सामना: उद्धव का BJP सरकार पर वार, कहा- आपके पास प्रतिशोध चक्र तो हमारे पास सुदर्शन चक्र, हम भी लगा सकते हैं पीछे

उद्धव ठाकरे ने बीजेपी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि आपने इसके लिए मजबूर ही किया तो आप हमें हिंदुत्ववादी कहते हो ना तो फिर ठीक है। प्रतिशोध चक्र आपके पास, हमारे पास सुदर्शन चक्र है। हमारे पास भी चक्र है। हम पीछे लगा सकते हैं।

फोटो: Getty Images
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विनय कुमार

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने महाविकास आघाड़ी की सरकार की वर्षपूर्ति के दिन ‘सामना’ को साक्षात्कार दिया। इस दौरान उन्होंने विपक्ष पर जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि सरकार ने एक साल पूरा किया है। सरकार आज गिराएंगे, कल गिराएंगे, इस दौरान ऐसा बोलनेवाले के दांत गिर पड़े। शुरुआत में ही उन्होंने ऐसा झटका दिया। मुख्यमंत्री ठाकरे ने विस्तृत मुलाकात में सारे सवालों का जवाब दिया। विरोधियों द्वारा सरकार पर लगाए जा रहे आरोपों की उन्होंने जमकर खबर ली। ‘ईडी’ आदि का दुरुपयोग करके दबाव बनाओगे तो याद रखना बच्चों के पीछे लगकर विकृत आनंद पानेवालों, तुम्हारे भी परिवार और बच्चे हैं, ये मत भूलो। लेकिन हम में संस्कार हैं इसलिए उन्होंने संयम बरतने की भी बात कही। कोरोना से रोजगार तक, ‘वर्षा’ बंगले से लेकर ‘मातोश्री’ तक हर सवाल पर मुख्यमंत्री ठाकरे बोले। कांग्रेस, राष्ट्रवादी के बीच उत्तम समन्वय है। उन्होंने स्वीकार किया कि सरकार चलाने में उन्हें किसी प्रकार की कसरत नहीं करनी पड़ रही।

पहले दिन से ही सहयोग की भावना रखी उस दौरान मन में ये बात थी कि चलो माहौल खुला है, अच्छा हुआ। अब काम पर लगेंगे! ये जो सहयोग कर रहे हैं वो महत्वपूर्ण है। पूरे राज्य के प्रशासन की यंत्रणा है, पुलिस है और राजस्व विभाग है। सभी का सहयोग मिल रहा है और आराम से एक साल पूरा हो गया तथा मुझे आत्मविश्वास है कि अगले चार साल भी हम जरूर पूरा करेंगे ही करेंगे। आगामी पांच साल की जनता है ही। वो तय करेगी।’

मैं शांत हूं, संयमी हूं लेकिन इसका मतलब मैं नामर्द नहीं हूं और इस प्रकार से हमारे लोगों के परिजनों पर हमले शुरू हैं। ये तरीका महाराष्ट्र का नहीं है। बिल्कुल नहीं है। एक संस्कृति है। हिंदुत्ववादी मतलब एक संस्कृति है और तुम परिवार पर आनेवाले होगे, बच्चों पर आनेवाले होगे तो हम पर हावी होनेवाले लोगों का भी परिवार और बच्चे हैं। ये मैं कहना चाहता हूं, तुम्हारे भी परिवार और बच्चे हैं। तुम धोए हुए चावल नहीं हो। तुम्हारी खिचड़ी वैसे पकानी है, वो हम पका सकते हैं।

तुम सीबीआई का दुरुपयोग करने लगे तब ऐसी नकेल लगानी ही पड़ती है। ईडी ही क्या, सीबीआई क्या, उस पर राज्य का अधिकार नहीं है? हम देते हैं नाम, हमारे पास हैं नाम। माल-मसाला तैयार है। पूरी तरह से तैयार है। लेकिन बदले की भावना रखनी है क्या? फिर जनता हमसे क्या अपेक्षा रखेगी। बदले की भावना से ही काम करना है तो तुम एक बताओ, हम दस बताएंगे।

मुख्यमंत्री ठाकरे ने ‘सामना’ से बातचीत की। सरकार को एक साल पूर्ण हो जाने पर सबसे पहले उनका अभिनंदन किया। महाराष्ट्र में राजनीतिक चमत्कार हुआ। इस चमत्कार को नमस्कार कहते हुए उन्होंने स्मित हास्य किया।

सवाल- उद्धव जी, सरकार एक साल पूरा कर रही है। ये सरकार ग्यारह दिन भी नहीं चलेगी, उसके बाद ये सरकार तीन महीने में गिर जाएगी, ये सरकार अपनी बोझ से ही गिर जाएगी, जैसे कई ज्योतिषीय कयास और अनुमान व्यक्त किए गए।


जवाब- ऐसा बोलनेवालों के दांत गिर पड़े।

सवाल- हां, आपने वो दांत कैसे गिराए?


इस पर बात करेंगे लेकिन ‘सामना’ से साक्षात्कार के माध्यम से पहले मैं महाराष्ट्र की जनता के समक्ष साष्टांग नमस्कार करता हूं। आपने चमत्कार शब्द का प्रयोग किया, कुछ साल पहले महाराष्ट्र में अंधश्रद्धा निर्मूलन कानून मतलब अंधश्रद्धा विरोधी, जादू-टोना विरोधी कानून मंजूर किया गया इसलिए चमत्कार शब्द पर कुछ लोग आपत्ति जता सकते हैं। इसे चमत्कार की बजाय मैं ऐसा कहूंगा कि सब लोग एक साथ आए इस एकता से यह संभव हुआ। इस एकता को आप चमत्कार कहनेवाले होंगे तो जरूर कहिए। तब और केवल तब ही इस मामले की हकीकत दिख सकती है।

सवाल-महाराष्ट्र में इस प्रकार से सत्ता परिवर्तन होना अपेक्षित नहीं था। ये सच कहें तो राजनीतिक चमत्कार ही था। उस समय आघाड़ी का महाराष्ट्र में जो प्रयोग हुआ उससे पूरा देश अचंभित हो गया। इस दृष्टि से इसे चमत्कार कह रहा हूं…


