लोकतंत्र के पन्ने: 1991 लोकसभा चुनाव था देश का पहला मंडल-कमंडल का राजनीतिक युद्ध

1991 में भारत में दसवां लोकसभा चुनाव कराया गया। यह देश के इतिहास में तीसरा मध्यावधि चुनाव था। अब चुनाव में जाति के साथ-साथ धर्म भी राजनीतिक रंग ले चुका था। पूरा चुनाव दो ही मुद्दों के इर्द-गिर्द लड़ा गया। पहला- मंडल आयोग की सिफारिशें और दूसरा-राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

1989 लोकसभा चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला था। वीपी सिंह के नेतृत्व में चल रही गठबंधन की सरकार सिर्फ 16 महीने ही टिक पाई। 1991 में भारत में दसवां लोकसभा चुनाव कराया गया। यह देश के इतिहास में तीसरा मध्यावधि चुनाव था। अब चुनाव में जाति के साथ-साथ धर्म भी राजनीतिक रंग ले चुका था। पूरा चुनाव दो ही मुद्दों के इर्द-गिर्द लड़ा गया। पहला- मंडल आयोग की सिफारिशें और दूसरा-राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद। इसी के चलते इसे मंडल-कमंडल का चुनाव भी कहा गया।

पंजाब में लोकसभा चुनाव बाद में कराए गए। जबकि जम्मू-कश्मीर में 10 लोकसभा चुनाव कराए ही नहीं गए। चुनाव के दौरान ही एक बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी। पहले दौर के मतदान के एक दिन बाद यानी 21 मई को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की एलटीटीई द्वारा तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में चुनाव प्रचार के दौरान हत्या कर दी गई। चुनाव को 15 दिनों के लिए टाल दिया गया।

इस दौरान चुनाव आयोग और तब के सरकार में तल्खी भी देखने को मिली। दरअसल मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने चुनाव को 15 दिन के लिए टालने का फैसला किया। चंद्रशेखर के कहने पर कैबिनेट सचिव ने शेषन से जवाब मांगा तो शेषन ने उन्हें उनकी हद और चुनाव आयोग के अधिकार बताए। और अंत में 12 जून और 15 जून को मतदान कराया गया।

1991 के लोकसभा चुनाव में करीब 57 फीसदी वोट पड़े। कांग्रेस को 232 सीटें मिलीं और करीब डेढ़ साल बाद ही पार्टी सत्ता में लौटी। वहीं 120 सीटों के साथ बीजेपी दूसरे स्थान पर रही। जनता दल 59 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर रहा।

एनडी तिवारी प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री पद के बड़े दावेदार माने जा रहे थे। लेकिन वो नैनीताल सीट से करीब 11 हजार वोट से चुनाव हार गए। इसके बाद कांग्रेस संसदीय दल ने पीवी नरसिंह राव को प्रधानमंत्री चुना। राव ने 1991 का चुनाव नहीं लड़ा था। इसी साल उपचुनाव में आंध्रप्रदेश की नांदयाल सीट से वे लगभग पौने छह लाख वोटों से जीते।

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