भीड़ की हिंसा की मोदी को कोई चिंता नहीं : सलमान खुर्शीद

अब घरों में भी लोग सुरक्षित नहीं हैं। पुलिस थाने पनाह पाने का आखिरी ठिकाना बन गए हैं। वह मानसिकता जो इसे वैध ठहरा रही है वह केवल मुसलमानों पर हमले तक नहीं रुकेगी।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद / फोट : कौमी आवाज
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद / फोट : कौमी आवाज
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नवजीवन डेस्क

भारत में सांप्रदायिकता का जैसा तांडव चल रहा है इसकी मिसाल हाल के कुछ वर्षों में देखने को नहीं मिलती। नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद बीजेपी और संघ ने धर्मनिरपेक्षता को ताक पर रख दिया और देश में हिंदुत्व विचारधारा लागू करना शुरू कर दिया। आखिर इनमें इतनी हिम्मत कहां से आ रही है? क्या इस संबंध में कांग्रेस पार्टी से कुछ गलतियां हुई? और अब कांग्रेस इस समय बीजेपी के सामने इस कदर मजबूर क्यों दिख रही है? इन सभी मुद्दों पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद से हमारे सहयोगी साइट 'कौमी आवाज' ने चर्चा की। प्रस्तुत है इस बातचीत के अंश ...

कौमी आवाज: भीड़ द्वारा हत्या करने की घटनाएं अब आम होती जा रही हैं। आखिरकार सरकार इस मुद्दे पर चुप क्यों है?

सलमान खुर्शीद: मैं यह नहीं मानता कि प्रधानमंत्री चाहते हैं कि लोगों को मारा जाए। लेकिन यह नहीं समझता कि लोगों के मारे जाने पर उन्हें कोई परवाह है। यह बिलकुल वही बात है कि जैसे किसी से पूछा जाए कि क्या आप भीड़ द्वारा की जाने वाली हत्या पसंद करते हैं तो किसी भी का यही कहना होगा कि बिल्कुल नहीं, वह यह भी कहेगा कि यह सब एक बहुत भयानक और बुरी बात है। लेकिन अगर आप फिर उस व्यक्ति से पूछें कि क्या वह इसे रोकने के लिए कुछ करेगा तो उसका जवाब होगा, मैं क्या कर सकता हूं।

कौमी आवाज: इस सबके शिकार होने वालों में ज्यादातर मुस्लिम समुदाय से है। आपकी नजर में इसकी कोई खास वजह...

सलमान खुर्शीद: यह बड़े दुख की बात है कि अल्पसंख्यक समुदाय इस सबके खिलाफ बोल भी नहीं पा रहा है। यूपीए के शासनकाल में यही अल्पसंख्यक वर्ग था जो पूरी तरह से कट्टरपंथी हो गया था। उसका आरोप था कि वह उनके लिए ज्यादा कुछ नहीं कर रही। लेकिन 2014 के बाद से यह तबका कहां है? मैं किसी को भी इस सरकार से ऐसा कुछ कहते नहीं सुना। मेरे कहने का यह मतलब नहीं है कि वह हमेशा गलत थे, लेकिन 2014 में उन्होंने जो तरीका अपनाया है, वही उनके लिए घातक साबित हो रहा है।

कौमी आवाज : क्या आप भीड़ द्वारा हत्याओं में कोई राजनीतिक एजेंडा देखते हैं, जैसा कि कुछ लोग कह रहे हैं? या फिर यह नया तरीका है जो दंगा करवाने की तुलना में अधिक कारगर और किफायती है?

सलमान खुर्शीद: मुझे नहीं पता। लेकिन सोचने की बात यह है कि हमारे समाज में आज क्या हो रहा है। पहले सड़कें असुरक्षित हुई और अब घरों के अंदर भी लोग सुरक्षित नहीं हैं। आज पुलिस थाने पनाह पाने का आखिरी ठिकाना बन गए हैं। वह मानसिकता जो इस सबको वैध ठहरा रही है वह केवल मुसलमानों पर हमले तक नहीं रुकेगी, बल्कि भविष्य में उसके निशाने पर अन्य लोग जैसे दलित, ईसाई, आदिवासी और बुद्धिजीवी भी होंगे।

कौमी आवाज: लोग आरएसएस को बढ़ावा देने के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हैं और कहते हैं कि जब कांग्रेस सत्ता में थी तो उसने संघ को काबू में करने के लिए कुछ खास कदम नहीं उठाया। इस पर आपकी क्या राय है?