जवाब--आप सच कह रहे हैं। मैंने माई-बाप जनता को साष्टांग नमस्कार करके ही शुरुआत की क्योंकि उनके आशीर्वाद, प्रेम और विश्वास के बिना यह असंभव था। ऐसी राजनीतिक हलचल होती रहती है। लेकिन हर हलचल के पीछे जनता ही होती है, ऐसा नहीं है। आपको पिछले साल का वो दिन याद होगा, शपथ ग्रहण का। उस समय शिवतीर्थ खिल उठा था। आनंदपूर्ण महौल था। कुछ लोगों को लगा कि ये जनमत के विरुद्ध हुआ।

सवाल आज भी वही चिल्लाहट जारी है। ये सरकार अप्राकृतिक है?


जवाब---लेकिन अगर ऐसा होता तो शिवाजी पार्क पर, शिवतीर्थ पर कोई आया ही नहीं होता। स्वाभाविक है ये सब करना बहुत कठिन था। आप भी इसके साक्षी रहे हैं। एक महत्वपूर्ण बात है। आघाड़ी करने के लिए शिवसेना, राष्ट्रवादी और कांग्रेस जब तीनों पार्टियां एक साथ आ रही थीं तब कुछ लोगों को लग रहा था कि ये तीनों पार्टियां एक साथ आएंगी ही नहीं। कुछ लोगों ने ऐसा कयास लगाया था। उन्हें लग रहा था कि शिवसेना हमारे पीछे दौड़ी चली आएगी। शिवसेना को हमारे पीछे ही आना पड़ेगा। इसके बिना वो कुछ नहीं कर सकती। जिन लोगों को ऐसा लगता था उनका अनुमान गलत साबित हुआ। इसमें कांग्रेस पार्टी की भूमिका महत्वपूर्ण है… फिर उसमें सोनिया जी हैं। राष्ट्रवादी की भूमिका महत्वपूर्ण है। फिर शरद पवार जी हैं। उन्होंने भी एक राजनीतिक साहस और विश्वास दिखाया।

सवाल --उद्धवजी, एक वर्ष में इस सरकार को अस्थिर करने का प्रयास पूरी तरह नाकाम सिद्ध हुआ। सरकार मजबूती के साथ खड़ी है लेकिन आज आप जब इस सरकार का अभिनंदन कर रहे हैं। उसी दौरान बाहर एक बार फिर सरकार पर दबाव डालने का प्रयास चल रहा है

जवाब---कैसा दबाव?

सवाल- ईडी जैसी संस्था…जिस केंद्र सरकार के हाथ में है। उस संस्था का इस्तेमाल महाविकास आघाड़ी के विधायकों पर छापा मारकर दहशत और दमन किया जा रहा है। ताकि विधायक घुटने टेक दें।


मुझे जब चुनौती मिलती है तो ज्यादा स्फूर्ति आती है। एक बात कुछ लोग भूल जाते हैं कि आप ने जो कहा वो चमत्कार इस महाराष्ट्र की मिट्टी में है। तेज है, महाराष्ट्र पर कई संकट आए, विपत्तियां आर्इं। अच्छे-अच्छे हमलावर आए लेकिन क्या हुआ?

सवाल---हमला करनेवालों को ठोकर से उड़ा दिया

दशहरा के अपने भाषण में मैंने वही कहा था। अपने दादाजी के पहले सम्मेलन के भाषण का संदर्भ दिया था। महाराष्ट्र ने मरी हुई मां का दूध नहीं पीया हुआ है, बाघ की संतान है। जो कोई भी महाराष्ट्र के आड़े आएगा या फिर दबाने की कोशिश करेगा तो क्या होगा। इसका इतिहास में उदाहरण दर्ज है। भविष्य में देखना होगा तो देखने को मिलेगा और ऐसे संकटों का सामना करते हुए उन्हें खत्म करते हुए महाराष्ट्र आगे बढ़ता रहा है, महाराष्ट्र कभी रुका नहीं, महाराष्ट्र कभी रुकेगा नहीं। कोई कितना भी आड़े आएगा लेकिन उस आड़े आनेवाले को चित करके महाराष्ट्र आगे जाएगा। इसलिए महाराष्ट्र को चुनौती देनेवालों को मेरा कहना है कि ऐसी चुनौती देकर आप प्रतिशोध चक्र चलानेवाले होंगे तो प्रतिशोध चक्र में उलझने की हमारी इच्छा नहीं है। परंतु आपने इसके लिए मजबूर ही किया तो आप हमें हिंदुत्ववादी कहते हो ना तो फिर ठीक है। प्रतिशोध चक्र आपके पास, हमारे पास सुदर्शन चक्र है। हमारे पास भी चक्र है। हम पीछे लगा सकते हैं।

सवाल-पूरे देश में केंद्रीय जांच एंजेसियों का दुरुपयोग हो रहा है…


जवाब- हो ही रहा है।

सवाल--फिलहाल तो पूरी तरह सरेआम और बेशर्मी से जांच तंत्र का दुरुपयोग हो रहा है। महाराष्ट्र में भी अघोरी प्रयोग चल रहा है।

हां। सही है। मेरी हर हरकत पर नजर है। मैंने पहले भी कहा था कि मैं शांत हूं, संयमी हूं। लेकिन इसका मतलब मैं नार्मद नहीं हूं और इस तरह से हमारे परिजनों पर हमला शुरू हुआ है। यह तरीका कम-से-कम महाराष्ट्र को तो नहीं है। निश्चित तौर पर नहीं है। एक संस्कृति है। हिंदुत्ववादी कहे जाने के बाद एक संस्कृति हैं और आप परिवार पर आओगे, बच्चों पर आनेवाले होंगे तो हम पर हमला करनेवाले जिस-जिस का परिवार और बच्चे हैं उन्हें मैं कहना चाहता हूं कि आप का भी परिवार है और बच्चे हैं। आप दूध के धुले नहीं हो। आपकी खिचड़ी कैसे बनानी है ये हम बनाएंगे।

