निजी और सरकारी डिजिटल जगत की लोकतंत्र के खिलाफ मिलीभगत

सरकारी संस्थाओं और भगवा ट्रोल आर्मी की मिलीभगत अब खुलकर सामने आने लगी है। इसमें संघ परिवार के दस्तों की सक्रियता को जोड़ दें तो लोकतंत्र के खिलाफ एक खतरनाक कॉकटेल तैयार हो जाएगा।

फोटो : Hindustan Times via Getty Images
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नीलाभ मिश्र

गुरमेहर कौर का मामला एक लकीर है। एक विशाल भगवा ट्रोल आर्मी ने ग्रेजुएशन कर रही 20 साल की एक लड़की पर ऐसी मनोवैज्ञानिक हिंसा का तांडव दिखाया जिससे उस लड़की के हौसले पस्त हो जाएं और वह क्षेत्रों में कदम रखने में भी डरने लगे जिसमें दखल रखना अभी वह सीख ही रही है। कारगिल में देश के लिए कुर्बान हो जाने वाले एक सैनिक की बेटी गुरमेहर से उसके सारे अधिकार छीनने की साजिश की गयी। आजादी से अपने मन की बात बोलने के उसके अधिकार को, उसके पिता की देशभक्त विरासत को, सोशल मीडिया में उसके स्पेस को, और उसके शहर तक को उससे छीन लिया गया। वीरेन्द्र सहवाग, रणदीप हुड्डा, पहलवान फोगट बहनों से लेकर हमलावर ट्रोल का झुंड एक साहसी और ईमानदार युवा छात्रा के पीछे पड़ गया जो एक लोकतांत्रिक गणतंत्र के पूर्ण नागरिक बनने की दिलचस्प यात्रा पर निकली है।

युवाओं को कम उम्र में ही अपने संगठन में शामिल करना संघ परिवार का एक बड़ा एजेंडा है, ताकि वे 12 वर्ष के युवाओं को भी अपनी शाखाओं में बैठा कर उन पर अपनी संकुचित विश्वदृष्टि थोप सकें। यह एक ऐसी विश्वदृष्टि है जो समग्र और बहुलता भरे लोकतंत्र के साथ सहजता महसूस नहीं करती और आजादी की उस भावना के साथ टकराव में रहती है जो ऐसे लोकतंत्र की बुनियाद है। अगर आप आजादी और लोकतंत्र की भावना को खत्म करना चाहते हैं, तो युवावस्था में भी उन्हें चुप कराना और उन्हें अपने वश में करना जरूरी है।

मैं यहां 2006 की एक घटना को सिहरन के साथ याद करना चाहता हूं, जब प्रधानमंत्री मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। यह एक ऐसी घटना है जिसे संयोग से मैं सीधे तौर पर जानता हूं। दिल्ली का रहने वाला एक मुस्लिम पेशवर युवा अचानक गायब हो गया। वह राजनीतिक रूप से भी सक्रिय नहीं रहा और उसके अभिभावकों के भी कोई खुले राजनीतिक विचार सामने नहीं थे। अचानक एक दिन वह गायब हो गया और पता चला कि गुजरात पुलिस ने उसका अपहरण कर लिया है। उसकी बहन दिल्ली के अकादमिक जगत की एक जानी-पहचानी शख्सियत हैं। उन्होंने अपने कुछ दोस्तों और परिचितों से उस युवा और उसके परिवार की हालत को साझा किया। इस मसले का राजनीतिकरण करने में परिवार की कोई दिलचस्पी नहीं थी और वे चाहते थे कि शांतिपूर्ण तरीके से उस लड़के को छुड़ा लिया जाए। दोस्तों और एक्टिविस्ट द्वारा चुपचाप की कई कोशिशों से कई तकलीफ भरे दिनों के बाद आखिरकार उस युवा को छुड़ा लिया गया।

लेकिन गुजरात पुलिस ने आखिर उसे पकड़ा ही क्यों?

