बागपत ग्राउंड रिपोर्ट: BJP के खिलाफ किसानों में जबरदस्त आक्रोश, लाठियों का जवाब वोट से देने की तैयारी!

बागपत की सिवालखास विधानसभा में कई बार बीजेपी प्रत्याशी का विरोध हुआ है। विरोध जब बड़े स्तर पर होता है तो वो चर्चा बनती है। सच यह है कि बीजेपी के प्रत्याशियों को किसानों के बीच जाने पर कुछ न कुछ खराब सुनने को मिल रहा है।

फोटो: आस मोहम्मद कैफ
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आस मोहम्मद कैफ

बागपत की सिवालखास विधानसभा में कई बार बीजेपी प्रत्याशी का विरोध हुआ है। विरोध जब बड़े स्तर पर होता है तो वो चर्चा बनती है। सच यह है कि बीजेपी के प्रत्याशियों को किसानों के बीच जाने पर कुछ न कुछ खराब सुनने को मिल रहा है। सिवालखास विधानसभा का कुछ हिस्सा यूं तो मेरठ जनपद में आती है मगर उसकी प्रकृति बागपत वाली ही है। इसका कारण यह है कि यह विधानसभा शुद्ध रूप से शहरी आबोहवा से दूर ग्रामीण पृष्ठभूमि पर है। इसे पूरी तरह किसान बहुल विधानसभा कहा जा सकता है। यहां से सपा-आरएलडी गठबंधन के गुलाम मोहम्मद उम्मीदवार हैं तो भाजपा मनिदर पाल सिंह को यहां चुनाव लड़ा रही है। यूं तो कांग्रेस यहां जगदीश शर्मा और बसपा यहां नन्हें प्रधान को लड़ा रही है मगर स्थानीय लोगों की मानें तो यहां मुक़ाबला सीधे भाजपा और आरएलडी के बीच है।

सिवालखास विधानसभा के गांव खिर्वा के चौधरी मांगे कहते हैं, यह पूरी विधानसभा जाट और मुस्लिम बहुल है। यहां 80 फीसद लोग खेती करते हैं। सीधे किसान हैं, दिल्ली हमारे से दूर नहीं है। हमने पूरा आंदोलन देखा है। हमारा उत्पीड़न किया है। किसानों के साथ धोखा हुआ है। सरकार के मंत्री के बेटे ने किसानों को गाड़ी से कुचल दिया है। मंत्री अब तक नहीं हटाया गया है। यह बात दिल पर लगती है। किसानों पर 26 जनवरी को जो मुक़दमे दर्ज किए गए थे वो अब तक खत्म नहीं किए गए हैं। गन्ने का भाव छटाक भर बढ़ा है। भुगतान नहीं किया जा रहा है। फसल दुगनी नही हुई, लागत दुगनी हुई है। गांव के लोगों ने तय किया है कि सरकार किसान हित वाली लाएंगे। जो लोग बीजेपी के प्रत्याशी का विरोध कर रहे हैं वो नाराज़ हैं। वो चुनाव का इंतजार कर रहे थे, ये नाराजग़ी मतदान में भी दिखाई देगी।

फोटो: आस मोहम्मद कैफ
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बागपत जिले के तीनों विधानसभा में बीजेपी प्रत्याशियों को विरोध का सामना करना पड़ा रहा है। बदली परिस्थिति और गठबंधन की गणित ने यहां भाजपा के लिए चुनाती काफी बढ़ा दी है। यहां के मतदाताओं का मानना है कि बीजेपी के लिए यह चुनाव बेहद कठिन है। बड़ौत के किसान कुलदीप तेवतिया कहते हैं, छपरौली में चुनाव एकतरफा है, यहां किसानों में एकजुटता है और यहां सभी किसान है या फिर किसान के सहयोगी मजदूर किसान हैं। सिवालखास की स्थिति आप देख ही रहे हैं। छपरौली में बीजेपी का सफाया होगा, बागपत में किसान एकता का अदुभुत प्रदर्शन होगा। कुलदीप बताते हैं कि अभी से भाजपा माहौल का धुर्वीकरण कर रही है। अब गांव-गांव हर एक बात पहुंचती है। बागपत दूसरे जनपदों से अलग है। हमारा शहरी माहौल नहीं है। मुजफ्फरनगर दंगे के दौरान भी बागपत में हिंसा नहीं हुई। हमें साम्प्रदायिक आधार पर बांटा नहीं जा सकता है। लोकसभा चुनाव में जयंत चौधरी को जबरदस्ती हराया गया अब उसका भी बदला लेने का समय है। जिला पंचायत चुनाव में बागपत ने एक संदेश दिया था अब हमें एक और संदेश देना है।