सवाल- इस सब का सरकार प्रतिकार करेगी।


जवाब--सरकार क्या, पूरा महाराष्ट्र करेगा। क्योंकि महाराष्ट्र में ऐसा विचार कभी पनपा ही नहीं। प्रतिशोध का विचार… शत्रु को पराजित करना है लेकिन इस तरह से बेवजह…राजनीतिक शत्रु का कांटा निकालना यह संस्कृति नहीं है।

सवाल- ऐसे तरीके का प्रतिकार ममता बनर्जी ने पूरी ताकत के साथ किया था।


करेंगी ना, बंगाल है ही। क्योंकि बंगाल और महाराष्ट्र की क्रांतिकारियों की एक परंपरा है। इसलिए क्रांति और पराक्रम इसी मिट्टी में जन्म लेते हैं। महाराष्ट्र को हम छत्रपति शिवाजी महाराज का महाराष्ट्र क्यों कहते हैं! क्योंकि उन्होंने आपका स्वराज्य स्थापित नहीं किया बल्कि अन्याय कदाचित ये जो बाहरी हमलावर आते हैं, आक्रामकता के साथ उनको वैसे मुंहतोड़ जवाब देना है वह शक्ति और प्रेरणा हमें दी है। इसलिए मेरा कहना ऐसा ही है कि राजनीति, राजनीति की तरह करो। उसमें आप सिर्फ सत्ता का दुरुपयोग करके हमला करनेवाले होंगे तो सत्ता सदा सर्वदा किसी के पास नहीं रहती है। पहले उनके प्रति भी वैâसे सब चल रहा था और उसमें भी वैसे केसेस थे, क्या थे। ये याद आता ही होगा। उस समय शिवसेनाप्रमुख ने किस तरह से उन्हें बचाया तो इसका थोड़ा भी भान होगा तो काल वैâसे बदल सकता है और आज के काल में भी सत्ता सिर्फ कुर्सी पर बैठे होने से नहीं बल्कि जनता की बड़ी ताकत है और वास्तविक सत्ता वही होती है जो कि हमारे साथ है।

सवाल- परंतु ईडी का इस्तेमाल हो रहा है। सीबीआई का भी शुरू था। अब आपने सीबीआई पर लगाम कस दी है…


जवाब- क्यों लगाई। आप सीबीआई का दुरुपयोग करने लगे तब ऐसी लगाम लगानी ही पड़ती है। ईडी क्या, सीबीआई क्या इस पर राज्य का अधिकार नहीं है? हम बताते हैं न नाम। हमारे पास नाम है। माल-मसाला तैयार है। पूरी तरह तैयार है लेकिन बदले की भावना से चले क्या? फिर जनता आपसे क्या अपेक्षा रखेगी। बदले की भावना से बर्ताव करना होगा तो तुम एक बदला लो, हम दस बदला निकालेंगे।

ये जो मसाला आपके पास है उसमें तड़का कब लगाएंगे।

इसलिए मैंने कहा न कि बदले की भावना से बर्ताव करना है क्या? मेरी आज भी दिली इच्छा है कि ये ऐसी विकृत वृद्धि की चाल तुम मत चलो। क्योंकि विकृति, विकृति ही होती है। उस रास्ते पर चलने की हमारी आज तो इच्छा नहीं है। हमें मजबूर मत करो।

उद्धव जी, इस सरकार के 1 वर्ष पूरे हो रहे हैं। इस 1 वर्ष के पन्ने पलटते समय आप वैसे महसूस कर रहे हैं?

एक वर्ष इस सरकार के पूरे हो रहे हैं। मैं ईमानदारी से कह रहा हूं। परंतु असल में, मैं शासन-प्रशासन इस श्रेणी का नहीं हूं। हमारा जो घराना है वह सेवाव्रती हैं। महाराष्ट्र की सेवा करनेवाली आज की ये हमारी छठवीं पीढ़ी है। आदित्य की पीढ़ी देखी तो और उस पीढ़ी पर एक संस्कार है। सहज एक मजेदार किस्सा बताता हूं…अभी बात करते-करते याद आ गया, मैंने अपनी दादी मतलब शिवसेनाप्रमुख की माताजी को कभी देखा नहीं था। परंतु मेरे दादाजी कहते थे अक्सर बालासाहेब भी बताते थे कि मेरी दादी को ऐसा लगता था कि अपना बेटा गवर्नमेंट सर्वेंट बनें। मेरी दादी के पुत्र ने मतलब गवर्नमेंट स्थापित की और उनका नवासा मतलब मैं गवर्नमेंट चला रहा हूं। तो यह ऐसा एक विलक्षण संयोग होता है। परंतु सरकार-विरकार ठीक है। हम जो हैं वह सबके सामने हैं। बार-बार उसकी पुनरावृत्ति करने की आवश्यकता नहीं है। एक आह्वानात्मक परिस्थिति में मुझे मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी स्वीकार करनी पड़ी। प्रशासन का अनुभव नहीं है, कुछ नहीं है। मनपा कई वर्षों से शिवसेना के पास होने के कारण सिर्फ मुंबई का महापौर निर्वाचित होने के बाद उनका अभिनंदन करने के लिए मैं महानगरपालिका के सभागृह जाता था।

प्रशासन पर नकेल कसे बगैर राज चलाना नहीं आता है…

कहता हूं ना, मेरे मुख्यमंत्री पद का कामकाज शुरू करने के बाद कोरोना जैसा महाभयंकर संकट आया। विगत 100 वर्षों के बाद आया। महाभयानक संकट था। उसमें मेरे तीन पार्टी के सहयोगियों ने और जो सरकार के समर्थक हैं। फिर वे बच्चू कडू है, सभी हैं। उन्होंने जो सहयोग मुझे दिया इसलिए मैं काम कर सका। एकदम सोच-समझकर हम जो कुछ भी काम कर रहे हैं। ये जो कुछ भी एकसूत्रीपन आया है यह उसके कारण संभव हुआ है।

