पढ़ें, पटना की पहली और अनोखी प्रेम कहानी, जो आजादी से पहले शुरू हुई, लेकिन...

यह भारत के 1940 के समय की एक प्रेम कहानी है। यह कहानी जितनी सहज-सरल है, उतनी ही क्रांतिकारी भी, खासतौर से ऐसे समय में जब प्रेम विवाह को समाज में स्वीकार्यता नहीं थी और किसी भी तरह से प्रेम निवेदन की बात मुश्किल से ही सुनाई पड़ती थी।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया

यह भारत के 1940 के समय की एक प्रेम कहानी है। यह कहानी जितनी सहज-सरल है, उतनी ही क्रांतिकारी भी, खासतौर से ऐसे समय में जब प्रेम विवाह को समाज में स्वीकार्यता नहीं थी और किसी भी तरह से प्रेम निवेदन की बात मुश्किल से ही सुनाई पड़ती थी। इस कहानी का नायक बलिया के पास के एक छोटे से कस्बे कछुआ रामपुर से था और नायिका विदुपुर से थी। दोनों के ही परिवारों ने बिहार की राजधानी पटना में अपना घर बनाया था। दोनों की मुलाकात पटना शहर में ही हुई।

लड़के का नाम था कन्हैयालाल श्रीवास्तव। वह अंग्रेजी साहित्य का ट्यूशन पढ़ने के लिए पटना कॉलेजिएट स्कूल के प्रिंसिपल के घर जाया करते थे। यह 1930 के दशक के मध्य के आसपास की बात है। कन्हैयालाल श्रीवास्तव की उम्र उस समय 18 वर्ष की थी। ट्यूशन के दौरान प्रिसिंपल की बेटी अहिल्या चाय देने आती थीं और बिना एक भी शब्द बोले चुपचाप वापस चली जाती थीं। यह सिलसिला तकरीबन पांच वर्ष तक चला। इन वर्षों में लड़का और लड़की ने एक-दूसरे से कुछ भी बात नहीं की, सिवाय अभिवादन के लिए नमस्ते कहने के। लेकिन दोनों के बीच में प्रेम का बीज अंकुरित होने लगा था। हालांकि दोनों ने एक-दूसरे के सामने इसका इजहार नहीं किया।


जिस दिन कन्हैयालाल ने अपनी औपचारिक शिक्षा पूरी की तो उन्होंने यह फैसला किया कि वह अहिल्या के सामने अपने प्रेम का निवेदन करेंगे। यह किस तरह से हुआ, इसका रोचक किस्सा हमें जानी-मानी रंगमंच समालोचक के. मंजरी श्रीवास्तव बताती हैं। मंजरी श्रीवास्तव कन्हैयालाल और अहिल्या श्रीवास्तव की पोती हैं। वह बताती हैं, “मेरे दादाजी ने मेरी दादीजी से बिना किसी लाग-लपेट के पूछा, ‘मैं आपको पसंद करता हूं। क्या आप भी मुझे पसंद करती हैं?’ उन्होंने बिना एक शब्द बोले हां में सिर हिलाया। फिर अगला सवाल था, ‘क्या आप मुझसे शादी करेंगी।’ और उन्होंने बिना पलक झपकाए फिर से हां में सिर हिलाया।’

उस समय कन्हैया 24 वर्ष के थे। उन्होंने अपनी होने वाली जीवन-संगिनी से अगले दिन एक तय स्थान पर आने को कहा। अहिल्या बिना किसी आशंका-संकोच के उस जगह पर गईं। मंजरी बताती हैं कि दादी जी मेरे दादाजी पर इतना ज्यादा विश्वास करती थीं कि वह यह जानती थीं कि यह लड़का उन्हें धोखा नहीं देगा। इसलिए वह अगले दिन तय स्थान पर गईं। वहां से दोनों दादाजी के मामा के पास गए। वह डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में काम करते थे। मेरे दादा ने अपनी भावनाओं के बारे में अपने मामा को बताया। उन्होंने उन दोनों की शादी करवादी। अगले दिन उनकी मदद से यह शादी कोर्ट में रजिस्टर्ड (पंजीकृत) हो गई। यह पटना का पहला रजिस्टर्ड (प्रेम) विवाह था।


