राजस्थान विधानसभा चुनाव: बीजेपी खेल रही हिंदुत्व कार्ड, तीन सीटों पर संतों को मैदान में उतार लगाया दांव

बीजेपी ने बालमुकुंद आचार्य और कांग्रेस ने आरआर तिवारी को मैदान में उतारा है। आप ने पप्पू कुरेशी को मैदान में उतारा था, लेकिन बाद में घोषणा की, कि वह कांग्रेस उम्मीदवार को समर्थन देंगे।

फोटो: IANS
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नवजीवन डेस्क

राजस्थान में बीजेपी ने तिजारा, पोखरण और हवा महल में कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवारों के खिलाफ तीन हिंदू संतों को मैदान में उतारा है। राज्य के कुल 5.25 करोड़ मतदाताओं में से 62 लाख से ज्यादा मतदाता मुस्लिम हैं, लेकिन इस बार लंबे समय बाद बीजेपी ने कुल 200 में से एक भी सीट पर किसी मुस्लिम नेता को टिकट नहीं दिया।

बल्कि, तीन मुस्लिम बहुल सीटों पर संतों को मैदान में उतारा गया है। भगवा पार्टी के नेताओं ने कहा कि इसे ध्रुवीकरण के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है, जिससे लंबे समय में भाजपा को फायदा होने की उम्मीद है। पोखरण में, पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान, केवल 872 वोटों ने जीत मिली थी। लेकिन इसबार एक हिंदू संत को एक मुस्लिम धार्मिक नेता के बेटे के खिलाफ खड़ा किया गया है।

कांग्रेस के मौजूदा विधायक सालेह मोहम्मद का मानना है कि लोग धार्मिक आधार पर नहीं बल्कि उनके विकास कार्यों के लिए वोट करेंगे। वह सीट पर सत्ता विरोधी रुझान को कम करने की उम्मीद कर रहे हैं।

अनुमान है कि पोखरण में लगभग 2.22 लाख मतदाता हैं, उनमें से अधिकांश मुस्लिम या राजपूत हैं। यहां करीब 60,000 मुस्लिम, 40,000 राजपूत, 35,000 एससी/एसटी, 10,000 जाट, 6,000 बिश्नोई, 5,000 माली और 3,000 ब्राह्मण मतदाता हैं। स्थानीय मुद्दे और पिछले पांच वर्षों में लोगों के साथ नेताओं के व्यक्तिगत संबंध भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।


पुरी और मोहम्मद दोनों की अपने समुदायों पर मजबूत पकड़ है क्योंकि पुरी एक राजपूत समुदाय के नेता और बाड़मेर जिले में तारातारा मठ के धार्मिक प्रमुख हैं। जबकि उनके भारत के साथ-साथ सीमा पार पाकिस्तान में भी बड़ी संख्या में समर्थक हैं।

अपने पिता गाजी फकीर की मृत्यु के बाद, सालेह मोहम्मद अब पाकिस्तान में सिंधी मुसलमानों के धार्मिक प्रमुख पीर पगारो के प्रतिनिधि हैं। सालेह मोहम्मद पिछले तीन में से दो बार चुनाव जीत चुके हैं। हालांकि, 2008 में वह सिर्फ 339 वोटों से जीते और 2018 में 580 वोटों से जीते और 2013 में 34,000 वोटों से हार गए।

पिछले चुनाव के दोनों प्रत्याशी एक बार फिर आमने-सामने हैं और मुकाबला फिर कड़ा होगा। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि बीजेपी को ध्रुवीकरण से फायदा होने की उम्मीद है।

इसी तरह जयपुर की हवामहल मुस्लिम बहुल सीट है। पिछले तीन चुनावों से कांग्रेस ने यहां कभी मुस्लिम चेहरा नहीं उतारा। इस बार दोनों पार्टियों ने उम्मीदवार बदल दिए हैं।

बीजेपी ने बालमुकुंद आचार्य और कांग्रेस ने आरआर तिवारी को मैदान में उतारा है। आप ने पप्पू कुरेशी को मैदान में उतारा था, लेकिन बाद में घोषणा की, कि वह कांग्रेस उम्मीदवार को समर्थन देंगे।

तिजारा में कांग्रेस के इमरान खान के खिलाफ बीजेपी के एमपी बालकनाथ को मैदान में उतारा गया है, यहां बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है। कांग्रेस ने इमरान खान को मैदान में उतारा, जिन्हें पहले बीएसपी ने टिकट दिया था। उन्होंने रातोंरात अपनी पार्टी बदल ली और कांग्रेस के उम्मीदवार बन गये।


मुस्लिम चेहरों में कांग्रेस ने जयपुर की आदर्श नगर सीट से रफीक खान, किशनपोल से अमीन कागजी, मकराना से जाकिर हुसैन, फतेहपुर से हाकम अली, नगर से वाजिब अली, पोखरण से सालेह मोहम्मद, कामां से जाहिदा खान, इमरान खान को उम्मीदवार बनाया है।

तिजारा से जुबेर खान, रामगढ़ से शहजाद खान, सूरसागर से शहजाद खान, शिव से अमीन खान, पुष्कर से नसीम अख्तर, सवाई माधोपुर से दानिश अबरार, चूरू से रफीक मंडेलिया और लाडपुरा से नईमुद्दीन गुड्डु को मैदान में उतारा गया है।

हालांकि, हिंदुत्व कार्ड पर खेल रही बीजेपी ने मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारने से परहेज किया है। दरअसल, वसुंधरा राजे सरकार में पूर्व मंत्री यूनुस खान ने टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर पार्टी से नाता तोड़ लिया है और डीडवाना से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं।

बीजेपी सरकार में राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त अमीन पठान भी कांग्रेस में शामिल हो गए। पिछले चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर आठ मुस्लिम चेहरों ने जीत हासिल की थी। इस बार 15 मुस्लिम चेहरों को मैदान में उतारा गया है।

कांग्रेस नेता डॉ. वरुण पुरोहित ने कहा, ''समाज बंट रहा है। केंद्र में सत्तासीन पार्टी बीजेपी ऐसा कर रही है। वह 20 फीसदी आबादी की उपेक्षा कैसे कर सकती है? इसके परिणाम खतरनाक हो सकते हैं।

क्या होगा अगर वे यह सोचने लगें कि इस देश ने उन्हें दरकिनार कर दिया है और उनका झुकाव इस्लामिक दुनिया की ओर हो जाएगा, जो भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश के लिए खतरनाक है। भारत जैसे सामाजिक ताने-बाने के लिए जो हजारों वर्षों से धर्मनिरपेक्ष रहा है, यह अच्छा संकेत नहीं है और इसके चलते गाजा जैसी स्थिति पैदा हो सकती है।''

आईएएनएस के इनपुट के साथ

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