वोटर वेरिफिकेशन पर NDA में बवाल, मोदी सरकार में शामिल TDP ने उठाए सवाल, चंद्रबाबू नायडू ने रखी तीन मांग
टीडीपी ने मांग की है कि चुनाव के ठीक पहले ऐसा वोटर लिस्ट सुधार बिल्कुल नहीं होना चाहिए। टीडीपी ने कहा कि जिनके पास पहले से वोटर कार्ड है, उनसे दस्तावेज न मांगे जाएं और चुनाव आयोग एसआईआर जैसी प्रक्रिया के बहाने नागरिकता तय करने जैसे फैसले बिल्कुल नहीं करे।

बिहार में चुनाव आयोग द्वारा शुरू वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण पर जारी विवाद के बीच इस प्रक्रिया पर अब एनडीए के घटक दल भी सवाल उठाने लगे हैं। केंद्र सरकार में शामिल टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने इस पर सवाल उठाते हुए चुनाव आयोग से तीन मांग की है। कांग्रेस, आरजेडी समेत विपक्षी दल इस विवादित प्रक्रिया पर जो सवाल उठा रहे हैं, लगभग वही सवाल बीजेपी की सहयोगी नायडू की पार्टी ने भी उठा दिए हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में राजनीतिक हलचल दिख सकती है।
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी मोदी सरकार की अहम साझेदार है। अब टीडीपी ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर सीधे तौर पर मांग की है कि एक तो चुनाव के ठीक पहले ऐसा वोटर लिस्ट सुधार बिल्कुल नहीं होना चाहिए। दूसरी बात टीडीपी ने कही है कि जिनके पास पहले से वोटर कार्ड है, उनसे दस्तावेज न मांगे जाएं और चुनाव आयोग एसआईआर जैसी प्रक्रिया के बहाने नागरिकता तय करने जैसे फैसले तो बिल्कुल नहीं करे।
सीधे तौर पर देखें तो चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी ने भी बिहार में चुनाव से ठीक पहले शुरू की गई एसआईआर की प्रक्रिया से सहमति नहीं जताई है। तमाम सवाल वोटर लिस्ट की गड़बड़ी को लेकर उठाए जा रहे हैं। टीडीपी चाहती है कि चुनाव से ठीक पहले ऐसा कुछ न हो, जिससे भ्रम पैदा हो। टीडीपी ने चुनाव आयोग से लिखित में मांग की है कि जिनके पास पहले से वोटर आईडी कार्ड है, उनसे फिर से दस्तावेज मांगना नाजायज है।
दरअसल बिहार में वोटर लिस्ट में गड़बड़ी सुधारने के नाम पर हड़बड़ी ज्यादा दिख रही है। चुनाव आयोग ने बिहार में जो वोटर लिस्ट का विशेष गहन पुनरीक्षण शुरू किया है, उसका सोमवार तक 88 प्रतिशत काम पूरा हो जाने का दावा किया जा रहा है। लेकिन कई सवालों के जवाब बाकी हैं, क्योंकि जिस तरह ये फॉर्म जमा किए गए हैं, वह संदेह खड़ा करता है। कहीं आधार नंबर लिया गया, कहीं नहीं, कहीं जन्म प्रमाण पत्र मांगा गया, कहीं नहीं, कहीं बीएलओ ने खुद से फॉर्म भरकर संस्तुति दे दी, तो कहीं एक बूथ पर सैकड़ों नाम पहले से कटे हुए पाए गए। ऐसे में चुनाव आयोग की यह प्रक्रिया सवालों के घेरे में है।
सवाल प्रक्रिया को लेकर भी हैं और राजनीतिक भी। इन्हीं सब सवालों को लेकर अब एनडीए के भीतर से भी इसे लेकर विरोध के स्वर उभरने लगे हैं। बिहार में बीजेपी के साथ सरकार चला रही जेडीयू का दावा है कि यह विशेष गहन पुनरीक्षण एक सामान्य प्रक्रिया है। लेकिन जब सवाल दस्तावेज मांगने का आता है, तब गड़बड़ी दिखती है। आयोग का कहना है कि दस्तावेज जरूरी नहीं हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर बीएलओ दस्तावेज मांग रहे हैं।
आजतक के अनुसार, जेडीयू नेता राजीव रंजन ने भी कहा कि इस प्रक्रिया में पारदर्शिता होनी चाहिए। जो भी नाम हटाए जाएं, उनका सार्वजनिक तौर पर ब्यौरा होना चाहिए। लोग देखें कि उनका नाम क्यों हटा। जिन्हें नाम हटाने पर आपत्ति है, वे अपनी बात रखें। दूसरी बात कि दस्तावेज अनिवार्य नहीं होने चाहिए। जन्म प्रमाण पत्र या आधार देना अनिवार्य नहीं है। इस प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं है। बीएलओ को साफ निर्देश होना चाहिए कि दस्तावेज मांगना अनिवार्य नहीं है। पर जमीनी स्तर पर बीएलओ दस्तावेज मांग रहे हैं।
इससे पहले कांग्रेस, आरजेडी, वाम दलों, जेएमएम, टीएमसी, एसपी, शिवसेना (उद्धव गुट) जैसे दल भी आयोग को पत्र लिखकर बिहार में जारी मतदाता पुनरीक्षण के समय और प्रक्रिया पर सवाल उठा चुके हैं। अब एनडीए की मुख्य सहयोगी टीडीपी ने भी इस प्रक्रिया पर आपत्ति जताई है, जिससे इस पर नए सिरे से सवाल खड़े होने तय हैं।
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