प्रशासन चलाना ये अलग कुशलता है…
विशेष मतलब प्रशासन कहने के बाद तमाम सचिव मंडली आ गई। कुछ सचिवों से मेरी महापालिका के जरिए इससे भेंट हो चुकी थी, प्रेजेंटेंशन के समय। सभी सचिव मेरे परिचय में नहीं थे। उनमें से कुछ लोग तो कभी मुझे मिले ही नहीं थे। परंतु उन सभी लोगों ने पहले दिन से सहयोग की भूमिका बनाई। उनके भी मन में ऐसा था कि चलो अब वातावरण खुला हो गया है, अच्छा है। अब काम पर लगेंगे! ये जो कुछ भी सहयोग करते हैं वो महत्वपूर्ण है। पूरे राज्य के प्रशासन का तंत्र है। पुलिस है, राजस्व विभाग है। सभी का सहयोग मिल रहा है इसलिए, और इसलिए यह एक साल आराम से बीत गया तथा मेरा आत्मविश्वास है कि आगे के चार साल निश्चित तौर पर हम पार करेंगे ही। आगे के पांच साल के लिए जनता है ही, वह तय करेगी।

महाराष्ट्र देश को दिशा दिखानेवाला, मार्गदर्शन करनेवाला, प्रेरणा देनेवाला राज्य है। ऐसे राज्य का मुख्यमंत्री पद स्वीकारते समय ‘अभिमान’ महसूस हुआ क्या?
अभिमान हैं निश्चित तौर पर है। परंतु ऐसा दबाव मुझ पर कभी नहीं आया। क्योंकि सत्ता का उपभोग नहीं किया होगा फिर भी सत्ता को करीब से देखता आया हूं। शिवसेनाप्रमुख के कारण पहले से यह अनुभव लेता रहा हूं। साधारणत: सत्ता क्या होती है… यह करीब से देखा है। इसलिए दबाव कभी नहीं आया।

आपके जीवन में वर्ष में क्या बदलाव आए?
वर्षभर में एक बड़ा बदलाव आया वह मतलब मैं मेरे शिवसैनिकों से अर्थात उनकी मुलाकात से दूर हो गया। प्रत्यक्ष मुलाकात का अभाव महसूस होता है और इसकी वजह सिर्फ मुख्यमंत्री पद नहीं है। सहज ही है, कोरोना यह इसका एक मुख्य कारण है। यह जो कुछ भी हम बिल्ला लगाकर बैठे हैं, ‘मेरा परिवार, मेरी जिम्मेदारी’ इसलिए सभी से मुलाकात थम गई थी, परंतु बीते कुछ दिनों से मैंने पहले मेरे पदाधिकारियों से मिलना शुरू किया है। धीरे-धीरे अब दूसरों से भी मिलूंगा। यदि मैंने एकदम सब खोल दिया, सरेआम मेल-मुलाकात शुरू किया तो मुझे उनके भी जीवन की चिंता है क्योंकि वे उत्साह से मिलने आते हैं।

महाराष्ट्र ने पहली बार ऐसा मुख्यमंत्री देखा है जो खुद ड्राइविंग करते हुए मंत्रालय में जाता है। सह्याद्रि पर जाता है। वर्षा पर जाता है।
श्रीमान, पंढरपुर भी गया था, पुणे भी गया था।

ऐसा दृश्य महाराष्ट्र ने कभी देखा नहीं था। यह दृश्य तो प्रेरणादायी है। मजेदार भी है और मुख्यमंत्री के पांव जमीन पर हैं यह दिखानेवाले हैं।
जमीन पर हैं, क्लच पर हैं, ब्रेक पर हैं और एक्सीलेटर पर हैं तथा हाथ में स्टेअरिंग पर भी है।

आप ड्राइविंग क्यों करते हैं?
बता रहा हूं। कोरोना संकट आया है और सहज ही है, फासला रखो यह नियम लागू है। गाड़ी में ज्यादा लोग नहीं चाहिए। फिर मैंने सोचा कि मेरे सरकारी चालक हैं उन्हें भी मैं कितना दबाकर रखूं। कितना बंधन रखा जाय, फिर हर बार उनका कोरोना टेस्ट करो। तो यह तकलीफ न हो इसलिए मैंने ऐसी शुरूआत की तथा अब ड्राइविंग शुरू ही है। परंतु ऐसा कुछ नहीं है कि मैं गाड़ी चलाता ही रहूंगा, ठीक है। जब मुझे लगेगा, तब मैं गाड़ी में बैठकर सिर्फ सफर करूंगा। मुख्यमंत्री पद, उसके सिंहासन को कुछ लोग मानते हैं लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। मुख्यमंत्री भी इंसान ही होता है। प्रधानमंत्री भी इंसान होता है। सिर्फ अपने अंदर की इंसानियत कोई न गवाएं, जाने न दे, यह हर एक को देखना चाहिए। जिस दिन मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री के अंदर की इंसानियत मर जाएगी उस दिन वह प्रधानमंत्री अथवा वह मुख्यमंत्री बेकार होता है।

आपकी परंपरा है, ठाकरे परिवार की आप राजनीति से मानवता को श्रेष्ठ मानते आए हो…
हां। अन्यथा कोई राजनीति किसके लिए करें?

आपकी सरकार आने के बाद से मैं ऐसा देखता हूं कि आपकी सरकार को केंद्र से बिल्कुल भी सहयोग नहीं मिलता है। कई मामलों में आपको आर्थिक परेशानी होती है।


यह कई राज्यों की मुख्यमंत्रियों की शिकायत है!

ये राज्य सही से न चले ऐसी नीति और भूमिका केंद्र की ओर से ली जाती है। इन परिस्थितियों में महाराष्ट्र आत्मनिर्भर कब होगा?