फोटो: आस मोहम्मद कैफ
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बागपत को जोड़ने वाले ज्यादातर सड़कों का हाल बुरा है। सड़कों में भारी गड्ढे हो गए हैं। पानी भरा हुआ है और सब कीचड़ मय है। इस कीचड़ से गाड़ी निकालने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। बड़ौत के युवा आरिफ राजपूत बताते हैं इसी कीचड़ में इस मौजूदा सरकार की गाड़ी भी फसेंगी। आरिफ कहते हैं कि बागपत में सबसे रोचक चुनाव बागपत शहर सीट पर है। यहां से आरएलडी के अहमद हमीद चुनाव लड़ रहे हैं और उनका मुकाबला भाजपा के योगेश धामा से है। यही एक सीट है जहां भाजपा प्रचार कर पा रही है। आरिफ बताते हैं कि योगेश धामा का व्यवहार अच्छा है इसके मतलब यह नहीं है लोग उनकी सरकार के कामकाज से खुश हैं। बस योगेश धामा का सिवालखास जैसा विरोध नहीं हो रहा है, किसान सरकार से नाराज हैं, व्यक्तिगत तौर पर नहीं। अहमद हमीद बागपत के चर्चित चेहरे नवाब कोकब हमीद के बेटे हैं। नवाब कोकब हमीद सरकार में मंत्री रह चुके हैं। अहमद हमीद दो बार चुनाव हार चुके हैं इस बार उनके प्रति कुछ सहानभूति भी दिखाई देती है। आरिफ बताते हैं कि यह एक अलग बात है मगर असली मुद्दा किसानों का ही है। बागपत में किसानों के मुद्दे का बहुत व्यापक असर है। दिल्ली से नज़दीक होने के कारण बागपत ने आंदोलन को देखा है। कुछ और भी मुद्दे हैं मगर बड़ा मुद्दा किसानों से जुड़ा है।

फोटो: आस मोहम्मद कैफ
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बागपत की मशहूर सीट छपरौली की कहानी थोड़ी सी अलग है, यहां हाथरस में जयंत चौधरी को पड़ी लाठियां को जवाब देने के लिए आतुरता दिखती है। मुलसन् गांव के युवा संजय कहते हैं, वो लाठी चौधरी जयंत की पीठ पर नहीं, हमारे सर पर मारी गई थी अब उनका जवाब देने का टाइम आ गया है। हर तरफ चौधरी जयंत का ही नाम चल रहा है। छपरौली पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और चौधरी अजित सिंह का गढ़ है। अभी भी यहां रालोद के सहेंद्र रमाला विधायक थे मगर इस बार रालोद अजय कुमार को चुनाव लड़ा रही है। साढ़े तीन लाख मतदाताओं वाली इस विधानसभा में माहौल एकतरफा दिखता है। छपरौली के किसान मदनपाल कहते हैं कि "चौधरी की ख़ातर (लिए) सरकार बदलनी है, इस सरकार ने तो कतई डोब (मुश्किल) भरवा दिए। यह पूंजीपतियों की सरकार है। हमें तो किसानों के हित वाली सरकार चाह"।

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Published: 31 Jan 2022, 1:47 PM