असम के लोग सीएए समेत हर मुद्दे पर बीजेपी के दोहरे चरित्र को देख रहे हैं, सुनाएंगे अपना फैसलाः भूपेश बघेल

कांग्रेस के अभियान का ही नतीजा है कि असम के वर्तमान मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल बीजेपी के मुख्यमंत्री पद का चेहरा नहीं हैं। उत्तरी असम में जहां बीजेपी की दावेदारी मजबूत समझी जाती रही थी, वहां भी कांग्रेस बहुत सी सीटों पर उसे पछाड़ती नजर आ रही है।

फोटोः @bhupeshbaghel
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निधीश त्यागी

छह महीने पहले हर कोई कह रहा था कि असम के चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कोई बहुत दिलचस्पी नहीं दिख रही है। पर अब वह लड़ाई में इस कदर है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को राज्य बचाना आसान नहीं लग रहा है। हालात ऐसे हैं कि बीजेपी को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी है और उस पर सवाल भी उठने लगे हैं। वर्तमान मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल उनके मुख्यमंत्री पद का चेहरा नहीं हैं, हेमंत बिस्वा सरमा भी नहीं। उत्तरी असम में जहां बीजेपी की दावेदारी मजबूत समझी जाती रही थी, वहां भी कांग्रेस ने बहुत सी सीटों पर फासला बहुत कम कर लिया है और कई सीटों पर वह जीतती भी दिख रही है।

इन बदलावों के पीछे एक बड़ी ताकत छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को समझा जा रहा है, जो छत्तीसगढ़ से कांग्रेस कार्यकर्ताओं की बड़ी टीम लेकर असम में जमीनी स्तर पर चुनावी इंतजाम को दुरुस्त करने में लगे हैं। हालांकि ये इलाका भाषा, संस्कृति और भूगोल के हिसाब से बिलकुल अलग है, पर वे आशा और विश्वास से भरे हुए हैं और वे जमीनी बारीकियों को अपनी बातों और भाषणों में लगातार रेखांकित करते चलते हैं। चाहे वह प्रतिद्वंद्वी दल के बारे में हो या फिर कांग्रेस के बारे में। चुनाव प्रचार के दौरान असम के कई हिस्सों में उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश यहां पेश हैं।

उत्तरी असम में चुनाव का पहला दौर शुरू होने वाला है? आप असम में कांग्रेस के प्रदर्शन को किस तरह देख रहे हैं?

पांच साल पहले भी हम यहां सरकार में थे। तरूण गोगोई की सरकार लम्बे समय से असम में थी। ये ठीक है कि पिछले चुनावों में हमें असम की जनता ने नहीं चुना और इस बीच तरुण गोगोई जैसा कद्दावर नेता भी हमारे बीच नहीं रहे। पर जैसा कि आप देखेंगे, हम ठीक तरह से मुकाबले में हैं। हर सीट पर हम कड़ी टक्कर दे रहे हैं। कांग्रेस के कार्यकर्ता बूथ लेवल तक सक्रिय हैं और उसका असर बीजेपी की रणनीति में देखने को मिल रहा है। उनके कई उम्मीदवार बदले गए हैं। कई जगह उनके उम्मीदवारों की सीटें बदली गई हैं। सरकार में रहने के बाद वे जनादेश अपने वर्तमान मुख्यमंत्री के चेहरे पर नहीं मांग रहे हैं। अगर सर्बानंद सोनोवाल की सरकार ने उनके मुताबिक अच्छा काम किया है, तो आप उन्हें अगली सरकार के नेता के तौर पर पेश क्यों नहीं कर रहे। न हीं हेमंत बिस्वा सरमा को चेहरा बना रहे हैं। चाबोई जहां से चाय पहली बार असम में उगाई गई थी, वहां से बीजेपी ने अपने पूर्व विधायक को कहीं और भेज दिया है। अगर उन्हें अपने प्रदर्शन पर भरोसा होता, तो ऐसा क्यों करते। जाहिर है कि वे बहुत डरे हुए हैं और अब उनकी रणनीति सिर्फ लोगों को गुमराह करने की है।

गुमराह किस तरह से?

पहला तो सीएए का ही मुद्दा देखिये। बीजेपी असम में कुछ बोल रही है, बंगाल में कुछ बोल रही है और तमिलनाडु में कुछ और। एक ही मुद्दे पर दो तरह की बात करने वालों को तो दोगला कहा जाता है, पर ये तो तीन तरह की बात कर रहे हैं। फिर हर चुनाव सिर्फ वादे करने के लिए नहीं होता, अगर आप सरकार में हैं, तो आपके प्रदर्शन को कसौटी पर कसने के लिए भी होता है। उनके रणनीतिकारों को पता है, वे इस कसौटी पर बुरी तरह से फेल हैं। चाहे चाय बगान कर्मियों की दिहाड़ी का मामला हो, चाहे नौकरियां देने का। जब कुछ नहीं चल रहा होता तो वे हिंदू -मुस्लिम करने लगते हैं। बीजेपी अंग्रेजों की तरह ‘फूट डालो और राज करो’ वाली नीति अपना रही है। पर लोगों ने देखा है उनकी नीति को। उन्हें अंदाजा है कि कैसे स्थानीय लोगों की नागरिकता पर ही तलवार लटका दी गई है। एक नागरिक के कागजों पर कोई नौकरशाह को सिर्फ डी (डॉउटफुल) लिखना है, उसे अपना अधिकार पाने में बीसियों साल लग सकते हैं। इसका मतलब है कि बीजेपी को अपने नागरिकों पर भरोसा नहीं है, जबकि वह उन लोगों से भरोसा पाने का वोट मांग रही है।

लड़ाई में लौटने का बहुत सारा श्रेय आपको और असम में काम कर रही छत्तीसगढ़ की टीम को दिया जा रहा है। इसके बारे में क्या कहना है?