महाराष्ट्र दृढ़ता से एक-एक कदम आगे बढ़ा रहा है। केंद्र और राज्य के संबंध में आप ठीक कहते हैं। परंतु मैंने पहले ही आपसे कहा था कि इंसानियत मरनी नहीं चाहिए। ठीक है कोई आज प्रधानमंत्री होगा। कल दूसरा होगा। परंतु असल में हम यहां क्यों बैठे हैं। यहां आपसे पार्टी का भेद भूलकर काम करने की अपेक्षा है। आप शपथ लेते हो न… सभी को समान न्याय आपको देना चाहिए। वह न देते हुए यदि तुम इसमें पक्षपात करते होंगे तो आप कुर्सी पर बैठने के लायक नहीं हैं। फिर मुझे ऐसा लगता है कि इस अत्यंत कठिन काल में महाराष्ट्र ने जो कुछ भी काम किया है वह इस २८ तारीख को हम जनता के सामने रख रहे हैं। न कहें तो भी एक पुस्तक ही बन गई है।

आपने कोरोना काल में महाराष्ट्र द्वारा किए गए कामों की सूची ही प्रधानमंत्री को दे दी है।
हां।

कोरोना के खिलाफ लड़ाई में महाराष्ट्र सबसे आगे है, ऐसा नजर आता है।
निश्चित तौर पर।

खासतौर पर ‘मेरा परिवार, मेरी जिम्मेदारी’ यह संकल्पना सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि दुनिया के लिए नई है और यह महाराष्ट्र में सफल होती नजर आ रही है।

मुझे यही कहना है कि सभी ने खूब सहयोग दिया है। एकदम यह मुहिम सफल बनाने में हमारे डॉक्टर हैं, स्वास्थ्यकर्मी हैं। आशा, आंगनवाड़ी सेविका, उसके बाद महसूल विभाग, पुलिस विभाग उसके बाद स्वयंसेवी संस्था सभी का ही इसमें अनमोल योगदान है। यदि सामान्य विचार करें तो आपके घर दो-तीन बार गई होंगी और ऊंची बिल्डिंग लिफ्ट नहीं होगी। तो भी दो-तीन बार पैदल ऊपर आते थे। पूछताछ करते थे। कोई कोरोनाग्रस्त है क्या? इस मुहिम का जो मेरा मकसद था एक तो जनजागृति करना, महाराष्ट्र के स्वास्थ्य की जांच, पूछताछ करना और जिसे हम हेल्थ मैप कहते हैं, वैâसा है महाराष्ट्र, महाराष्ट्र का स्वास्थ्य वैâसा है? उसमें अब कई लोगों ने खुद से दूसरी बीमारियों की भी जानकारी दी है। यह किस-किस को है। फिर कार्डिएक प्रॉब्लम किसे है, डायबिटीज किसे है, वैंâसर किसे है? अन्य बीमारी किसे है, किडनी की बीमारी किसे है। इन सभी की हमारे पास जानकारी दर्ज हो गई है।

ये आप इत्मिनान से समझाकर बता रहे हैं? लेकिन ये जो आप कह रहे हैं। वह कहते समय विरोधियों की ओर से आपकी लगातार आलोचना होती है…


नहीं। मेरा वाक्य आपने आधे में रोक दिया। मैंने आपसे कहा न कि किडनी विकार होगा, हृदय विकार होगा, ऐसे तमाम विकारों का हो गया परंतु दिमाग की बीमारी का उसमें लेना है। अब वे आलोचना करते होंगे तो इसमें मैं क्या करूं।

विरोधियों का ऐसा कहना है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री सिर्फ हाथ धोएं ऐसा कहने के अलावा क्या करते हैं…
ठीक है। हाथ धोते रहो। ज्यादा हावी होंगे तो हाथ धोकर पीछे लग जाऊंगा।

दिमाग के इलाज की प्रक्रिया शुरू है।
है… है… तैयारी है। दिमाग का इलाज मतलब सिर्फ चंपी, मालिश नहीं करेंगे।

आप महाराष्ट्र के शासक बने उस दिन से, उस समय से इस राज्य में अनाप-शनाप कारणों से अशांति और अस्वस्थता हैं, ऐसा आपने पहले कहा, कोरोना का संकट आया। उस संकट के कारण पूरे राज्य में, जनता में, मानसिक अशांति है फिर तूफान आए बाढ़ जैसे हालात निर्माण हुए, अतिवृष्टि हुई और अब उसमें अभी भी कोरोना का कहर खत्म नहीं हुआ है इसलिए ये अशांति अस्वस्थता आगे भी जारी रहेगी। ऐसा आपको लगता है क्या?

कोरोना के मामले में विषय नहीं बदलेगा तो मैं कहूंगा कि सामान्यत: वर्ष १९१८ में स्पेनिश फ्लू नामक महामारी आई थी और यह महामारी दुनियाभर में लगभग दो से ढाई साल रही थी। हमारे देश में लगभग 1 करोड़ के आसपास जनता मौत के मुंह में समा गई थी। उसके बाद अभी यह दूसरी महामारी आई है और लहर के पीछे लहर आ रही है। इसलिए मैंने ऐसा कहा है कि लहर-कहर तो समुद्र किनारे की याद आती है। समुद्रतट अन्य समय में बहुत ही आकर्षक होता है, हवा आती रही है। अच्छा सूर्यास्त, सूर्योदय नजर आता है। परंतु लहर देखकर आगे जाना पड़ता है और एक लहर जाने के बाद दूसरी आती रहती है। अत: सावधानी बरतना अपना कर्तव्य है। इसलिए ‘मेरा परिवार, मेरी जिम्मेदारी’ यह जनजागृति मुहिम हमने शुरू की है। जनता की स्वास्थ्य की पूछताछ की। उचित इलाज का इंतजाम भी किया। चिकित्सा सुविधा भी निर्माण की। परंतु अन्य समय में खुद की सुरक्षा का ध्यान खुद रखना चाहिए। वैक्सीन के बारे में माननीय प्रधानमंत्री ने परसों ही वीडियो कॉन्फेंसिंग की। अभी भी कोई वैक्सीन हाथ में नहीं आई है। कब आएगी पता नहीं।

