बॉलीवुड के हैंडसम एक्टर संजय खान कैसे बने टीवी की दुनिया के बेताज बादशाह? 'टीपू सुल्तान' से 'जय हनुमान' तक की पूरी कहानी

1977 में संजय ख़ान ने पहली बार किसी फ़िल्म को प्रोड्यूस और डॉयरेक्ट किया। फ़िल्म का नाम था सोना-चांदी। इसके बाद 1980 में उन्होंने अपनी सबसे मशहूर फ़िल्म अब्दुल्ला बनाई।

फोटो: सोशल मीडिया
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अतहर मसूद

बॉलीवुड अभिनेता संजय खान की आज 82वीं सालगिरह है। संजय ख़ान बॉलीवुड के एक जाने माने अभिनेता और फ़िल्म निर्माता-निर्देशक रहें हैं। उनका जन्म 3 जनवरी 1941 में हुआ था। बॉलीवुड सिनेमा के सबसे हैंडसम अभिनेता का ख़िताब पाने वाले संजय ख़ान ने 1964 में चेतन आनंद की फ़िल्म हक़ीक़त से अपने फ़िल्मी सफ़र का आग़ाज़ किया था, जिसके बाद 1964 में ही उन्हें राजश्री प्रोडक्शन की फ़िल्म दोस्ती में भी काम करने का मौक़ा मिल गया, जिसमें उनके अभिनय को लोगों ने ख़ूब पसंद किया।

संजय ख़ान का असल नाम शाह अब्बास ख़ान है। इनका नाम संजय पड़ने का क़िस्सा भी बड़ा दिलचस्प है। हुआ ये था कि 1964 में राजश्री प्रोडक्शन की फ़िल्म दोस्ती की शूटिंग के दौरान फ़िल्म के प्रोड्यूसर ने इन्हें अपना नाम संजय रखने की सलाह दी, क्योंकि उस वक़्त बॉलीवुड में अब्बास नाम के कई सारे फ़िल्म प्रोड्यूसर और डॉयरेक्टर काम कर रहे थे, इस नाते उन्हें नाम बदलने की सलाह दी गई और इन्हें संजय नाम रखने के लिए सुझाया गया। इसके बाद से शाह अब्बास, संजय ख़ान के नाम से बॉलीवुड में काम करने लगे।

1969 में संजय खान की दो फ़िल्मे रिलीज़ हुईं। पहली थी ‘एक फूल दो माली’ और दूसरीं थी फ़िल्म ‘इन्तिक़ाम’। इन दोनों फ़िल्मों की क़ामयाबी के बाद संजय ख़ान ने बॉलीवुड में अपने क़दम मज़बूती से जमा लिए, इसके बाद उन्होंने पलट कर पीछे नही देखा। 60 के दशक से 90 के दशक तक संजय ख़ान ने बहुत सारी सुपरहिट फ़िल्मों में बतौर लीड अभिनेता, देश की बड़ी अभिनेत्रियों के साथ काम किया।

1966 में संजय ख़ान ने ज़रीन कतराक से शादी कर ली जो की 60 के दशक की एक ख़ूबसूरत मॉडल थीं। फ़िल्म तेरे घर के सामने में उन्होंने देव आनंद की सेकेट्री का किरदार भी निभाया था। शादी के बाद ज़रीन ने एक्टिंग छोड़कर पूरा ध्यान अपनी फ़ैमिली पर लगा दिया, हालांकि वह संजय ख़ान के काम में उनका हाथ ज़रूर बटाती रहीं।


1977 में संजय ख़ान ने पहली बार किसी फ़िल्म को प्रोड्यूस और डॉयरेक्ट किया। फ़िल्म का नाम था सोना-चांदी। इसके बाद 1980 में उन्होंने अपनी सबसे मशहूर फ़िल्म अब्दुल्ला बनाई। इस फ़िल्म में इनकी हीरोइन थीं मशहूर एक्ट्रेस ज़ीनत अमान, जिनसे इनके अफ़ेयर की ख़बरों ने भी उस दौरान ख़ूब सुर्ख़ियां बटोरी थीं। फ़िल्म अब्दुल्ला में इन्होंने बॉलीवुड के शोमैन कहे जाने वाले एक्टर, प्रोड्यूसर और डॉयरेक्टर राजकपूर को डॉयरेक्ट किया था। ख़ुद राजकपूर ने इस फ़िल्म में निभाए गए अपने किरदार को अपने दिल के बहुत क़रीब बताया था। इसके बाद 1986 में संजय खान ने फ़िल्म काला धंधा गोरे लोग बनाई, जिसमें उन्होंने देश की जवान पीढ़ी को ये बताया की ड्रग्स का इस्तेमाल कैसे देश को बर्बाद कर सकता है। बतौर एक्टर ये उनकी आख़िरी फ़िल्म थी।