मालूम हुआ कि यह गुजरात पुलिस और गृह विभाग की एक साइबर खुफिया कार्रवाई थी। उस युवा लड़के के इन्बॉक्स में एक दिन बहुत लोगों को भेजा गया एक मेल आया था। यह मेल गांधीनगर और अहमदाबाद में होने वाले पतंगबाजी के उत्सव के बारे में था, सैलानियों को उसमें हिस्सा लेने के लिए सामान्य रूप से आमंत्रित किया गया था। यह आमंत्रण गुजराती गौरव के स्वयंभू रखवाले की तरफ से आया था। पूरे देश के अल्पसंख्यकों की चेतना में उस समय तक 2002 के गुजरात दंगों के जख्म ताजा थे। इसलिए लड़के ने उस मेल की प्रतिक्रिया में एक चालू गाली टाइप कर भेज दिया। और इसी वजह से वह युवा गुजरात पुलिस के हवालात में पहुंच गया।

सोशल मीडिया की सक्रियता और भगवा ट्रोल की मारने वाली भीड़ का दौर भारत में आया भी नहीं था। लेकिन गुजरात पुलिस ने अनैतिक और गैरकानूनी साइबर खुफिया कार्रवाईयों की शुरूआत कर दी थी, एक युवा को चुप कराने और उसे नुकसान पहुंचाने की वैसी ही कार्रवाई चल रही थी जैसी गुरमेहर कौर के साथ हुई। बीजेपी शासित गुजरात और उसकी पुलिस गैरकानूनी और अलोकतांत्रिक ढंग से तब साइबर मिलीभगत कर रही थी। उस युवा लड़के के लिए यह बहुत डरावना था क्योंकि उसे लंबे वक्त के लिए कैद में रखा जा सकता था।

इन दोनों घटनाओं और हाल में सामने आए दो अन्य मसलों के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए हमें भारतीय लोकतंत्र को लेकर चिंतित होना चाहिए। पहला, बीजेपी की सोशल मीडिया गतिविधियों (पढ़े ट्रोलिंग और पीछा करना) का हिस्सा रहे तीन लोगों को गृह मंत्रालय ने सलाहकार के तौर पर नियुक्त कर दिया, जबकि मंत्रालय के पास जनसंपर्क के लिए एक अलग सोशल मीडिया सेल है। यह तीन लोग हैं एसबी नवरंग, रवि रंजन और शिशिर त्रिपाठी। इसका मतलब यह हुआ कि यह ट्रोल विशेषज्ञ उस सांस्थागत निगरानी का हिस्सा बन गए जो गृह मंत्रालय के भीतर आता है। राज्य की संस्थाओं और भगवा ट्रोल आर्मी की अब मिलीभगत होगी। इसमें संघ परिवार के संगठनों अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्, विश्व हिंदू परिषद् और बजरंग दल और तरह-तरह के गौ-रक्षकों की सक्रियता को जोड़ दें तो लोकतंत्र के खिलाफ एक खतरनाक कॉकटेल तैयार हो जाएगा।

आधार अधिनियम के तहत समीर कोचर के खिलाफ दर्ज एफआईआर यह दिखाती है कि मोदी शासन कैसे आम लोगों के खिलाफ डिजिटल दुनिया को नियंत्रित कर चलाना चाहती है। समीर कोचर ने आधार बायोमेट्रिक डाटा की साइबर सुरक्षा की कमियों की तरफ ध्यान दिलाया था। इस मामले में खबरों के मुताबिक कोचर ने जो सवाल पूछा, वह सबसे जरूरी सवाल है: क्या राज्य की अंदरूनी व्यवस्था नागरिकों के डिजिटल डाटा को चुराना चाहती है और लोकतांत्रिक नागरिकता के खिलाफ इसे एक हथियार की तरह इस्तेमाल करना चाहती है। यह सबकुछ एक संकुचित विश्वदृष्टि के साथ मिलीभगत में हो रहा है। यह एक साहसी भारत नहीं, बल्कि एक डरा हुआ भारत बनाने की कोशिश है।

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