असम में कांग्रेस हमेशा से प्रमुख भूमिका निभाती रही है। इसलिए पार्टी तो है और हमारी मौजूदगी सब जगह है। ज़रूरत सिर्फ़ थोड़ा और संगठित होकर, सूझबूझ के साथ चुनाव लड़ने की थी। मैं तो अहसानमंद हूं असम प्रदेश कांग्रेस का, जिसने हमें यहां बुलाया और मदद करने का मौका दिया।
छत्तीसगढ़ कांग्रेस के बहुत से नेताओं और कार्यकर्ताओं को यहां इसलिए लाया गया कि वह राज्य, क्षेत्र से लेकर बूथ लेवल तक हमारे संदेश, प्रचार और गारंटियों को लोगों तक सुचारू तौर पर पहुंचा सकें। इसके लिए जमीनी स्तर से प्रादेशिक नेतृत्व तक थोड़ा समन्वय बढ़ाया गया। हमने सूचना, समन्वय और कार्यक्रमों के लिए एक ढांचा खड़ा करने में मदद की। चुनाव तो प्रदेश कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता ही लड़ रहे हैं। और इसी सहयोग और समन्वय का असर है कि कांग्रेस इस बार वापस सरकार बनाने जा रही है। मैं असम में अपना ट्रैक रिकार्ड लेकर आया हूं, जो यहां लोग सुन रहे हैं। हमने छत्तीसगढ़ में अपने वायदे कैसे पूरे किये, ये बात लोगों को बताने की जरूरत थी, क्योंकि बीजेपी हर चुनाव में वायदे तो कर देती है, पूरा करने की कभी परवाह नहीं करती। आप भारतीय जनता पार्टी का घोषणापत्र देख लीजिए और हमारी गारंटियां भी।

उत्तरी असम में कांग्रेस की हालत काफी पिछड़ी बताई जा रही थी!

वहां तो अब चुनाव हो चुका है, पर आप देखेंगे कि कैसे कांग्रेस दौड़ में वापस आई है। असम के दूसरे हिस्सों में कांग्रेस हमेशा मजबूत रही है और इस बार उत्तरी असम में हमने खासा जोर लगाया है। आप नतीजों से हैरान हो जाएंगे। बीजेपी परेशान है। चाहे चाबुआ का मामला हो या फिर चाय बगान के कर्मियों की दिहाड़ी का, बीजेपी का प्रदर्शन काफी अनिश्चितताओं से भरा हुआ है। उन्होंने जो वादे किये थे, वे पूरे नहीं कर पाए। फिर नये वायदे कर रहे हैं। उसके लिए कितना भी शोर मचा लें, पर लोगों को उनकी सच्चाई पता है और इस बार उनको वोट देने से पहले वे सोचेंगे जरूर। वे ये भी सोचेंगे कि कांग्रेस किन गारंटियों के साथ उनके सामने जा रही है। आप देख सकते हैं कि इधर-उधर की बात कौन कर रहा है, बीजेपी या हम। हमारी बात साफ है और संदेश सीधा हर असमिया को केंद्र में रख कर पहुंचाया गया है। इन चुनावों में हमारी बात मतदाता तक पहुंची है और वह हमारा साथ देगा। एक और बात है कि असम में लोगों की सांस्कृतिक, क्षेत्रीय और जातीय पहचान और आत्मसम्मान भी ध्यान देने लायक बात है और एक हद से ज्यादा राष्ट्रवाद की घूटी जो बीजेपी पूरे देश को पिलाने की कोशिश कर रही है, काम नहीं करता।

बदरूद्दीन अजमल की एआईयूडीएफ और कांग्रेस गठबंधन पर बीजेपी और खुद नरेंद्र मोदी भी खासी छींटाकशी कर रहे हैं?

बीजेपी को एआईयूडीएफ के साथ हो रही तकलीफ हास्यास्पद है, और उनके अवसरवाद को उधेड़ कर रखती है। एक तो ये कि देश की सबसे बड़ी साम्प्रदायिक पार्टी को दूसरों को कैरेक्टर सर्टिफिकेट नहीं देना चाहिए। वे ये भी नहीं बता रहे कि एआईयूडीएफ सांप्रदायिक कैसे है? वह कांग्रेस को मुस्लिम परस्त बता कर हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण करना चाहती है। उसे लगता है लोगों को याद नहीं जब बीजेपी ने एआईयूडीएफ के सहयोग से कुर्सी हासिल करने की कोशिश की थी। नौगाँव, दरंग और करीमगंज में एआईयूडीएफ का सहयोग लेकर जिला परिषद चुनावों में अपने लोगों को जितवाया था। यकायक वे अपवित्र, साम्प्रदायिक, अवसरवादी, विघटनकारी इसलिए हो गए कि अब वे कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ रहे हैं। कश्मीर में भी बीजेपी दोनों क्षेत्रीय पार्टियों- नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के साथ गठजोड़ बना चुकी है, पर दूसरे ऐसा करें तो उसे बड़ा ऐतराज होता है।

अमित शाह कह रहे हैं कि बीजेपी इस बार सौ से ज्यादा सीटें लेकर आएगी!

अमित शाह ने छत्तीसगढ़ में कहा था कि उनकी 65 से ज्यादा सीटें आएंगी। पर वे हमारी आईं। वे जो कहते हैं, उसका उलटा वहां हुआ था। यहां भी होगा। हमारी सीटें इस बार सौ से ज्यादा आएंगीं।

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