यह देखने की बात है कि दोनों ने ही यह फैसला किया था किअपनी शादी से पहले अपने माता-पिता को कुछ भी नहीं बताएंगे। इसकी वजह यह थी कि दोनों के ही माता-पिता सख्त किस्म के जमींदार थे जो कभी भी यह अनुमति नहीं देते कि उनके परिवारों में कोई भी प्रेम विवाह करे। हालांकि मामा ने दोनों ही परिवारों को अपनी तरफ से भरसक मनाने का प्रयास किया। और अंततः छह माह बाद अहिल्या तमाम आशंकाओं के साथ कन्हैया के माता-पिता के घर में दाखिल हुईं। लेकिन चीजें जल्दी ही सामान्य हो गईं क्योंकि दोनों के ही परिवार जाने-माने जमींदार थे और दोनों एक ही जाति से संबंध रखते थे। हालांकि लड़की और उनके परिवार को दुल्हन के भागने जैसी बात के लिए आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था।

दिलचस्प बात यह है कि जब कन्हैया भारतीय स्टेट बैंक में मैनेजर बनने के लिए गए तो अहिल्या को उनके प्रिसिंपल पिता ने घर पर पढ़ाया। अहिल्या कभी स्कूल नहीं गई थीं। वह शरद चंद्र चट्टोपाध्याय और रवीन्द्रनाथ टैगोर-जैसे रचनाकारों की जबरदस्त उत्साही प्रशंसक और पाठक थीं। यह दंपति उन चंद लोगों में से एक थे जो साथ- साथ नाटक, लोक रगमंच, संगीत समारोह और सर्कस देखने जाते थे।

मंजरी याद करती हैं, “दोनों ने ही मुझे प्रेम का वास्तविक अर्थस मझाया था। साथ ही रचनात्मक दुनिया से लगाव भी कराया। आज मैं उनकीव जह से ही रंगमंच समालोचक हूं। मैं बहुत छोटी उम्र में दोनों के साथ नाटक देखने के साथ-साथ कवि सम्मेलनों और संगीत समारोहों में जाती थी।” वह कहती हैं कि उनके दादा ने उन्हें प्यार का सही अर्थ बताया था।


मंजरी कहती हैं, “मैंने उनसे एक बार पूछा था, क्या आपने मेरी दादीजी से कभी ‘आई लव यू’ कहा था। उन्होंने कहा था– प्रेम आई लव यू कहना नहीं है। प्रेम वह है जो दूसरे को इसका अहसास कराता है और फिर अपने साथी (स्त्री/ पुरुष) को यह कहने पर मजबूर कर देता है, ‘मुझे गर्व है कि आप मुझ से प्रेम करते हैं।’ इसने मुझे सिखाया कि प्रेम कैसे संप्रेषित किया जाता है। यह सिर्फ रस्मी तरीके से किसी को तीन शब्द बोलनाभर नहीं है।”

उन दोनों की प्रेम कहानी आज भी शहर में चर्चा का विषय है। एक बात यह भी है कि यह परिवार शहर में लगभग प्रेम विवाह की परंपरा के लिए जाना जाता है। उऩके परिवार में केवल दो लोगों ने पारंपरिक तरीके (अरैन्ज्ड मैरिज) से विवाह किया है जिसमें एक हैं मंजरी के माता-पिता और दूसरे हैं उनके भाई। मंजरी ने भी कुछ वर्ष पहले अपने बचपन के प्रेम, कृष्णन से विवाह किया है और वह के. मंजरी श्रीवास्तव बन गईं।

कन्हैया और अहिल्या के दो बच्चे हैं- एक बेटा और एक बेटी। कन्हैयालाल 1995 में गुजर गए और छह वर्ष बाद अहिल्याजी ने भी इस धरती को अलविदा कह दिया।

इस लेख के लेखक राना सिद्दीकी जमन हैं

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