बिहार: नए साल में सत्ताधारी गठबंधन को एकजुट बनाए रखना बड़ी चुनौती, NDA में उभर रहे बगावत के सुर!

कुछ ही दिनों के बाद नए साल का आगाज होगा, लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या नए साल में बिहार की सियासत में भी कोई बड़ा परिवर्तन होगा?

फोटो: सोशल मीडिया
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मनोज पाठक, IANS

कुछ ही दिनों के बाद नए साल का आगाज होगा, लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या नए साल में बिहार की सियासत में भी कोई बड़ा परिवर्तन होगा? अगर, हाल के दिनों में राज्य की सत्ताधारी गठबंधन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के घटक दलों के नेताओं के बीच मुद्दे और बयानों को देखा जाए, तो आने वाले साल में गठबंधन को एक बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती होगी। बिहार में सत्ताधारी गठबंधन में शामिल जनता दल (युनाइटेड) जहां बिहार विशेष राज्य के दर्जे की मांग को लेकर फिर से मुखर है, तो वहीं जाति आधारित जनगणना कराए जाने की भी मांग कर रही है।

दूसरी ओर देखें तो केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में एक हलफनामा देकर स्पष्ट कर चुकी है कि वर्तमान परिस्थिति में जाति आधारित जनगणना संभव नहीं है। इधर, विशेष राज्य के दर्जा की मांग को बीजेपी नेता सिरे से भले ही नकार नहीं रहे हो, लेकिन इतना जरूर कह रहे हैं कि बिहार को विशेष पैकेज के रूप में केंद्र सरकार द्वारा काफी कुछ दिया जा रहा है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी स्पष्ट कर चुके हैं कि केंद्र सरकार अगर जाति आधारित जनगणना नहीं कराती है तो बिहार सरकार यह कराएगी। उन्होंने तो यहां तक कह दिया है, कि इसकी तैयारी भी प्रारंभ हो चुकी है। जाति आधारित जनगणना के मुद्दे पर जेडीयू और राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) साथ-साथ नजर आ रही है।


इधर, शराबबंदी कानून को लेकर भी एनडीए के घटक दल एकमत नहीं दिख रहे है। गठबंधन में शामिल हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के प्रमुख जीतन राम मांझी ने विभिन्न सार्वजनिक मंचों से शराबबंदी कानून के कार्यान्वयन को लेकर सवाल उठाते रहे हैं।

मांझी ने तो यहां तक कह दिया कि गुजरात की तर्ज पर बिहार में शराबबंदी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस कानून के तहत गरीबों को प्रताड़ित किया जा रहा है। इधर, मांझी राजद नेता तेजस्वी यादव की प्रस्तावित बेरोजगारी यात्रा का भी समर्थन किया है।

मांझी कहते हैं, 'वे प्रतिपक्ष के नेता हैं और अगर वो बेहतर समझते हैं कि बिहार में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है तो उन्हें इस बात का हक है कि वह इस तरह की यात्रा पर निकलें।'

ऐसी स्थिति में राज्य की सियासत में कई तरह के कयास लगाए जाने लगे है। भाजपा के ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. निखिल आनंद ऐसे किसी भी कयासों को दरकिनार करते हुए कहते हैं, 'किसी भी मुद्दे पर विचारोत्तेजक राय व्यक्त करना और सरकार की किसी भी नीति की आलोचना करना पूरी तरह से दो अलग-अलग दृष्टिकोण हैं। नेताओं द्वारा विचार साझा करने को नीति निर्माण की बेहतरी एवं सुशासन की मजबूत करने के उनके प्रयास के तौर पर देखना चाहिए।'

व्यक्तिगत राय का मतलब हमेशा सरकार की आलोचना नहीं होता है। एनडीए की नींव ठोस है। किसी भी नेता द्वारा दिए गए व्यक्तिगत बयानों की सरकार के संदर्भ में जबरन व्याख्या नहीं होनी चाहिए। उन्होंने साफ लहजों में कहा, 'व्यक्तिगत राय को अपने सामाजिक समूह को बयानों से उत्तेजित कर समर्थन में जुटाए रखने की उनकी कोशिश मान सकते हैं। बिहार की जनता भाजपा और राजग के साथ है।'


उन्होंने कहा राजग की लंबे समय से विश्वसनीयता है और यह गठबंधन बिहार के विकास के लिए एक लंबा सफर तय करेगा। वैसे, सबसे गौर करने वाली बात हैं कि मुद्दों और बयानों को लेकर राजग में भले ही ही मतभेद हो, लेकिन वे गठबंधन मजबूत होने का दावा सभी घटक दल करते हैं।

जेडीयू के वरिष्ठ नेता नीरज कुमार ने कहा कि नीतीश कुमार के नेतृत्व पर कोई सवाल नहीं है, सात निश्चय योजनाओं पर भी कोई सवाल नहीं उठा है। गठबंधन में कई पार्टियां शामिल हैं और उनके कुछ मामलों में विचार अलग हो सकते हैं।

हम के प्रवक्ता दानिश रिजवान भी कहते हैं कि गठबंधन में शामिल सभी घटक दलों के सिद्धांत, एजेंडा, विचार अलग-अलग हैं। सभी पार्टियों ने चुनावी घोषणा पत्र भी अलग-अलग जारी किए थे, उसी के आधार पर आगे बढ रहे हैे। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी, इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए।

विपक्ष हालांकि इससे इत्तेफाक नहीं रखता। आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि सरकार बहुत कम दिनों की मेहमान है। सभी घटक दलों की अपनी डफली अपना राग है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री कुर्सी को लेकर समझौतावादी नीति के तहत बिहार की भलाई को ताक पर रखकर किसी भी प्रकार का समझौता करने को तैयार हैं। ऐसे में छोटे दल घुटन महसूस कर रहे हैं।

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