जो सीन सिमी ग्रेवाल ने दिए, वैसी हिम्मत कोई दूसरी अभिनेत्री कर ही नहीं सकी

सिमी के बदन को कलात्मक रूप से शशिकपूर की फिल्म ‘सिद्धार्थ’ में बहुत सुंदरता के साथ दर्शाया गया। हालांकि सिमी ने खुद को कभी बोल्ड अभिनेत्री के रूप में स्थापित नहीं किया। इससे उलट उनकी छवि एक सीधी साधी आधुनिक भारतीय नारी की रही। जो साड़ी में बेहद जंचती है।

फोटो: सोशल मीडिया 
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इकबाल रिजवी

प्यार में हारे हुए इंसान का रोल सिमी ग्रेवाल ने कई फिल्मों में किया और हर बार उनकी दर्द भरी मुस्कुराहट दर्शकों की आंखें नम कर देती थीं। और जब उन्होंने बोल्ड सीन दिया, तो हिंदी फिल्मों में तहलका मच गया। ऐसा सीन देने की हिम्मत इससे पहले कोई हिरोइन नहीं कर सकी थी। क्या हुआ कि वे कम फिल्मों में आयीं, लेकिन जितनी फिल्में भी कीं वो दर्शकों को याद रहीं।

दिल्ली में 17 अक्टूबर 1947 को जन्मी सिमी की पढ़ाई इंगलैंड में हुई। उनके पिता सेना में थे। इंगलैंड में ही हिंदी फिल्मों के प्रति उनकी दीवानगी इतनी बढ़ी कि वे फिल्मों में काम करने का सपना लिये मुंबई आ गयीं। उनके शालीन सौंदर्य, कुछ कुछ विदेशी लुक और अंग्रेजी लहजे की वजह से उन्हें फौरन काम मिल गया।

फिल्म “टॉरजन गोज़ टू इंडिया” (1962) में सिमी को पहला मौका मिला। इसमें उनके हीरों थे फिरोज खान। यह फिल्म नाकाम रही। इसी साल उनकी फिल्म “राज की बात” और “सन ऑफ इंडिया” भी रिलीज हुईं, लेकिन इनमें से कोई भी सिमी को अभिनेत्री के रूप में स्थापित नहीं कर सकी।

सिमी को पहचान मिली देवानन्द की फिल्म तीन देवियां (1965) से। और फिर, इसी साल रिलीज हुई “जौहर महमूद इन गोवा“ भी उनकी चर्चित फिल्म रही। सिमी एक खूबसूरत गुड़िया के रूप में पहचानी जाने लगीं। एक काबिल अभिनेत्री के रूप में सिमी राज खोसला निर्देशित फिल्म दो बदन (1966) से स्थापित हुईं। इसमें उनका अभिनय इतना सहज और असरदार था कि उन्हें बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का फिल्म फेयर का अवार्ड मिला। 1968 में राजेंद्र कुमार वैजयंती माला के साथ आयी उनकी फिल्म “साथी” के लिये उन्हें फिर बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का फिल्म फेयर का अवार्ड दिया गया। इसी साल उनकी एक और चर्चित फिल्म “ आदमी” रिलीज हुई।

सिमी अपने दौर की अभिनेत्रियों जैसे साधना, वहीदा रहमान, वैजयंती माला, माला सिन्हा और शर्मीला टैगोर जैसी अभिनेत्रियों की लीग में तो कभी शामिल नहीं हो सकीं लेकिन उन्होंने अपना अलग मकाम जरूर बना लिया।

और फिर राजकपूर के ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में फिल्म मेरा नाम जोकर (1970) रिलीज हुई। जिससे सिम्मी रातों रात अंतर्ष्ट्रीय ख्याति की स्टार बन गईं। हांलाकि मेरा नाम जोकर में सिमी का छोटा सा रोल था। वो एक टीचर हैं और उनकी क्लास में पढ़ने वाला बारह साल का बच्चा उनसे प्यार करने लगता है। इस बच्चे का किरदार ऋषि कपूर ने निभाया था। फिल्म के एक सीन में पानी में भीगी हुई सिमी झाड़ियों के पीछे कपड़े बदलती हैं। इसी सीन मे राज कपूर ने उन्हें पूरी तरह न्यूड दिखाया। यह दृश्य आज भी हिंदी फिल्मों के सबसे चर्चित दृश्यों में गिना जाता है।

इसके बाद सिमी के बदन को फिर कलात्मक रूप से शशिकपूर की फिल्म सिद्धार्थ (1972) में बहुत सुंदरता के साथ दर्शाया गया। हांलाकि सिमी ने खुद को कभी बोल्ड अभिनेत्री के रूप में स्थापित नहीं किया। इससे उलट उनकी छवि एक सीधी साधी आधुनिक भारतीय नारी की रही। जो साड़ी में बेहद जंचती हैं। राजकपूर के साथ ही सिमी को महान फिल्मकार सत्यजीत रे की बंग्ला फिल्म “अरण्ये दिन रात्रि” में भी काम करने का मौका मिला। “मेरा नाम जोकर” और “अरण्य दिन रात्रि” की वजह से सिम्मी की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान स्थापित हुई।

अपने आस पास रहस्य का घेरा सा बनाए रहने वाली सिमी ने दिल्ली के प्रतिष्ठित परिवार के सदस्य रवि मोहन से शादी की. लेकिन यह शादी बहुत दिनो तक टिक नहीं सकी और दोनो अलग हो गए।

मेरी नाम जोकर से सबको चौंकाने के बाद सिमी ने एक बार फिर सुभाष घई की ब्लॉक बस्टर फिल्म ‘कर्ज’ से सबको चौंका दिया। सिमी के नर्म नाजुक लहजे और चेहरे की मासूमियत को देखते हुए उनसे उस रोल की उम्मीद भी नहीं की जा सकती थी जो उन्होंने सुभाष घई की ‘कर्ज’ में निभाया। ‘कर्ज’ में सिमी ने निगेटिव रोल किया। ऐसी खूंखार औरत का रोल जो अपने पति की हत्या करवाने में भी नहीं हिचकती।

इसके अलावा “आदमी , “अंदाज”, “अनोखी पहचान”, “ नमक हराम”, “हाथ की सफाई”, “कभी कभी”, “नाच उठे संसार”, “चलते चलते”, “बीवी ओ बीवी”, “हथकड़ी”, “एहसास” और “प्रोफेसर प्यारे लाल” सहित सिमी ने करीब 80 फिल्मों में काम किया। नब्बे के दशक तक सिमी के पास फिल्मों में काम बहुत कम रह गया था। तब वे डॉक्यूमेंट्री फिल्मों की ओर मुड़ीं। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और राजकपूर पर ऐसी डॉक्यूमेंट्री बनायी जिनकी चर्चा अंतर्राष्ट्रीय स्तर हुई। 1999 में सिमी टीवी पर एक टॉक शो ‘रौनदेवू विद सिमी ग्रेवाल’ लेकर आयीं। सिमी अपनी जिंदगी से संतुष्ट हैं लेकिन एक मलाल जरूर है कि वे मां नहीं बन सकी।

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