यूपी उपचुनाव में झटके के बाद अखिलेश ने बदला दाव, परिवार को एक कर मूल वोटबैंक वापस लाने में जुटे

मुलायम सिंह के बाद कार्यकर्ताओं में शिवपाल यादव की ही पकड़ है। जिस प्रकार से बीजेपी का अश्वमेघ घोड़ा लगातार बढ़ रहा है, उसे रोकने के लिए समाजवादी पार्टी को पूरी ताकत लगानी होगी। इसके लिए यादव परिवार के कुनबे को एक होना ही होगा। यही उसकी पहचान थी।

फोटोः सोशल मीडिया
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आसिफ एस खान

हाल में आए उत्तर प्रदेश उपचुनाव में समाजवादी पार्टी को मिली हार के बाद पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव अब अपने मूल वोटबैंक वापस लाने की ओर जुट गए हैं। इसी कारण उनकी ओर से चाचा शिवपाल यादव को सरकार बनने पर कैबिनेट मंत्री बनाने की बात कही गयी है। अखिलेश की यह पहल परिवार को एक करके अपने मूल वोटबैंक को वापस लाने की कोशिश की ओर संकेत दे रही है।

क्योंकि यादव परिवार में फूट के बाद समाजवादी पार्टी को लगातर नुकसान हुआ है। शायद यही एका की बात कहकर वह अपने परंपारागत वोट बचा लें। क्योंकि बीजेपी का जो विजय रथ चल रहा है, उसे रोक पाने के लिए अखिलेश को शिवपाल को अपने पाले में लाना जरूरी है। उनकी पार्टी में नौजवान भले हों, लेकिन अभी शिवपाल जैसे अनुभव वाले नेताओं की कमी साफ झलकती है।

वहीं उपचुनाव के नतीजों से प्रदेश के विपक्षी दलों को अपने भविष्य की चिंता भी सता रही है। यही कारण है कि बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने प्रदेश अध्यक्ष बदलकर अतिपिछड़े को आगे किया है। वह इसी रणनीति पर आगे बढ़ेंगी। ऐसे में अखिलेश भी अपने परंपरागत वोटों को बचाने का दांव चल रहे हैं।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो साल 2017 के विधानसभा चुनाव में यादव परिवार की फूट के कारण उन्हें अच्छा खासा नुकसान उठाना पड़ा था। एसपी को महज 50 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। तभी से पार्टी को अहसास हो गया था यह फूट उनके सियासी वजूद के लिए खतरा बन रही है। नुकसान की भरपाई करने के लिए अखिलेश ने लोकसभा चुनाव में अपनी धुर विरोधी बीएसपी से गठबंधन करके शिवपाल से हुए नुकसान को भरने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इसी कारण अखिलेश चाह रहे हैं कि जो उनको नुकसान हुआ, वह न हो। अब वह परिवार को एक करने में लग गए हैं। जिससे वोटों के बटवारे में रोक लग सके।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक राजीव श्रीवास्तव कहते हैं कि सपा मुखिया अखिलेश यादव कांग्रेस और बसपा के साथ गठबंधन करके देख चुके हैं। उनके पास अब कोई विकल्प नहीं बचा है। इस कारण वह चाचा को अपने पाले में लाना चाहतें हैं। अखिलेश के साथ चुवाओं की एनर्जी भले हो, लेकिन शिवपाल जैसा अनुभव नहीं है जो कार्यकर्ताओं में पैठ रखते हैं। शिवपाल के पास जमीनी अनुभव बहुत है। अगर परिवार में एकता होती है, तो पार्टी हित में होगा। गिरता ग्राफ भी ठीक होगा। चुनाव में एक साल बचा है। ऐसे में अखिलेश के पास यही एक मात्र विकल्प है।

उन्होंने बताया कि मुलायम के बाद कार्यकर्ताओं में शिवपाल यादव की ही पकड़ है। जिस प्रकार से बीजेपी का अश्वमेघ घोड़ा लगातार बढ़ रहा है, उसे रोकने के लिए सपा को पूरी ताकत लगानी होगी। इसके लिए यादव परिवार के कुनबे को एक होना होगा। यही उसकी पहचान थी। कार्यकर्ताओं और नेता में सकारात्मक रूख के लिए यह ठीक है। मुलायम सिंह यादव सभी को साथ लेकर चलते थे। अखिलेश के पास विजन और एनर्जी है। पार्टी में बड़े नेताओं का आभाव है। आजम खान अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। रामगोपाल यादव पार्टी की आन्तरिक राजनीति में कभी नहीं रहे। इसलिए अखिलेश के लिए शिवपाल जरूरी और मजबूरी दोंनों है।

(आईएएनएस के इनपुट के साथ)

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