शैलेन्द्र: अपने गीतों से दुनिया बदलने का सपना देखने वाला आदर्शवादी जमाने का गीतकार

1950 के शुरुआती दिनों में शैलेंद्र मुंबई के रेलवे यार्ड में एक वेल्डर के तौर पर काम करते थे। कहा जाता है कि शर्मीले स्वभाव के शैलेंद्र चिंगारियों से जला छींटदार शर्ट पहनकर इंडियन पिपुल्स थियेटर एसोसिएशन के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लिया करते थे।

फोटो: सोशल मीडिया
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आशुतोष शर्मा

जी करता है जीते जी

मैं यूं ही गाता जाऊं

गर्दिश में थके हारों का

माथा सहलाता जाऊं

फिर इक दिन तुम दोहराओ

मैं गाऊं तुम सो जाओ

सुख सपनों में खो जाओ

हिंदी फिल्म ब्रह्मचारी (1968) में फिल्माई गई लोरी की ये पंक्तियां मार्क्सवादी कवि और प्रसिद्ध गीतकार शैलेंद्र का शानदार परिचय हैं।

साल 1923 में 30 अगस्त को शंकरदास केसरीलाल के रूप में जन्मे शैलेंद्र ने अपने समय के सबसे लोकप्रिय कवियों में से एक होने और बॉलीवुड का सबसे महंगा गीतकार बनने से पहले जिंदगी में काफी संघर्ष किया।

1950 के शुरुआती दिनों में वह मुंबई के रेलवे यार्ड में एक वेल्डर के तौर पर काम करते थे। कहा जाता है कि शर्मीले स्वभाव के शांत रहने वाले शैलेंद्र चिंगारियों से जला छींटदार शर्ट पहनकर इंडियन पिपुल्स थियेटर एसोसिएशन के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लिया करते थे।

हालांकि ये शोले कभी भी उनकी काव्य महत्वाकांक्षाओं और जुनून को झुलसा नहीं सके। गीतकारों की कई पीढ़ियों को प्रेरित करने वाले शैलेंद्र ने जो गीत लिखे वे आज भी लोगों की दिलोदिमाग में ताजा हैं।

सादगी और ईमानदारी

शैलेंद्र ने अपनी एक खास लेखन शैली का प्रदर्शन किया। उन्होंने जटिल भावनाओं और ख्यालों को सरल शब्दों में व्यक्त किया। लेकिन उन्होंने जो भी लिखा, वह कविता पर गहरा असर छोड़ने वाले वाले 15 वीं सदी के भक्ति आंदोलन के कवि संत कबीर के दोहों और 16 वीं सदी की भक्ति कवि मीरा बाई की कविता से अलग नहीं था।

फिल्मों के लिए भी उन्होंने गहरे दार्शनिक गीत लिखे जो आज भी लोकप्रिय हैं। फिल्म तीसरी कसम (1966) के गाना ‘सजन रे झूठ मत बोलो’ में वह एक आदर्शवादी की तरह बात करते हैं, जो भौतिक शौक और दौलत पर सच्चाई, करुणा, उदारता और अच्छे कर्मों को तरजीह देता है और तुच्छता से बचने के लिए जीवन मूल्यों के साथ खड़े रहने के लिए कहता है।

गाइड (1965) फिल्म का ‘मुसाफिर जाएगा कहां; एक और दार्शनिक गीत है जो ऐसे बुनियादी सवाल उठाता है, जिनका सामना हर किसी को अपनी जिंदगी में आज न कल करना पड़ता है।

इस निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले कि यह दुनिया एक मृगतृष्णा है, वह उन विचारों को रेखांकित करते हैं जो हर ईमानदार आदमी के जहन में उठते हैं: "आपने दूसरों को राह दिखाई, आप कैसे अपनी मंजिल भूल सकते हैं, दूसरों की समस्याओं को सुलझाने वाले आप कैसे कमजोर धागों में उलझ गए, क्यों सपेरा अपनी ही धुन पर झूम रहा है।”

बंदिनी (1963) का ‘ओ मेरे मांझी’ में विशेष साहित्यिक और दार्शनिक गहराई है और आज भी यह गीत सभी पीढ़ियों में एक समान लोकप्रिय है।

फिल्म सीमा (1955) के गीत ‘तू प्यार का सागर है’ में शैलेंद्र एक लंबे समय से बिछड़े प्रेमी से जीवन और मृत्यु की दो सीमाओं के बीच प्यार करने की एक जख्मी दिल की असीम ख्वाहिशों के बारे में बात करते हैं।

राज कपूर और उनके अनोखे नृत्य ने सदाबहार गीत ‘किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार’ को अमर कर दिया। इस गाने में शैलेन्द्र कहते हैं, ‘दूसरों के साथ मुस्कुराने के लिए अपनी मुस्कुराहटों का बलिदान देना, किसी का दुख और किसी की परेशानी बांटना और किसी के लिए अपने दिल में प्यार पैदा करना ही तो जिंदगी है।’

एक दार्शनिक की तरह प्यार में बर्बाद हो जाने के लिए कहते हुए वह आगे जोड़ते हैं, ‘अगर मर जाने के बाद हमें कोई याद करता है, हम किसी के आंसुओं में मुस्कुराते हैं, यही जिंदगी है।’

सामाजिक और राजनीतिक चेतना

जहां उनके गानों की अच्छी-खासी संख्या समाजवादी आस्था को दर्शाती है, वहीं राजनीतिक मुद्दों पर लिखे उनके ज्यादातर गीत आज भी इप्टा सहित देश की कई नाटक मंडलियों के प्रमुख गीत बने हुए हैं।