सलमान खुर्शीद: मैं यह कहूंगा कि इस पर पार्टी के अंदर कभी विचार-विमर्थ नहीं हुआ। हमने कभी बातचीत नहीं की। अब इसकी वजह ये सब पहचानने की काबिलियत थी या साहस की कमी थी, मैं इस पर कुछ नहीं कहूंगा। लेकिन उस पर हमेशा दो सिद्धांत रहे हैं। एक तो यह कि हम आरएसएस को आगे बढ़ने से रोकने में गंभीर नहीं रहे। और दूसरा सिद्धांत यह है कि हम ईमानदारी से इस बात पर कायम रहे कि हमें कुछ करना ही नहीं है। मेरा मानना

है कि गंभीर न रहने वाली सोच, लोगों की व्यक्तिगत सोच थी, जबकि ईमानदारी दिखाने वाला फैसला सामूहिक था।

लेकिन इसका एक तीसरा कोण भी है, और वह यह है कि कांग्रेस के भीतर आरएसएस की घुसपैठ है, जो कांग्रेस को लंबे समय तक परेशान करेगी। अजीब बात यह है कि कांग्रेस के लोगों को यह पता ही नहीं है कि वे आरएसएस के लोग हैं। वह दिल से बहुत अच्छे आरएसएस के लोग हैं लेकिन उनके बारे में पता ही नहीं।

इसका अंदेशा पहली बार बाबरी मस्जिद की शहादत के समय हुआ था जब कांग्रेस के कुछ सदस्यों ने कहना शुरू किया था कि हमें धर्मनिरपेक्ष शब्द के इस्तेमाल से बचना चाहिए क्योंकि इससे गलत संदेश जाता है। मुझे उन लोगों के बारे में पता था और अगर आप मेरे दोस्तों से पूछेंगे तो वे आपको बताएंगे कि तीन साल पहले मैंने उन्हें उन कांग्रेसियों के नाम बताए थे जो पार्टी छोड़कर बीजेपी में जाने वाले थे। इनमें जगदंबिका पाल भाई और बहुगुणा बहन नाम भी शामिल है। लेकिन मुझे चुप कर दिया गया था। मुझसे कहा गया कि वे अच्छे पार्टी कार्यकर्ताओं हैं और मुझे व्यक्तिगत मतभेदों को सामने नहीं लाना चाहिए। अभी भी पार्टी में ऐसे कई लोग हैं और मुझे पता है कि आगे कौन लोग हैं जो पार्टी छोड़ेंगे और अपनी वफादारी कहीं और दिखाएंगे।

कौमी आवाज: सामाजिक संगठन तो भीड़ की हिंसा का विरोध कर रहे हैं। लेकिन कांग्रेस इस बारे में कोई पहल करती हुई क्यों दिखाई नहीं दे रही है

सलमान खुर्शीद: हमने वह सब कुछ किया जो कर सकते थे, लेकिन हमारे कामों को प्रचार नहीं मिलता। हां, अब भी लोग हैं जो हमें शक की नजरों से देखते हैं। हमारा पहला मसला यह है कि हम सिविल सोसायटी से संपर्क में नहीं हैं। वर्ष 2014 के चुनाव में सिविल सोसायटी ने बड़े पैमाने पर हमारा समर्थन किया था और उन्हें हमसे यह उम्मीद थी कि हम सरकार एक एनजीओ (गैर सरकारी संगठन) की तरह चलांएगे। राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) की रूप में उन्हें सरकार के कामकाज में जोड़ने की कोशिश भी की गई। लेकिन हमने उन्हें खो दिया है। कांग्रेस को सिविल सोसायटी से अब दोबारा बातचीत शुरू करनी चाहिए।

कौमी आवाज: लेकिन जब इंदिरा गांधी विपक्ष में थीं तब कांग्रेस ने ताकत और उत्साह के साथ वापसी की लड़ाई लड़ी थी। अब ऐसा क्यों नहीं हो रहा है?

सलमान खुर्शीद: आज समस्याएं काफी जटिल हैं। 1977 में समस्याएं इतनी जटिल नहीं थीं। आप एनडीटीवी का ही मामला ले लें। ज्यादातर लोगों के लिए यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मुद्दा था। लेकिन इसमें कई बारीकियां थीं। राजनीतिक पार्टी के रूप में हमें एक स्पष्ट रुख अख्तियार करना चाहिए और यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसी घटनाएं भविष्य में न हों। लेकिन वास्तव में यह इतना आसान नहीं है।