हां, परंतु पुणे में प्रधानमंत्री मोदी का दौरा है।

हां, पुणे में दौरा है। परंतु उन्होंने ही कल कहा कि अभी भी वैक्सीन हाथ में नहीं आई है। इस दौरे में मुझे नहीं पता निश्चित तौर पर क्या होगा।

सीरम इंस्टीट्यूट में जाते हैं।
अच्छा है। अच्छे काम को हम हमेशा शुभकामना देते हैं। अच्छा काम वे करें। मैंने उन्हें सुझाया कि कोरोना के संदर्भ में देश के लिए एक नीति तय करें, ऐसा मैंने उन्हें कहा। इस विषय पर परसों भी चर्चा हुई परंतु वैक्सीन कब आएगी पता नहीं। हमें १२ कोटी जनता को चरणबद्ध तरीके से देना है… फिर प्रधानता के आधार पर किसे देना है… बहुतेक जो कंपनियां हैं। उनके बूस्टर डोज हैं। मतलब हर किसी को दो बार तो वैक्सीन देनी ही होगी। मतलब इसमें बहुत समय जाएगा। और यह वैक्सीन देने के बाद प्रतिबंधात्मक शक्ति कितने दिन में आएगी और कब तक टिकेगी? इसका जवाब नहीं। मतलब क्या मास्क लगाओ, फासला रखो और हाथ धोइए यही फिलहाल उपाय है। हाथ धोकर पीछे लगना है कि नहीं, यह अपना-अपना सवाल है। लेकिन इन तीन बातों से वायरस हमसे दूरी रखेगा यह वैश्विक सच्चाई है।

कोरोना का यह संकट दूसरे विश्वयुद्ध से भी भयंकर है। प्रधानमंत्री यह स्वीकार करते हैं। परंतु महाराष्ट्र में उद्योग,रोजगार, आर्थिक ऐसे सभी क्षेत्रों को फटका लग रहा है।
ऐसे हालात पूरी दुनिया में है।

हां सही है। लेकिन हम महाराष्ट्र के बारे में सोचें। एक तरफ आर्थिक नुकसान हो रहा है उस पर नए सिरे से एक बार फिर हम प्रतिबंध लगाते हैं तो जनता में आक्रोश होने की आशंका सतत व्यक्त की जा रही है…

मुझे नहीं लगता है… नई पाबंदियां नहीं चाहिए होंगी तो जनता को यह त्रिसूत्रीय नियम पालने होंगे। क्योंकि इन नियमों के अलावा पार लगने का कोई उपाय नहीं है और लॉकडाउन का भी जो मुद्दा था, आप कहते हैं कि वह पुन: आगे लगाना पड़ेगा क्या? तो आप क्या स्वीकार करेंगे? जीवन या खतरा, यह तय करो। और मुझे ऐसा लगता है कि लगभग पूरा महाराष्ट्र हमने खोल दिया है। उसे पुन: बंद किया जाए, ऐसी मेरी क्या किसी की भी इच्छा नहीं है। परंतु बंद न होने देना यह हम सभी का काम है। यदि हमने अनावश्यक भीड़ की, अनावश्यक जगह गए, बेवजह गए, मास्क लगाए बगैर घूमें, हाथ नहीं धोएं, फासला नहीं रखा तो क्या? दो दिशाएं हैं। हमें किस दिशा में जाना है।

लेकिन विरोधी दल के नेतृत्व में लोग सड़कों पर उतरकर आंदोलन कर रहे हैं?
इसे मैं आंदोलन नहीं कहता। दुर्भाग्य है। माननीय प्रधानमंत्री से मैंने कल यही बात कही। आप ये सब जो कह रहे हैं, आपके मार्गदर्शन में ये लड़ाई हम लड़ रहे हैं, आप नेतृत्व कर रहे हैं। ऐसा करते समय कुछ राजनीतिक दल सड़कों पर उतरकर सारे नियम तोड़कर आंदोलन कर रहे हैं। इसी प्रकार सारे राजनीतिक दलों के नेताओं का भी मार्गदर्शन करके उन्हें समझाएं।

आपने ऐसा कहा क्या कि बीजेपी नेताओं को इंजेक्शन देना चाहिए?
ऐसा नहीं कहा…

लेकिन एक डोज विरोधी दल को देना चाहिए।
आखिरकार राजनीति में भी एक सीमा है। प्राथमिकता क्या है, वो है जनता। अगर उस जनता की जिंदगी और स्वास्थ्य का तुम्हें खयाल नहीं होगा तो तुम वैâसे सत्ताधीश और राजनीतिज्ञ? पहली मूलभूत वही बात है कि अगर किसी को जनता की जान की परवाह नहीं होगी तो वह राजनीति में रह ही वैâसे सकता है? उसे राजनीति में नहीं रहना चाहिए क्योंकि ऐसे लोगों के हाथ में अगर पूरा महाराष्ट्र गया तो महाराष्ट्र का क्या होगा, ये नहीं कहा जा सकता।

इस दौरान शिक्षा भी गड़बड़ाई।
दुर्भाग्यपूर्ण है…

महाराष्ट्र शिक्षा के मामले में अत्यंत प्रगतिशील राज्य है। महाराष्ट्र के विश्वविद्यालय हों या शैक्षणिक संस्थाएं हों, उन्होंने उच्च दर्जे की शिक्षा देकर देश और दुनिया में उच्च दर्जे का नागरिक निर्माण किया है। शिक्षा के संदर्भ में भविष्य में सरकार क्या कदम उठानेवाली है?

