खरी-खरी: घृणा की राजनीति से मुक्ति दिलानी होगी देश को, युवा को चाहिए हिंदू-हिंदुत्व का अंतर समझाने वाला नैरेटिव

इस देश को हिन्दुत्व से परे एक नए नैरेटिव की आवश्यकता है। हिन्दू एवं हिन्दुत्व का अंतर वह नैरेटिव हो सकता है जो देश को पुनः गांधी जी एवं नेहरू के आधुनिक मार्ग पर वापस ला सकता है। इस इक्कीसवीं शताब्दी में इस देश के युवा को एक नए वैचारिक नैरेटिव की तलाश है।

फोटो : सोशल मीडिया
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ज़फ़र आग़ा

साल 2021 अत्यंत कठिन वर्ष था जो भारत पर बहुत भारी पड़ा। कोविड 19 महामारी ने देश में वह हाहाकार मचा दिया जिसका कोई उदाहरण स्वतंत्र भारत में नहीं मिलता। लाखों व्यक्ति इस महामारी में फरवरी से जून के बीच मारे गए। स्वयं मैं मरते-मरते बचा। मेरी पत्नी तो इस महामारी की शिकार हो ही गईं। सबसे दुखद बात तो यह है कि लोग मच्छर की तरह मरते रहे और भारत सरकार से लेकर राज्य सरकारों तक सब ही हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। इस इक्कीसवीं शताब्दी में इससे बड़ी त्रासदी और क्या हो सकती है कि स्वयं देश की राजधानी दिल्ली में लोग ऑक्सीजन की कमी के कारण अस्पतालों में मर गए। भारत के लिए यह एक कलंक है जिसको हमें याद रखना चाहिए ताकि फिर ऐसी गलती न होने पाए।

यह तो सन 2021 वर्ष की एक त्रासदी थी। इससे भी दुखद बात यह है कि इस वर्ष देश ‘हेट पॉलिटिक्स’ की चरम सीमा पर पहुंच गया। अभी चंद रोज पहले हरिद्वार में जिस प्रकार एक धर्म संसद में साधुओं की भीड़ में मुस्लिम समाज के नरसंहार का आह्वान किया गया, उसने देश ही नहीं, अपितु भारतीय सभ्यता को भी कलंकित कर दिया। मेरे अपने विचार में यह तो संपूर्ण हिन्दू समाज को कलंकित करने वाली बात है। हमने अभी तक हिन्दू धर्म को जो थोड़ा-बहुत समझा है, उसमें हरिद्वार में जिस प्रकार की हिंसात्मक भाषा का प्रचार हुआ, उसकी कोई जगह इस उदारवादी धर्म में नहीं है। हिन्दू धर्म हर प्रकार की कट्टरपंथी विचारधारा से परे सर्व धर्म समभाव के मार्ग पर चलने की शिक्षा देता है। तब ही तो सैकड़ों वर्षों से इस देश में मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे एवं चर्च सब एक साथ अपने-अपने भगवान की प्रार्थना करते हैं। परंतु उसी भारत वर्ष में सन 2021 में हिन्दू धर्म की आड़ में धर्म के आधार पर मानव नरसंहार की बात हो रही है। यह अत्यंत दुखद ही नहीं, अपितु शर्मनाक बात है।