तू जिंदा है तो जिंदगी की जीत पर यकीन कर

अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर

राज कपुर की श्री 420 (1955) में फिल्माए गए ‘मेरा जूता है जापानी’ में शैलेंद्र एक अल्मस्त नवयुवक की तरह बात करते हैं जो हिंदुस्तान की सच्चाई को दर्शाता है।

अपने इस मशहूर गाने में वह कहते हैं, हमें अन्य संस्कृतियों और देशों से जरूर सीखना चाहिए और अपने मूल्यों से कोई समझौता किए बिना हमें दिल से सच्चा हिंदुस्तानी बने रहना चाहिए।

इसी फिल्म के एक अन्य गीत ‘दिल का हाल सुने दिल वाला’ में वह वर्ग-संघर्ष, शोषण, भूख और भाई-भतीजावाद के बारे में बात करते हैं।

मंजिल मेरे पास खड़ी है

पांव में लेकिन बेड़ी पड़ी है

टांग अड़ाता है दौलत वाला

एक अन्य गीत में वह भूख के बारे में बात करते हैं। वह कठोरता की बजाय बेहद आकर्षक तरीके से काव्यात्मक रूप में कहते हैं:

सुराज जरा आ पास आ

आज सपनों की रोटी पकाएंगे हम

ऐ आसमां तू बड़ा मेहरबान

आज तुझको भी दावत खिलाएंगे हम

रोमांटिक और प्रेम के गीत

उनके ज्यादातर रोमांटिक और प्रेम गीत बॉलीवुड के बेहतरीन गीतों में गिने जाते हैं। गाइड (1965) के कई गीतों में से एक ‘आज फिर जीने की तमन्ना है’ एक ऐसी विवाहिता की भावनाओं की बात करती है जो अपनी शादी से खुश नहीं है और उससे बाहर प्रेम की तलाश करती है। एक ऐसी महिला जो लैंगिक रूढ़िवादिता को तोड़ना और सामाजिक वर्चस्वों को मात देना चाहती है। जब शैलेंद्र ‘हा हा हा हा हा’ जैसे हल्के-फुल्के मानवीय अभिव्यक्ति वाले गीत से जब ऐसी स्त्री की भावनाओं को व्यक्त करते हैं, तो वह गीत भी बेहद लोकप्रिय हो जाता है। उनके गीतों में ऐसा काव्य पहले कभी नहीं सुनाई दी।

चोरी चोरी (1956) में ‘ये रात भीगी भीगी’ में अपने प्रेमी के साथ के लिए उठने वाली तड़प के मीठे दर्द का वर्णन कविता के जरिये शैलेंद्र से बेहतर कौन कर सकता था।

श्री 420 (1955) का गीत ‘प्यार हुआ इकरार हुआ’ प्रेमियों के मिलन की शुरुआत का जश्न मनाता है। प्यार हो जाने और उसके कबूल होने के बाद भी अपने प्रेम के सफर और मंजिल से अंजान ये जोड़ा भय, आशंकाओं के साथ संघर्ष कर रहा है!

‘आवारा हूं’ और ‘सुहाना सफर’ जैसे गाने एक ऐसे व्यक्ति की भावनाओं को दर्शाते हैं जो जिंदगी के सफर में अकेला है और प्यार की तलाश कर रहा है। इन गीतों में अकेलापन उम्मीद और आशावाद के साथ नजर आता है। वास्तव में, आवारा में वह ऐलान या दावा करते हैं: "हां, मैं तबाह हो चुका हूं, लेकिन मैं खुशी के गीत गाता हूं। मेरा सीना जख्मों से छलनी है, लेकिन मेरी बेपरवाह निगाह हंसती है ।"

भोजपुरी की विरासत

भारत के उत्तरी हिस्से और नेपाल के तराई क्षेत्र में बोली जाने वाली भोजपुरी उनकी मातृभाषा थी।

‘पान खाय सैंया हमार’, ‘सजनवा बैरी हो गए हमार’, ‘अब के बरस मोरे भैया को भेजो’ और ‘चलत मुसाफिर मोह लियो पिंजरे वाली मुनिया’ जैसे उनके कई गाने भोजपुरी के लोक गीतों की तरह लगते हैं।

दिलचस्प बात है कि वह उर्दू में भी उतने निपुण थे। फिल्म अनरकली (1953) में उनका गीत ‘दुआ कर गम-ए-दिल-खुदा से दुआ कर’ और फिल्म यहूदी (1958) का ‘ये मेरा दीवानापन है’ इस तथ्य को प्रमाणित करता है।

भावनात्मक झटका

शैलेंद्र ने राज कपूर की आग्रह पर फिल्म उद्योग में प्रवेश किया था, जब वह 500 रुपये का कर्ज वापस करने उनके पास गए थे। उन्होंने लगभग 20 वर्षों के अपने कैरियर में सैकड़ों यादगार गीत दिए। इसके अलावा उन्होंने फिल्म तीसरी कसम भी बनाई जिसे समीक्षकों ने काफी पसंद किया। इस फिल्म को वह कभी भी एक ठेठ बम्बईया फिल्म के रुप में नहीं बनाना चाहते थे। जैसा कि बहुत से लोगों ने संभावना जताई थी यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह असफल हो गई। सारी जिंदगी अपने गीतों में प्यार और खुशी की बात करने और ‘गाता रहे मेरा दिल’ की दुआ करने वाले शैलेंद्र ने 43 वर्ष की उम्र में धोखा खा कर और भावनात्मक रूप से टूट कर इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

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Published: 01 Sep 2017, 10:49 AM