मेजर गोगोई का मामला ले लें, जिसने एक कश्मीरी नागरिक को जीप के आगे बांधकर मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल किया। किसी भी समझदार शख्स के लिए ये स्वीकार्य स्थिति नहीं होगी। लेकिन असाधारण परिस्थितियों में ऐसा कदम उठाने के लिए कई बार मजबूर हो जाते हैं। सरकार उसे शाबाशी देकर कुछ समय के लिए पर्दे के पीछे जाने को कह सकती थी। लेकिन सरकार ने उसे सम्मानित किया, उसे मीडिया के सामने लाया गया, उसे इंटरव्यू देने की इजाजत दी गई और उसे हीरो बना कर पेश किया गया। अब, क्या कांग्रेस का मेजर गोगोई के मामले में कोई स्पष्ट रुख है? नहीं, हमारा स्पष्ट स्टैंड नहीं है। क्या हम यह कह पाने की स्थिति में हैं कि ऐसा भविष्य में फिर से नहीं होगा? बेचारे संदीप दीक्षित देखें। वह एक गहरी समझ रखने वाले व्यक्ति हैं उन्होंने गंभीरता से अपनी राय व्यक्त की कि कोई भी सेना से यह उम्मीद नहीं रखता कि वह गुंडों की तरह व्यवहार करे। इस राय का की रिटायर्ड जरनलों ने भी समर्थन किया। लेकिन मीडिया संदीप पर बरस पड़ी और उन पर देशद्रोह का आरोप लगा दिया। अब हालात बहुत जटिल हैं।

कौमी आवाज: तो क्या कांग्रेस के लिए यह समस्या है कि वह अपनी बात कैसे रखे?

सलमान खुर्शीद: कई दूसरे मुद्दे भी हैं। इस व्यक्ति (नरेंद्र मोदी) के पास जादुई असर तो है। वह कुछ भी कहता है, लोग मान रहे हैं। वह बहुत चालाक है, वह अपनी खामियों और कमियों को भी छिपाना जानता है। नोटबंदी और जीएसटी मामले में उसकी किस्मत अच्छी रही है।

कौमी आवाज: किसानों में पैदा हुई नाराजगी का फायदा उठाने में कांग्रेस क्यों नाकाम साबित हुई?

सलमान खुर्शीद: कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने किसानों की समस्याओं को लगातार हर जगह उठाया है। और ऐसा केवल अभी नहीं किया गया है। लेकिन फिर भी इस बात को दोहराना चाहूंगा कि कांग्रेस ने अभी तक जमीनी स्तर पर लोगों से बात करना शुरू नहीं किया है। कांग्रेस को भी कई बातों का खुलासा करने की जरूरत है। किसान पलटकर हमसे यह कह सकते हैं कि जब कांग्रेस महाराष्ट्र में सत्ता में थी तो किसानों पर गोली क्यों चलाई गई थी। क्या हम उन्हें विश्वास दिला सकते हैं कि ऐसा फिर कभी नहीं होगा? अगर हम सत्ता में वापस लौटे और किसानों ने हमसे पूछा कि, 'अब क्या'? हम उनसे पलटकर क्या कहेंगे। कड़वी सच्चाई सत्य यह है कि कांग्रेस आज हर दिन नए आधार पर जी रही है, जबकि पार्टियां सैकड़ों वर्षों तक जीती हैं। इसलिए अब गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।

कौमी आवाज: यह एक राष्ट्रीय पार्टी है। कोई दीर्घकालिक रणनीति क्यों नहीं बनाई जा रही?

सलमान खुर्शीद: मुझे 1991 की पहली कैबिनेट बैठक याद आ रही है। मैं काफी जूनियर था और कुछ नहीं जानता था। लेकिन वरिष्ठ मंत्री उस ब्लू प्रिंट पर विचार विमर्श कर रहे थे जो राजीव गांधी छोड़कर गए थे। हमसे कहा गया कि उनके (राजीव गांधी) की दृष्टि महान है और उनके पास सुधारों का एक शानदार ब्लू प्रिंट है, जिस पर वह अमल करना चाहते हैं। उस समय चिदंबरम वाणिज्य मंत्री और मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे। आज, मुझे पता नहीं कि किसी भी मामले में (कांग्रेस के पास) ऐसा कोई ब्लू प्रिंट है।

कौमी आवाज: मूल बात यही है कि कांग्रेस कोई ब्लू प्रिंट क्यों नहीं ला रही है?

सलमान खुर्शीद: एक कारण तो चुनाव का शेड्यूल है। हम हमेशा चुनाव के दौर में ही रहते हैं, आज यहां चुनाव हैं तो कल वहां। आप को ऐसे लोग चाहिए जो कहें कि उन्हें चुनाव से कोई मतलब नहीं है, उन्हें एक ब्लू प्रिंट तैयार करना है जिस पर चर्चा होनी है, विचार-विमर्श होना है। और फिर यह तय करना है कि किस बात पर कब और कैसे अमल किया जाए। हमारे (कांग्रेस) पास अब ऐसा कोई समूह नहीं है।

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Published: 12 Aug 2017, 6:29 PM