विद्या सिन्हा: एक सीधी सरल लड़की जिसके साथ ‘न जाने क्यों होता है ये जिंदगी के साथ’

रूपहले पर्दे पर वे अपने दौर की किसी भी अभिनेत्री से कम सुंदर नहीं नजर आती थीं। वे आदर्श भारतीय लड़की का रोल मॉडल सीथीं। उनकी सुंदरता बेहद सहज सरल सी लगती थी। यही उनकी पहचान भी थी। लेकिन अपनी इसी पहचान की वजह से वे उतना कुछ हासिल नहीं कर सकीं जिसकी वे हकदारथीं। उनका नाम था विद्या सिन्हा।

फोटो : सोशल मीडिया
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इकबाल रिजवी

15 नवंबर 1947 को मुंबई में जन्मी विद्या के पिता प्रताप सिन्हा फिल्म प्रोड्यूसर थे। उनके दादा मोहन सिन्हा भी प्रोड्यूसर थे, जिनकी 1948 में बनाईं विद्या और जीत नाम की दो फिल्में चर्चित रहीं। जब विद्या छोटी ही थीं तो उनकी मां का निधन हो गया। पिता ने दूसरी शादी करी तो नानी ने विद्या को अपने पास रख लिया। नानी और मौसी ने ही विद्या की परवरिश की। अभी विद्या कॉलेज में पहुंची ही थीं कि उनकी मौसी ने उन्हें मिस बॉम्बे प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिये प्रोत्साहित किया। 1968 में वे मिस मुंबई बनीं तो खुद ही अपनी उपलब्धि पर चौंक पड़ीं।

उन्हें मॉडलिंग के मौके मिले और वे कॉलगेट और लिपटन टी सहित कुछ कपड़ा मिलों के विज्ञापन में नजर आने लगीं। अपनी नयी जिम्मेदारी को अभी विद्या ने निभाना शुरू ही किया था कि पड़ोस में रहने वाले और स्कूली दिनो के साथी वेंकेटेश्वर अय्यर से उन्होंने प्रेम विवाह कर लिया। तभी विद्या सिन्हा के जीवन में एक और चौंकाने वाली घटना घटी। उन्हें फिल्म राजा काका में उस दौर के सुपर स्टार राजेश खन्ना के साथ काम करने का ऑफर मिला। विद्या की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह सब क्या हो रहा है। ससुराल वाले विद्या के फिल्मों में काम करने के पक्ष में नहीं थे। ऐसे मौके पर विद्या के पति ने उनका पक्ष लिया और घर वालों को राजी कर लिया।


इधर राजा काका बन ही रही थी कि निर्देशक बासु चटर्जी की नजर साड़ी के एक विज्ञापन पर पड़ी जिसमें विद्या सिन्हा ने मॉडलिंग की थी। बासु ने विद्या को फिल्म रजनी गंधा (1974) के लिये साइन कर लिया। रजनी गंधा पहले रिलीज हुई और चर्चित भी हुई। इसमें योगेश के लिखे और सलिल चौधरी के संगीतबद्ध किये गए सिर्फ दो गीत हैं “कई बार यूं भी देखा है, ये जो मन की सीमा रेखा है” और “रजनी गंधा फूल तुम्हारे”. दोनों गीत आज भी पसंद किये जाते हैं। रंजनी गंधा को फिल्म फेयर का बेस्ट फिल्म का अवार्ड मिला। इसके गीत कई बार यूं भी देखा है ... के लिये मुकेश को फिल्म फेयर का सर्वश्रेष्ठ गायक का अवार्ड मिला।

रजनी गंधा तो हिट हो गयी लेकिन राजा काका फ्लाप साबित हुई। विद्या को तब बड़ा आश्चर्य हुआ कि रजनी गंधा के बाद उनके पास किसी फिल्म का ऑफर तक नहीं आया।

कुछ समय बाद बासु चटर्जी ने ही विद्या को फिर मौका दिया। इस बार उनकी फिल्म थी छोटी सी बात (1976)। एक बार फिर इस फिल्म की लोकप्रियता में सलिल चौधरी के संगीत और योगेश के गीतों ने अहम भूमिका निभायी। फिल्म संगीत प्रेमी आज भी इसके गीतों “ना जाने क्यों, होता है ये जिंदगी के साथ” और “जानेमन जानेमन तेरे दो नयन” भूले नहीं हैं। इसके बाद विद्या सिन्हा की फिल्मों का सिलसिला शुरू हो गया। विद्या सिन्हा की सीधी, सरल और घरेलू लड़की की छवि इतनी मजबूत हो गयी थी कि उन्हें ग्लैमरस रोल ही नही मिले। अपनी छवि को तोड़ने के लिये उन्होंने चालू मेरा नाम, इनकार और मुकद्दर जैसी फिल्में कीं। राजेश खन्ना के साथ एक और फिल्म कर्म में काम किया लेकिन अपनी छवि को तोड़ने में विद्या नाकाम रहीं।


विद्या के फिल्मी जीवन में फिल्म ”मुक्ति” एक अहम पड़ाव साबित हुई। इसमें विद्या का शशि कपूर और संजीव कुमार जैसे मंझे हुए कलाकारों के साथ अभिनय मुकाबला था और विद्या कहीं भी कमजोर नहीं पड़ीं। उनकी एक और अहम फिल्म संजीव कुमार के साथ पति पत्नी और वो थी। इतना सब होने के बाद विद्या सिन्हा को स्टार का दर्जा नहीं मिल सका। 1974 से 1984 के बीच उन्होंने करीब 30 फिल्मों में काम किया लेकिन सीधी सादी और घरेलू लड़की की भूमिकाएं निभाते-निभाते वे इतना ऊब गयीं कि उन्होंने अचानक फिल्मों से संन्यास ले लिया।

फिल्मों से संन्यास से पहले निजी जीवन में भी सीधी और सरल सी विद्या ने बहुत हिम्मत का काम कर डाला। 1977 में जनता पार्टी की सरकार के दौरान जब इंमर्जेंसी में लोगों पर हुए प्रशासनिक अत्याचार की शिकायतें दर्ज करने का सिलसिला शुरू हुआ तो विद्या ने भी अपनी शिकायत दर्ज करायी। फिल्मों से संन्यास के बाद विद्या अपने पति और बेटी के साथ पुणे में बस गयी। 1996 में उनके पति की मृत्यु हो गयी। साल 2001 में विद्या ने दूसरी शादी की लेकिन शादी रास नहीं आयी और 2009 में उनका तलाक हो गया।

इस बीच बेटी के बार-बार कहने पर विद्या ने अभिनय की दुनिया में फिर कदम रखा। इस बार शुरूआत टीवी से की। उनका पहला धारावाहिक तमन्ना था, इसके बाद वे बहुरानी, हम दो हैं ना, काव्यांजलि, भाभी और कुबूल है जैसे अनेक धारावाहिकों में नजर आईं। इस बीच उन्होंने कुछ फिल्में भी कीं। उनके अभिनय की दूसरी पारी में चर्चित फिल्म सलमान खान की बॉडीगार्ड (2011) थी। हाल ही में आया धरावाहिक 'कुल्फी कुमार बाजेवाला' विद्या का अंतिम टीवी सीरियल साबित हुआ। इस सीरियल में विद्या ने सिकंदर की मां का रोल निभाया था।

विद्या को छह दिन पहले फेफड़े संबंधी समस्या के कारण मुंबई के अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन 15 अगस्त 2019 की दोपहर 71 साल की उम्र में विद्या ने आखरी सांस ले ली।

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