कुछ ही दिन पहले इस तरह याद कर रहे थे तिगमांशु धूलिया अपने ‘पान सिंह तोमर’ को
अभिनय की जिन सीमाओं को इरफान बार-बार छू कर वापस लौटते रहे वह अद्भुत था। मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि हिंदी सिनेमा ने जितने अभिनेता पैदा किये हैं, उनमें इरफान सर्वश्रेष्ठ हैं।
![फोटोः सोशल मीडिया](https://media.assettype.com/navjivanindia%2F2020-04%2F51702bfa-f3c2-46f2-adc2-e607b423c391%2Fpaan_singh_toma.jpg?rect=0%2C0%2C521%2C293&auto=format%2Ccompress&fmt=webp)
कैसे यकीन किया जाए कि अब इरफान से किसी की भी कभी भी मुलाकात नहीं हो पाएगी। लेकिन सच ये है कि अभिनय के नए-नए मानक गढ़ने वाले इरफान अब हमारे बीच नहीं रहे।
फिल्म निर्देशक और अभिनेता तिगमांशु धूलिया और इरफान पिछले करीब तीन दशक से एनएसडी के दिनों से ही दोस्त थे और फिर इरफान की मौत ने इस दोस्ती को तोड़ दिया। कुछ दिन पहले ही तिगमांशु ने इरफान से जुड़ी यादों को इस तरह बयान किया था।
“1992 में जब मैं नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा पहुंचा तो इरफान मुझ से दो बैच सीनियर थे। तब एनएसडी के चर्चित अभिनेताओं में इरफान की गिनती नहीं होती थी। एक दिन एनएसडी में ब्रेख्त का एक नाटक हुआ, जिसमें इरफान ने भी अभिनय किया। उसे देख कर मैं स्तब्ध रह गया। मंच से इतना प्रभावशाली अभिनय मैंने इससे पहले नहीं देखा था। इसके बाद जब भी उन्हें अभिनय करते देखा तो पाया कि उनके अभिनय में अपनी सोच होती है जो साफ दिखती है।
यहीं से मेरी और इरफान की दोस्ती की बुनियाद पड़ी। मैं जीवन में बहुत कम लोगों से प्रभावित हुआ हूं, लेकिन इरफान की बात ही अलग थी। हम दोनो में सिनेमा ही नहीं जिंदगी को लेकर भी बहुत से समान संदर्भ थे। मुझे विश्व सिनेमा में गहरी दिलचस्पी थी और यही शौक इरफान को भी था। कई निर्दशक, अभिनेता और अभिनेत्रियां जिन्हें इरफान पसंद करते थे, वही मेरी पसंद भी थे। साहित्य और राजनीति पर बात करने के लिए भी हमारे बीच बहुत कुछ था। हमारे सामाजिक सरोकार भी एक जैसे थे।
इरफान 1990 में मुंबई जा चुके थे, जबकि मैं वहां 1993 में पहुंचा। वह समय हम दोनों के स्थापित होने की जद्दोजहद का समय था। हम जब भी मिलते हमारी लंबी-लंबी बैठकें होती थीं। इस दौरान इरफान सिनेमा और टीवी के कुछ प्रोजेक्ट से जुड़े हुए थे। अपने रोल को लेकर परेशानी की हद तक फिक्रमंद रहने वाला वह पहला अभिनेता मैने देखा।
मैं तो इरफान के अभिनय का शुरू से मुरीद रहा सिर्फ एक दोस्त की हैसियत से नहीं, बल्कि एक निर्देशक के रूप में भी। अपनी पहली फिल्म ‘हासिल’ के लिये इरफान के अलावा कोई दूसरा नाम मेरे दिमाग में आया ही नही। इरफान ने साबित भी किया कि मेरा फैसला गलत नहीं था। इसके बाद इरफान को लेकर मैंने ‘चरस’, ‘साहब बीबी और गैंगस्टर’, ‘पान सिंह तोमर’ बनाई और हर बार उन्हें सीन समझाने की जरूरत नहीं पड़ी।
इरफान ने अपने कुछ इंटरव्यूज में कहा था कि जब उन्हें मन मुताबिक रोल नहीं मिल रहे थे तो उन्होंने फिल्मी दुनिया को अलविदा कहने का मन बना लिया, तब मैने उन्हें रोका और कहा कि अभी जा कहां रहे हो, रुको मैं तुम्हें नेशल अवार्ड दिलवाउंगा। मुझे तो याद नहीं कि मैने कब इरफान से यह कहा लेकिन पान सिंह तोमर में नेशनल अवार्ड हासिल करने के बाद जब उन्होंने मीडिया से यह सब कहा तो मन अंदर ही अंदर भीग सा गया। इस मायानगरी में कौन किसे इस मोहबब्त से याद करता है। इरफान रिश्तों को लेकर हमेशा बहुत वफादार रहे।
इरफान से पहले भी भारतीय फिल्मी दुनिया से अदाकार हॉलीवुड गए, लेकिन मेरे नजरिये से वहां जो इज्जत इरफान ने हासिल की, इससे पहले किसी भारतीय अभिनेता को नहीं मिली। इरफान ने अपनी प्रतिभा को हॉलीवुड में बार-बार साबित किया। माइकल विंटर की “ए माइटी हार्ट”, मार्क वेब की “द अमेज़िग स्पाइडर मैन”, कोलिन ट्रेवेरों की “जुरासिक वर्ल्ड”, मार्को एमेंटा की “बैंकर टू द पुअर”, रान हार्वर्ड की “इन्फर्नो”, नताली पोर्टमैन की “न्यूयार्क आई लव यू” और आसिफ कपाड़िया की “द वारियर” सहित हॉलीवुड की दसियों फिल्मों में इरफान ने भारत का शानदार प्रतिनिधित्व किया।
अभिनय की जिन सीमाओं को इरफान बार-बार छू कर वापस लौटते रहे वह अद्भुत था। मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि हिंदी सिनेमा ने जितने अभिनेता पैदा किये हैं उनमें इरफान सर्वश्रेष्ठ हैं।”
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