UP चुनाव: बीजेपी के हर सवाल का करारा जवाब दे रही अखिलेश-जयंत की जोड़ी! जानें पश्चिमी यूपी के सियासी जंग कौन किस पर भारी

पश्चिमी यूपी में कानून व्यवस्था चुनावी मुद्दा बना हुआ है। इसी पर सियासी पार्टियां मैदान में जंग लड़ते देखी जा सकती हैं। सत्तारूढ़ दल के सारे बड़े नेता ने इसी मुद्दे को लेकर पिच में डटे हैं। जबकि विपक्षी इसे अलग तरीके से पेश कर रहे हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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आईएएनएस

पश्चिमी यूपी में कानून व्यवस्था चुनावी मुद्दा बना हुआ है। इसी पर सियासी पार्टियां मैदान में जंग लड़ते देखी जा सकती हैं। सत्तारूढ़ दल के सारे बड़े नेता ने इसी मुद्दे को लेकर पिच में डटे हैं। जबकि विपक्षी इसे अलग तरीके से पेश कर रहे हैं। राजनीतिक पंडितों की मानें तो पश्चिमी यूपी के चुनाव से जन मुद्दे गायब हो चले हैं। अब कानून व्यवस्था को मुद्दा बनाकर धुव्रीकरण कराने का प्रयास हो रहा है। 2013 में हुए मुजफ्फर नगर के दंगों की यादे ताजा की जा रही हैं। भाजपा की ओर से बताने का प्रयास हो रहा है कि पहले की तस्वीर क्या थी अब क्या बदलाव हुए हैं। हलांकि यह मुद्दे कितने मुफीद होंगे यह तो 10 मार्च के बाद पता चलेगा।

पहले चरण वाली सीटें जाट और मुस्लिम बाहुल्य हैं। यहां पर बीजेपी ने 2017 में क्लीन स्वीप किया था। लेकिन इस बार किसान आंदोलन और सपा और आरएलडी के गठबंधन से यहां भाजपा को चुनौती मिलती दिखाई दे रही है।

भाजपा की ओर से गृहमंत्री अमित शाह, जेपी नड्डा, राजनाथ और योगी ने कमान संभाल रखी है। अमित शाह ने कैराना से प्रचार की शुरूआत की और पलायन का मुद्दा लोगों को याद दिलाया। इसके बाद बुलंदशहर, अलीगढ़ में मफिया अपराधी कानून व्यवस्था को लेकर विपक्ष को घेरने में लगे हैं। इसके अलावा उनके निशाने पर सपा के प्रत्याशियों की सूची हैं, जिसे बार-बार याद दिलाकर लोगों को झकजोर रहे हैं। साथ ही मुजफ्फरनगर के दंगों की याद दिला रहे हैं। यह भी बता रहे हैं कि 2014, 2017 फिर 2019 में क्या क्या बदलाव हुए हैं। मुजफ्फरनगर के दंगों के बाद भाजपा को सत्ता मिली थी। शाह ने मुजफ्फरनगर दंगों का जिक्र करते हुए कहा कि वो आज भी दंगों की पीड़ा को भूल नहीं पाए हैं। शाह ने आगे कहा कि अखिलेश सरकार ने मुजफ्फरनगर दंगे के समय पीड़ितों को आरोपी और आरोपियों को पीड़ित बना दिया। अखिलेश और जयंत के गठबंधन पर निशाना साधते हुए शाह ने कहा कि जयंत और वे साथ-साथ हैं। लेकिन मैं आपको बतना चाहता हूं कि सिर्फ मतगणना तक ही दोनों साथ-साथ हैं। सरकार बनते ही अखिलेश जयंत को बाहर कर देंगे और आजम खान को अपने बगल में बैठा लेंगे। इसके बाद आपको आजम और अतीक ही दिखाई देंगे।

शाह ने कहा कि आप सभी समझदादार हैं कि अखिलेश के आने पर क्या होगा, आपने टिकट बंटवारा देख लिया होगा।


उधर, विपक्ष भी सत्ता पाने के लिए एड़ी चोटी का जो लगाए है। अखिलेश यादव और आरएलडी मुखिया जयंत चैधरी हर मंच पर एक साथ आ रहे हैं। भाजपा के हर मुद्दे का जवाब दे रहे हैं। दोनों अन्न की पोटली के जरिए किसानों के मुद्दे को जिंदा रखने का प्रयास कर रहे हैं। जयंत ने कहा है कि किसानों पर अत्याचार करने वालों और युवाओं को नौकरी के नाम लाठी भांजने वालों, कथनी और करनी में फर्क करने वालों को इस बार सबक सिखाएं। बीजेपी पर जिन्ना और अब्बाजान का तर्क देने के अलावा कुछ नहीं है। इस बार आप लोग चूक गए तो अहंकार, घमंड वाले शहंशा के रंग और बदल जाएंगे।

अखिलेश यादव भाजपा को मुद्दा विहिन बता रहे हैं। अखिलेश यादव ने कहा कि पांच वर्ष का भाजपा सरकार का कार्यकाल निराशाजनक और विफलताओं से भरा है। जनता कोरोना काल में भाजपा सरकार के समय अस्पतालों की दुर्दशा, इलाज में घोर लापरवाही को तो देख ही चुकी है वह जगह-जगह जलती लाशों के दृश्य भी नहीं भूली है।


राजनीतिक पंडित कहते हैं कि मुजफ्फरनगर की कुछ सीटों पर रालोद के सिंबल पर सपा के नेता चुनाव लड़ रहे हैं। यह वोट एक दूसरे को ट्रान्सफर होंगे या नहीं यह तो समय बताएगा। लेकिन गठबंधन की ओर दावा जरूर हो रहा है।

पश्चिमी यूपी की राजनीति को करीब से देखने वाले सुनील तनेजा का कहना है कि सभी राजनीतिक दल इस बार भी जाति धर्म पर ही चुनाव लड़ रहे हैं। जनमुद्दे पीछे छोड़कर कानून व्यस्था का मुद्दा उठाया जा रहा है। हलांकि इन मुद्दों का फायदा कितना मिलेगा यह आने वाला परिणाम बताएगा।

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