शिक्षा शुरू रखने के लिए हम हर प्रकार से प्रयास कर रहे हैं। इस कालावधि में वर्क फ्राॅम होम का उदय हुआ है। कुल मिलाकर, मेरा मानना है कि मैंने पिछले साक्षात्कार में भी कहा होगा कि कोरोना हमें भूतकाल में ले गया है कि भविष्यकाल में? मेरा मानना है कि भविष्यकाल में ले गया है। इसका कारण ये है कि जिन सुविधाओं की खोज और उपलब्धता है उसका उपयोग कल घर बैठे किए जाने के लिए ही है। ऐसा है ही। हम कई लोग फिलहाल घर बैठकर ही काम कर रहे हैं। मैंने शुरुआती दौर में ऐसा पढ़ा था, चीन के संदर्भ में एक लेख आया था, हमारे कुछ मराठी लोग वहां रहते हैं। ये उनके द्वारा लिखा लेख था। उन्होंने अपने लेख में लिखा कि यहां उस दौरान पूरे समय कड़ा लॉकडाउन था। चीन अब उससे बाहर निकल आया है। चीन से कोरोना की खबरें अब नहीं आ रहीं। कुछ भी कहो, चीन ने अनुशासन का पालन किया होगा, अनुशासन का पालन करवाया होगा। लेकिन उस दौरान चीन ने बाकी चीजें इतनी मजबूती से रखीं कि कहीं कोई बात नहीं अटकी, शिक्षा नहीं रुकी, काम-काज नहीं रुका। सब कुछ वर्क प्रâॉम होम से चलता रहा इसलिए उनका अर्थचक्र चलता रहा, ऐसा उस लेख में लिखा गया था। तो इन सारी बातों का प्रयास हमने अपने महाराष्ट्र में किया है।

लेकिन शिक्षा का क्या करेंगे?

हम ऑनलाइन शिक्षा का प्रयास कर रहे हैं। नौवीं से बारहवीं के स्कूल खोलने का निर्णय हमने लिया था लेकिन कई देशों में जहां सब कुछ शुरू कर दिया गया था, वहां के स्कूलों के शिक्षक और विद्यार्थी कोरोना संक्रमित हो गए। उन्हें फिर से सब बंद करना पड़ा। ये जान से खेलने जैसा है। इसलिए मुझे ऐसा लगता है कि कल मैंने जो माननीय प्रधानमंत्री से बात कही कि पूरे देश के लिए एक नीति तय कीजिए। ये राज्य खुला है… वो राज्य बंद है… वहां कोरोना बढ़ गया इसलिए उस राज्य को बंद कर दो… यहां कम है इसलिए यहां खोल दो… इसकी बजाय नियम लागू कर दो कि हमें अगला साल सुरक्षित निकालना है। फिर शिक्षा के बारे में भी राज्य और केंद्र को एक-दूसरे से सहयोग करके कुछ करना चाहिए। आप क्या कर सकते हो? टीवी चैनल्स दे सकते हो क्या? ऑनलाइन के लिए भी आप हमें तुरंत नेटवर्किंग सुविधा देते हो क्या? हम तो कर ही रहे हैं, लेकिन दशहरा के भाषण में मैंने कहा था कि ३८ हजार करोड़ केंद्र के पास बाकी है। उसमें से 4-5 हजार करोड़ आए हैं… फिर वह बढ़ गया… अब फिर से 37-38 हजार करोड़ रुपए आने बाकी हैं।

इसलिए महाराष्ट्र का विकास बाधित हो रहा है…

हां। विकास बाधित हो रहा है।

किसानों का मामला प्रलंबित है। किसानों की मदद नहीं हो रही?

नहीं… मदद हो रही है। बिल्कुल हो रही है। किसानों के मामले में मैं एक बात अवश्य कहूंगा अब सारे मामलों में परिस्थिति विकट है। इस विकट परिस्थिति में भी हमसे जो कुछ हो सका वो करके सबका संतुष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन जो शुरुआत आपने की उसमें एक बात की संतुष्टि अवश्य है कि जिन किसानों का फसल का कर्ज २ लाख तक का है, ऐसे लगभग साढ़े २९ लाख किसानों का कर्ज आसानी से माफ करके उन्हें कर्जमुक्त कर दिया है। यहां से हमने शुरुआत की है।

हां… मुख्यमंत्री बनने से पहले आप एक बहुत बड़ा सपना किसानों के लिए लेकर आए थे।

उनके लिए इस योजना को हम ला रहे हैं। बदलते समय की तरह हमें क्या बदलना चाहिए? अपनी शैली बदलनी चाहिए क्या? मैं एक विचार कर रहा हूं और उस पर मेरा काम शुरू है। वो ये है कि जो बेचना है वही पैदा करो। मतलब क्या, कि जिसका बाजार है, उसकी ही खेती करें। जिसकी मांग है, वही पैदा करें।

मंडी कैसे तैयार करेंगे?


मंडियों के लिए एक बड़ी योजना है और उस योजना को हमने करीब-करीब अंतिम स्वरूप तक पहुंचा दिया है। किस फसल की मांग है, किस वस्तु की मांग है। वह किस क्षेत्र में अच्छे ढंग से तैयार होती है। वहां किसानों को एकत्रित करके उनका समूह बनाया जा सकता है क्या? फिर किस फसल की ज्यादा मांग है? उसे उसी ढंग का बीज देना चाहिए। वह किस मौसम में पैदा होता है? वह किस जमीन में उगाई जाती है? ऐसे अलग-अलग विभाग बनाना चाहिए और उसकी मार्टिंग व मंडी की भी सुविधा उपलब्ध कराकर देना चाहिए। इन सभी बातों पर विचार शुरू है। कारण क्या था कि किसानों को एक बार कर्जमुक्त किया फिर भी अगले वर्ष बेचारों को कर्ज लेना ही पड़ता है। उसे बिना कर्ज के जीना आना चाहिए। मतलब एकाध को मंडी उपलब्ध कराकर देने को ही हम समर्थन मूल्य कहते हैं न.. उसके बदले एक निश्चित भाव देना चाहिए।

उद्योग और रोजगार ये अत्यंत महत्वपूर्ण दो समस्या केवल महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि पूरे देश में है। निश्चित ही है। बिहार का पूरा विधानसभा चुनाव ही रोजगार के मुद्दे पर लड़ा गया। तेजस्वी यादव ने शुरुआत की इसलिए भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड को भी इसी मुद्दे को लेकर चुनाव लड़ना पड़ा। महाराष्ट्र में भविष्य में रोजगार पैदा करने का विषय आपको कितना गंभीर लगता है? क्योंकि आज उद्योग बंद हैं।