संजय खान ने 1990 में टीवी की दुनिया में क़दम रखा और हिंदुस्तान का पहला सबसे बड़ा टीवी सीरियल ‘द सोर्ड ऑफ़ टीपू सुल्तान’ बनाया, जो की शेरे मैसूर के नाम से मशहूर हिंदुस्तान के पहले जंगे आज़ादी के हीरो टीपू सुल्तान की ज़िंदगी पर बेस्ड था। इस सीरियल में टीपू सुल्तान का किरदार ख़ुद संजय ख़ान निभा रहे थे। सीरियल में टीपू सुल्तान की शादी के एपिसोड की शूटिंग के दौरान सेट पर हुई चूक से आग लग गई, जिसमें यूनिट के 52 लोगों ने अपनी जान गवां दी और 4 लोग ज़िंदा बचे, जिसमें से एक संजय ख़ान भी थे। अपने साथियों और यूनिट को बचाने के लिए वह स्टूडियो के बाहर से अंदर बिना अपनी जान की परवाह किए बग़ैर आग में कूद गए, जिससे उनके बदन का 64 फ़ीसदी हिस्सा बुरी तरह झुलस गया था। 8 महीने बम्बई के जसलोक हॉस्पिटल में भर्ती रहने के बाद संजय ख़ान को अमेरिका के जॉन टॉन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल वाशिंगटन में भर्ती कराया गया,जहां उनकी 13 दिन में तक़रीबन 73 सर्जरी हुई, जिसके बाद ही वो पूरी तरह से ठीक हो पाए।

ठीक होने के बाद संजय ख़ान बेताबी से शूटिंग पर जाने का इंतज़ार कर रहे थे। आग वाली घटना के 13 महीने बाद ही वह अपनी शूटिंग के सेट पर राजस्थान पहुंच पाए थे, जहां उनकी पूरी यूनिट उनका बड़ी बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी। राजस्थान में 50 डिग्री की तपती धूप में टीपू सुल्तान के भारी भरकम कॉस्ट्यूम को पहनकर घोड़े पर सवार होकर डॉक्टर्स की देखरेख में उन्होंने कई एक्शन सीन्स को अंजाम दिया।

सीरियल ‘द सोर्ड ऑफ़ टीपू सुल्तान’ की ज़बरदस्त क़ामयाबी और शोहरत ने उन्हें इंडस्ट्री में एक नई पहचान दिलाई। टीवी पर उन्होंने टीपू सुल्तान के किरदार को इतनी शिद्दत से निभाया की इसके बाद लोग उन्हें टीपू सुल्तान कहने लगे थे। इस सीरियल के बाद 1994 में उन्होंने एक और ऐतिहासिक टीवी सीरियल ‘द ग्रेट मराठा’ भी बनाया। यह सीरियल पानीपत की तीसरी लड़ाई पर बेस्ड था, जो की अंग्रेज़ों और मराठों के बीच में हुई थी। इसके बाद उन्होंने 1997 में ‘जय हनुमान’ नाम का मशहूर धार्मिक सीरियल भी बनाया। यह सीरियल भी बहुत पॉपुलर हुआ था। फिर 2002 में उन्होंने आज़ादी की पहली लड़ाई पर बेस्ड सीरियल 1857 क्रांति बनाया। एक के बाद एक सुपरहिट सीरियल बनाकर उन्होंने दर्शकों में हिंदुस्तान की सभ्यता और संस्कृति का प्रचार किया। उनके इसी जज़्बे के लिए उन्हें कई सारे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरूस्कारों से भी नवाज़ा गया।

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