बिहार जल रहा अपराध में और नीतीश चुनावी जमीन पर ढूंढ़ रहे हैं हरियाली

साल 2016 में निश्चय यात्रा पर निकले तो अभी के उनके साथी सुशील कुमार मोदी ने उन्हें जमकर घेरा भी था। तब सुशील मोदी विपक्ष में थे, इसलिए जनता के मन की बात कह रहे थे कि नीतीश निश्चय के बहाने सेल्फ मार्केटिंग की यात्रा पर निकले हुए हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
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शिशिर

रोम जलरहा था, नीरो बंशी बजा रहा था- इन दिनों यह कहावत बिहार में कुछ बदलकर कही जा रही है। लोग कह रहे हैं- “बिहार अपराध में जल रहा और नीतीश हरियाली में जीवन ढूंढ रहे हैं।”

इन दिनों बिहार अपहरण, फिरौती के लिए हत्या, सरेराह मर्डर- जैसी वारदातों के लिए सुर्खियों में है और नीतीश ‘जल-जीवन-हरियाली’ योजना के प्रचार में एड़ी-चोटी एक किए हुए हैं। इस योजना के नाम पर नीतीश पिछले साल के अंत से इस साल जनवरी तक कई दौर में यात्राएं पूरी कर चुके हैं।

हालांकि, सभी जानते हैं कि ये आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारी है। वैसे भी नीतीश ने अब तक की ज्यादातर यात्राएं या तो चुनाव के ठीक पहले की हैं या कुछ पहले। 2009 में लोकसभा चुनाव था, तो 2010 में बिहार विधानसभा चुनाव। 2009 में नीतीश ने विकास और धन्यवाद यात्रा की, तो 2010 में विश्वास यात्रा। इसके बाद एनडीए में प्रधानमंत्री पद के चेहरे की रेस शुरू हुई तो नरेंद्र मोदी को पछाड़ने के लिए 2011 में सेवा यात्रा और 2012 में अधिकार यात्रा की।

उसके बाद विधानसभा-लोकसभा चुनाव के आसपास साल 2014 में संकल्प और संपर्क यात्राएं कर डालीं। साल 2016 में निश्चय यात्रा पर निकले तो अभी के उनके साथी सुशील कुमार मोदी ने उन्हें जमकर घेरा भी था। तब सुशील मोदी विपक्ष में थे, इसलिए जनता के मन की बात कह रहे थे कि नीतीश निश्चय के बहाने सेल्फ मार्केटिंग की यात्रा पर निकले हुए हैं।

सच्चाई यह भी है कि न्याय और विकास यात्रा के बाद उन्हें वोट के रूप में अच्छा फायदा मिला लेकिन नीतीश जिस मुद्दे को जनता से जोड़कर यात्राएं करते हैं, वे धरे के धरे रह जाते हैं। 2011 में नीतीश ने ‘सेवा यात्रा’ की थी। कहा गया था कि बिहार के लोगों को लोक सेवाओं का अधिकार (आरटीपीएस) देने के बाद उन्हें इस कानून के फायदों की जानकारी देने के लिए यह यात्रा है। यात्रा तो कब की हो गई, पर लोगों को जन्म, जाति, आय, आवासीय-जैसे प्रमाण पत्र अब भी समय पर नहीं मिल पाते।


साल 2012 में नीतीश ने ‘अधिकार यात्रा’ की। इसमें नीतीश बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग उठाते दिखे और तत्कालीन यूपीए सरकार को घेरते रहे। लेकिन 2014 से अब तक केंद्र में एनडीए और बिहार में ज्यादातर समय भी इसी गठबंधन की सरकार में रहते हुए भी यह दर्जा नहीं मिला। अब तो नीतीश खुद इस पर बोलते भी नहीं हैं।

अब बात इस बार की जल-जीवन-हरियाली यात्रा की। वर्षा जल संचयन पर कई घोषणाओं के बावजूद कोई काम नहीं हुआ है। कुछ सरकारी भवनों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग का काम हुआ भी तो सिर्फ किसी प्रोजेक्ट रिपोर्ट में शामिल करने लायक ही। बीते साल सितंबर-अक्टूबर में भारी बारिश में पटना जब डूबा, तो उसके 10 दिन पहले तक सरकार रेन वाटर हार्वेस्टिंग को लेकर तरह-तरह की बातें कर रही थी। बारिश हुई और पटना डूब गया। पानी किसी तरह सीवरेज में बहा दिया गया। उधर, लाखों पौधे लगवाए तो गए, पर उनकी देखरेख नहीं की गई है। इससे पटना के डिवाइडर तक के पौधे सूख रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो नीतीश की ताजा यात्रा सिर्फ चुनाव को लेकर जनता का मूड भांपने की योजना भर है। अब इससे उन्होंने क्या सीखा, यह तो देखने की बात होगी। वैसे, सीएए का विरोध कर रहे प्रशांत किशोर और पवन वर्मा को जिस तरह जनता दल(यू) से बाहर किया गया है, उससे तो लगता है कि उनके लिए इस यात्रा की सीख यह भी है कि कुछ भी हो, बीजेपी के साथ चिपके रहो।

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