। और वह भजन था 'मन तड़पत हरि दर्शन को आज'। इस भजन को रफी साहब ने पूरी शिद्दत से गाया। जब फिल्म रिलीज हुई तो फिल्म के सारे गाने हिट हो गए। खास तौर पर भजन को दर्शकों ने जब सुना तो उनकी आंखों में आंसू आ गए। इस भजन के गाने के बाद रफी साहब दिनों दिन शोहरत की बुलंदियों को छूते चले गए।

फिल्म 'बैजू बावरा' के बाद नौशाद ने रफी साहब को अपनी कई और फिल्मों में भी गाना गवाया। रफी साबह तक तक सुरो के सम्राट बन चुके थे। वह फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान बना चुके थे। इंडस्ट्री के कई मशहूर संगीतकारों ने रफी साहब के साथ गाना रिकॉर्ड करवाना शुरू कर दिया था। इनमें मशहूर संगीतकार की जोड़ी शंकर-जयकिशन, कल्याण जी-आनंद जी, एस. डी. बर्मन, ओ.पी. नय्यर, मदन मोहन, सलिल चौधरी जैसे संगीतकार शामिल थे।


मोहम्मद रफी ने अनगिनत अभिनेताओं के लिए प्लेबैक सिंगिंग की। दिलीप कुमार, राजकुमार, राजेंद्र कुमार, देव आंनद और भरत भूषण जैसे कई अभिनेताओं के लिए उन्होंने अपनी आवाज दी। इनमें शम्मी कपूर के लिए तो जैसे उन्हीं की आवाज को हमेशा के लिए तय कर लिया गया था। अगर आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि मोहम्मद रफी के सबसे ज्यादा हिट गाने शम्मी कपूर के ऊपर ही फिल्माए गए हैं। एक बार की बात है अपने किसी गाने की रिकॉर्डिंग के वक्त शम्मी कपूर स्टूडियो नहीं पहुंच पाए और रफी साहब उनके लिए गाना रिकॉर्ड कर रहे थे। जब शम्मी कपूर ने बाद में उस गाने को सुना तो उन्होंने रफी साहब से पूछा कि आप कैसे समझ गए कि इस गाने पर मैं ऐसे डांस करूंगा और आपने उसी अंदाज में बिल्कुल गाना गाया। इस पर रफी साहब ने कहा की मुझे पता था की गाना शम्मी कपूर पर फिल्माया जाना है और मैं जानता हूं कि आप का गाना हो और उसमें लटके झटके ना हों भला ऐसा कैसे हो सकता है। बस आपके उसी अंदाज को ध्यान में रखकर मैंने गाना रिकॉर्ड करवा दिया। ऐसे कमाल के गायक थे मोहम्मद रफी। उन्होंने पर्दे पर जिस भी अभिनेता के लिए गाना गाया ऐसा लगता था कि वह अभिनेता खुद गा रहा है।

रफी साहब की जिंदगी में कई मरहले आए। कामयाबी ने उनके कदम को चूमा। मोहम्मद रफी ने अपने पूरे कॅरियर में करीब 28 हजार गाने रिकॉर्ड करवाए। उन्हें कई बार फिल्मफेयर अवार्ड्स से नवाजा गया। 1988 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया था।

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