परंतु यह तो होना ही था। सन 2014 से धर्म के नाम पर जिस प्रकार की राजनीति हो रही है, वह यदि वास्तव में खुले नरसंहार तक पहुंच जाए तो शायद हैरत न हो। नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में संघ एवं भाजपा ने देश में जिस विचारधारा का जहर बोया है, वह देश को सन 1930 के जर्मनी के कगार पर ले आया है। भारत वर्ष को अब एक ‘इक्जिस्टेंसियल क्राइसिस’ का सामना करना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में भाजपा से परे विचारधारा वाली राजनीतिक विचारधारा की पार्टियों पर बड़ी जिम्मेदारी है कि वे दृढ़ता से खड़े होकर इस चैलेंज का सामना करें। कांग्रेस एवं वामपंथी जैसी पार्टियों के लिए चुनावी हित से ऊपर उठकर देश में एक वैचारिक क्रांति उत्पन्न करने का समय आ गया है। कांग्रेस पार्टी ने इस देश का केवल स्वतंत्रता संग्राम में ही नेतृत्व नहीं किया है, अपितु इस देश को अपनी सभ्यता की परिधि में रहते हुए एक आधुनिक विचारधारा के साथ आधुनिकता का मार्ग भी दिखाया है। अतः देश के ऐसे वैचारिक संकट के समय कांग्रेस का यह दायित्व बनता है कि पार्टी फिर से एक बार दृढ़ता से खड़ी होकर देश एवं देशवासियों को पुनः उसी आधुनिकता के मार्ग पर वापस लाए जो मार्ग इस देश ने सन 1947 में गांधी जी एवं जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में चुना था।

हर्ष की बात यह है कि अभी 28 दिसंबर को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कांग्रेस स्थापना दिवस के अवसर पर जो भाषण दिया, उससे यह संकेत मिलता है कि कांग्रेस नेतृत्व यह जिम्मेदारी संभालने को तत्पर है। इस अवसर पर सोनिया जी ने कहा, ‘चुनावी उतार-चढ़ाव तो आते-जाते रहते हैं। परंतु जो बात याद रखने की है, वह यह है कि हम अपनी (कांग्रेस) विचारधारा से कितना जुड़े हैं और उस विचारधारा से देश की रंगारंग जनता की कितनी सेवा कर रहे हैं।’ इस संबंध में उन्होंने देश में नफरत की फैलती राजनीति की भी व्याख्या की। यह इस बात का संकेत है कि कांग्रेस पार्टी संघ एवं भाजपा के साथ खुलकर एक वैचारिक जंग लड़ने को कमर कस रही है। इस बात का संकेत राहुल गांधी के जयपुर भाषण से भी मिलता है।


राहुल ने इस भाषण में हिन्दू धर्म एवं समाज तथा हिन्दुत्व के बीच अंतर की बात छेड़ी। उनके अनुसार, वे हिन्दू हैं परंतु हिन्दुत्ववादी नहीं हैं। उनका कहना है कि वे गांधी हैं परंतु गोडसे नहीं हैं। यह एक वैचारिक भाषण था और इस समय कांग्रेस पार्टी ही नहीं, देश को हिन्दुत्व से परे एक नए नैरेटिव की आवश्यकता है। हिन्दू एवं हिन्दुत्व का अंतर वह नैरेटिव हो सकता है जो देश को पुनः गांधी जी एवं नेहरू के आधुनिक मार्ग पर वापस ला सकता है। इस इक्कीसवीं शताब्दी में इस देश के युवा को एक नए वैचारिक नैरेटिव की तलाश है। राहुल गांधी का ‘हिन्दू बनाम हिन्दुत्व’ वह नैरेटिव हो सकता है जो देश को घृणा की राजनीति से परे ले जा सकता है।

निःसंदेह इस मार्ग पर देश को चलाना कोई सरल काम नहीं है। यह वह मार्ग है जिस पर गांधी जी को भी चलने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। परंतु अब भारतवर्ष के सामने देश हित में केवल एक यही मार्ग है जिस पर चलकर केवल देश ही नहीं अपितु भारतीय उदारवादी सभ्यता को बचाया जा सकता है। मेरी अपनी राय में राहुल गांधी ही इस मार्ग पर देश का नेतृत्व कर सकते हैं। अतः जयपुर में राहुल ने जिस ‘हिन्दू बनाम हिन्दुत्व’ का वैचारिक आह्वान किया है, अब नए वर्ष में उस मार्ग पर दृढ़ता से चलकर देश में एक वैचारिक क्रांति उत्पन्न कर दे।

