स्याही जिसकी वजह से कोई दोबारा वोट नहीं डाल सकता, क्या जानते हैं कैसे और कहां बनती है!

भारत के हर चुनाव में वोट देने वाले मतदाताओं की अंगुली पर बैंगनी रंग की अमिट स्याही लगाई जाती है। देश में अगले महीने से लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में हर मतदाता की अंगुली पर ये स्याही लगाई जाएगी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये स्याही कैसे और कहां बनती है?

फोटोः सोशल मीडिया
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DW

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में लोकसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा कर दी गई है। इस चुनाव में कई सारी पार्टियां हिस्सा ले रही हैं और इन सारी पार्टियों का अपना-अपना वोट बैंक है। हालंकि देश के मतदाता अपनी समझ के मुताबिक अपनी पसंद के प्रत्याशियों को ही वोट देंगे।

लेकिन इन सबके बीच चुनाव में एक बात कॉमन होगी- वोट डालने के बाद मतदाताओं की अंगुली पर लगने वाला स्याही का निशान। दरअसल यह निशान बताता है कि किसने वोट डाला है और किसने नहीं। कहा जाता है कि ये निशान 15 दिन से पहले नहीं मिट सकता। ऐसे में सबके मन में सवाल आ सकता है कि इस स्याही का इतिहास क्या है और इसमें होता क्या है? तो आइये जानते हैं इन सवालों के जवाब।

आपको ये जानकर आश्चर्य होगी कि इस स्याही का इतिहास भारत के एक बड़े राजवंश से जुड़ा है। दरअसल कर्नाटक में मैसूर नाम की एक जगह है, जहां पहले वाडियार राजवंश का राज चलता था। आजादी से पहले यहां के शासक महाराजा कृष्णराज वाडियार थे। यह राजवंश विश्व के सबसे अमीर राजघरानों में से एक माना जाता था। राजघराने के पास खुद की सोने की खान थी।

कृष्णराज वाडियार ने 1937 में मैसूर लैक एंड पेंट्स नाम की एक फैक्ट्री लगाई। इस फैक्ट्री में पेंट और वार्निश बनाने का काम होता था। भारत के आजाद होने के बाद इस फैक्ट्री पर कर्नाटक सरकार का अधिकार हो गया। अभी इस फैक्ट्री में 91 प्रतिशत हिस्सेदारी कर्नाटक सरकार की है। 1989 में इस फैक्ट्री का नाम बदलकर मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड कर दिया गया।

भारत में पहली बार चुनाव 1951-52 में हुए थे। उस चुनाव में मतदाताओं की अंगुली में स्याही लगाने का कोई नियम नहीं था। चुनाव आयोग को कई जगहों से लोगों के किसी दूसरे की जगह वोट डालने और दो बार वोट डालने की शिकायतें मिलीं। इन शिकायतों के बाद चुनाव आयोग ने इसे रोकने के लिए कई विकल्पों पर विचार किया। इसमें एक अमिट स्याही का इस्तेमाल करने का विचार सबको अच्छा लगा।

इसके बाद चुनाव आयोग ने नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी ऑफ इंडिया (एनपीएल) से ऐसी ही एक स्याही बनाने को कहा। एनपीएल ने ऐसी स्याही ईजाद की जो पानी या किसी रसायन से भी मिट नहीं सकती थी। एनपीएल ने इस स्याही को बनाने का ऑर्डर मैसूर पेंट एंड वार्निश कंपनी को दिया। साल 1962 में हुए चुनावों में पहली बार इस स्याही का इस्तेमाल किया गया और तब से अब तक यही स्याही हर चुनाव में इस्तेमाल की जाती है।

एनपीएल या मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड ने कभी इस स्याही को बनाने के तरीके को सार्वजनिक नहीं किया। इसका कारण बताया गया कि अगर इस गुप्त फॉर्मूले को सार्वजनिक कर दिया गया तो लोग इसको मिटाने का तरीका खोज लेंगे और इसका उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा। जानकारों के मुताबिक इस स्याही में सिल्वर नाइट्रेट मिला होता है जो इस स्याही को फोटोसेंसिटिव नेचर का बनाता है, जिसकी वजह से धूप के संपर्क में आते ही यह और ज्यादा पक्की हो जाती है।

जब यह स्याही नाखून पर लगाई जाती है तो भूरे रंग की होती है। लेकिन लगाने के बाद गहरे बैंगनी रंग में बदल जाती है। सोशल मीडिया पर एक अफवाह चली थी कि इस स्याही को बनाने में सुअर की चर्बी का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इन अफवाहों को बकवास करार दिया गया। यह स्याही अलग-अलग रसायनों का इस्तेमाल कर बनाई जाती है।

यही नहीं इस स्याही का इस्तेमाल कई सारे देश करते हैं। मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड के मुताबिक 28 देशों को इस स्याही की आपूर्ति की जाती है। इनमें अफगानिस्तान, तुर्की, दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, नेपाल, घाना, पापुआ न्यू गिनी, बुर्कीना फासो, बुरुंडी, कनाडा, टोगो, सिएरा लियोन, मलेशिया, मालदीव और कंबोडिया शामिल हैं।

हालांकि भारत इस स्याही का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। भारत में अंगुली पर एक लकड़ी से यह स्याही लगाई जाती है, जबकि कंबोडिया और मालदीव में अंगुली को ही स्याही में डुबोया जाता है। अफगानिस्तान में पेन से, तुर्की में नोजल से, बुर्कीना फासो और बुरुंडी में ब्रश से यह स्याही लगाई जाती है। मैसूर पेंट एंड वार्निश कंपनी का दावा है कि इस स्याही को किसी भी तरह 15 दिन से पहले मिटाना संभव ही नहीं है।

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