नहीं। आज सभी उद्योग बंद नहीं हैं। हमने लगभग सभी उद्योग शुरू कर दिए हैं। आप सबको मालूम है कि जून महीने में लगभग १७ हजार करोड़ और उसके बाद लगभग ३५ हजार करोड़ का सामंजस्य करार किया गया है। ठीक है… सामंजस्य करार का मतलब हर उद्योग शुरू नहीं, लेकिन वह करते समय सिर्फ हस्ताक्षर नहीं किया। उन उद्योगों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए हमने उद्योग क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन किया है। मतलब अनुमति की शर्तों को वैâसे कम किया जाए। उसके बाद कुछ अनावश्यक अनुमतियां भी लगती हैं। वे रद्द की जा सकती हैं क्या इस पर कार्य किया। एक बात और बताता हूं कि शुरुआत में जो १५-१७ हजार करोड़ का ‘एमओयू’ किया, उसका लगभग ६० से ७० प्रतिशत काम पूर्ण हो गया है। किस मामले में तो उनकी जो प्राथमिक बातें होती हैं… जगह लेने-देने… ये सभी काम पूरे हो चुके हैं।

लेकिन महाराष्ट्र से उद्योग स्थानांतरित करने का प्रयास शुरू है।
ले जाने दो न… करने दो न प्रयास… जिन्हें ले जाने का प्रयास करना है, करने दें। मुझे मेरे महाराष्ट्र पर अभिमान और आत्मविश्वास है। इसी वजह से मैं इसकी चिंता नहीं करता। स्थानांतरित करने के अलावा वे दूसरा और क्या कर सकते हैं?

कुछ केंद्रीय परियोजनाएं होंगी…
होंगी।

केंद्रीय कार्यालय होंगे…
यह भी सत्ता का दुरुपयोग ही है। जहां सबकुछ ठीक चल रहा है, आज आपके पास सत्ता है इसलिए उसे भी आप दूसरी जगह ले जाएंगे… कल हमारी सत्ता केंद्र में आई तो हम फिर से ले आएंगे।

मतलब मुंबई जैसे शहर का या महाराष्ट्र का महत्व कम करना ये एक राष्ट्रीय नीति दिख रही है…
प्रयास करने दीजिए। यह इतना सरल है क्या? लेकिन महाराष्ट्र सरकार इसे वैâसे रोकेगी? महाराष्ट्र सरकार मजबूत है। प्रयास करने दीजिए। उल्टा मैं भी कहता हूं कि उन्हें प्रयास करने दो!

लेकिन महाराष्ट्र सरकार इसे कैसे रोकेगी?
महाराष्ट्र सरकार दृढ़ है। प्रयत्न करने दो… बल्कि मैं ही कहता हूं, प्रयत्न करने ही दो।

उद्धव जी, मुझे लगता है कि अब भविष्य में सबसे बड़ी कोई राजनीतिक लड़ाई है तो वह मुंबई महानगरपालिका की… जो महाराष्ट्र की राजधानी है…
मुझे नहीं लगता।

कई वर्षों से इस महापालिका पर शिवसेना का भगवा लहरा रहा है। यह भगवा उतारने की भाषा अब जोरों से शुरू हो गई है…
इसीलिए तो मैं कहता हूं कि मुझे नहीं लगता है किसी से यह हो पाएगा। क्योंकि लड़ाई यह उनके लिए है। मेरे लिए मेरे मुंबईकर ही हैं, ये मुझे मालूम है… और पिछले 20-25-30 ऐसे कई वर्षों से उनका शिवसेना पर प्रेम है। ऐसा विश्वास उन्होंने दिखाया है। इसी वजह से उनके विश्वास की अटूट घेराबंदी का मजबूत गढ़ है… और इसलिए जिन्हें लड़ाई करने की इच्छा होगी, उन्हें इस घेराबंदी पर सिर पटककर देखना चाहिए। भगवा उतारना तो छोड़ दीजिए, पहले इस घेराबंदी पर सिर पटककर देखिए। कारण मेरे मुंबईकरों के प्रेम और विश्वास की अटूट घेराबंदी इस मुंबई और महापालिका के साथ है और उस पर मुंबईकरों द्वारा फहराया गया भगवा… वो किसी को भी अपने पास आने नहीं देगा।

वो भगवा शुद्ध नहीं है, ऐसा उनका कहना है… शुद्ध नहीं है मतलब क्या, अब ये मैं खोजने का प्रयत्न कर रहा हूं। यह भगवा शुद्ध नहीं, इसकी व्याख्या आप कैसे करेंगे?
(मुस्कुराते हुए) भगवा शुद्ध नहीं मतलब… आप ही ने अग्रलेख में यह मुद्दा उठाया था कि बिहार में क्या लहराया? वहां कौन-सा कपड़ा लहराया। फिर वहां क्यों नहीं भगवा लहराते हो तुम? और भगवा का तो ठीक है… वहां जम्मू-कश्मीर में तिरंगा फहराइए न हिम्मत है तो… वहां किसी की सिर उठाकर देखने की हिम्मत नहीं होती… और अन्य जगहों पर जो फहराया, वो कौन-सा कपड़ा था आपका? वो शुद्ध है क्या? किस-किस के साथ वैसी युति की आपने? वैसा जोड़-तोड़ किया? बिहार में ‘संघमुक्त भारत’ कहनेवाले नीतीश कुमार के साथ आपने युति की… वह आपका कौन सा भगवा है…? पहले ये बताओ, आपके पास भगवा है क्या?

उन्होंने ‘मोदीमुक्त भारत’ भी कहा था…
हां, कहा था… वो उन्हें प्यारा है… यह उनकी शुद्धता की व्याख्या है तो यह हमें मंजूर नहीं… हम जो करते हैं वो आमने-सामने करते हैं। मन में रखकर कुछ नहीं करते।

(सामना से साभार के साथ)

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