यूपी में भाजपा को चुनाव में ओमिक्रॉन का सहारा

उत्तर प्रदेश में चुनावी संग्राम छिड़ चुका है। परंतु दो माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव पर कोविड का प्रश्न चिह्न लग चुका है। इसमें कोई शक नहीं कि ओमिक्रॉन की लहर दरवाजा खटखटा रही है। ऐसी दशा में चुनाव करा पाना कठिन होगा। फिर ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा चुनाव से कम-से-कम उत्तर प्रदेश में भयभीत है। ऐसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं कि मोदी सरकार चुनाव टालने की तैयारी कर चुकी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदरणीय जज साहब सरकार एवं चुनाव आयोग को यह राय दे ही चुके हैं कि चुनाव टाल दिए जाएं। उसके तुरंत बाद चुनाव आयोग का एक दल उत्तर प्रदेश के हालात परखने प्रदेश पहुंच गया। देखते-देखते चुनाव आयोग एवं केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के बीच खिचड़ी पकने लगी।

भाजपा पहले ही चुनावसे घबराई दिखाई पड़रही है। पांच प्रदेशों में होने वाले चुनावों में से चार प्रदेशों में भाजपा के लिए परिस्थितियां अनुकूल नहीं दिखाई पड़ रही हैं। पंजाब में अकालियों का साथ छूटने के बाद भाजपा के लिए सरकार बना पाना असंभव है। कैप्टन अमरिंदर सिंह का साथ अकालियों की कमी नहीं पूरी कर सकता है। उत्तराखंड में भी स्थिति ठीक नहीं दिख रही है। गोवा से भी भाजपा के लिए अच्छी खबर नहीं आ रही है। पांच साल की एंटी इनकम्बेन्सी भाजपा को भारी पड़ सकती है। उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी एवं अखिलेश यादव की रैलियों में उमड़ती भीड़ से भाजपा के होश उड़े हुए हैं। प्रसिद्ध है कि डूबते को तिनके का सहारा। ऐसी दशा में भाजपा को इस चुनाव में अब ओमिक्रॉन का ही सहारा दिखाई पड़ रहा है।


कोविड की तीसरी लहर की सुगबुगाहट

सन 2021 का आरंभ कोविड की डेल्टा लहर से हुआ था। अब 2022 के सिर पर ओमिक्रॉन का खतरा मंडरा रहा है। जरा सोचिए, अमेरिका में पिछले सप्ताह केवल एक दिन में पांच लाख व्यक्ति ओमिक्रॉन के शिकार हो गए। ऐसी स्थिति में कोई भी देश ओमिक्रॉन के लिए अस्पताल कहां से ला सकता है। यदि भारत में एक दिन में कोविड से लाखों लोग ग्रस्त हो गए, तो हमारा क्या होगा। डेल्टा लहर में हम अस्पतालों की दुर्दशा देख चुके हैं। आगे क्या होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है। सरकार पर भरोसा करना बेकार है। पिछली लहर में हमने देश के नाम बहुत संदेश सुने, पर हाल क्या हुआ, आप अवगतहैं। अतः इस बार भी भाषण ज्यादा होगा और काम कम।

ओमिक्रॉन से बचने के लिए देशवासियों को स्वयं रास्ता ढूंढना होगा। यह अति तेजी से लगने वाली छुआछूत की बीमारी है। इससे बचने का केवल एक ही उपाय है कि घर बैठें। टीका जल्द से जल्द लगवाएं। बाजार अथवा भीड़भाड़ से बिल्कुल दूर रहें। इससे पहले कि देश में लॉकडाउन की घोषणा हो अपने गांव-देहात अभी से वापस चले जाएं। वरना फिर हजारों मील पैदल चलकर घर जाना होगा। बस यूं समझिए, ओमिक्रॉन लहर से केवल भगवान ही बचा सकता है। अतः सतर्क रहिए, टीकाकरण करवाइए और भीड़ से बचिए!

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