तितली उड़ी, उड़ जो चली...

फ़िल्मी दुनिया को शारदा के रूप में एक कमसिन ओर शोख़ सी आवाज़ अचानक ही मिली। शारदा के साथ हुए एक इत्तेफ़ाक़ ने उन्हें ऐसा मौक़ा दिया जिसका वो सिर्फ़ सपना देखा करती थीं।

पुराने जमाने की मशहूर पार्श्व गायिका शारदा / फोटो : इकबाल रिज़वी
पुराने जमाने की मशहूर पार्श्व गायिका शारदा / फोटो : इकबाल रिज़वी
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इकबाल रिजवी

“तितली उड़ी उड़ जो चली, फूल ने कहा आजा मेरे पास, तितली कहे मैं चली आकाश”, फिल्म सूरज (1969) का ये गीत 48 साल पहले जब शारदा ने गाया, तो भला किसे एहसास था कि आने वाली कई पीढ़ियों के बच्चे इस गाने को गुनगुनाते हुए बड़े होंगे।

फ़िल्मी दुनिया को शारदा के रूप में एक कमसिन ओर शोख़ सी आवाज़ अचानक ही मिली। शारदा के साथ हुए एक इत्तेफ़ाक़ ने उन्हें ऐसा मौक़ा दिया जिसका वो सिर्फ़ सपना देखा करती थीं। उन दिनों वे अपने परिवार के साथ तेहरान में थीं। वहां एक समारोह में उन्हें राजकपूर ने गाते हुए सुना। उच्चारण में हल्के से दोष के बावजूद राज साहब को उनकी आवाज बहुत पसंद आई। कुछ समय बाद जब शारदा मुम्बई पहुंचीं तो ये जान कर उनकी खुशी का ठिकाना न रहा कि राजकपूर उन्हें भूले नहीं थे।

उन्होंने शारदा से एक गीत गाने की फरमाईश की। उनका गाया गीत सबको बहुत पसंद आया। शंकर- जयकिशन की जोड़ी के शंकर ने शारदा की शोख़ और कमसिन आवाज़ का इस्तेमाल अपने संगीत में एक अलग शेड देने के लिये करने का मन बना लिया। फिर वो दिन भी आया जब शंकर जयकिशन के संगीत में शारदा ने फ़िल्म सूरज के तितली उड़ी के अलावा एक और गीत ‘ देखो मेरा दिल मचल गया’ गाया। जिसने भी ये गीत सुने, वो शारदा की आवाज़ पर फ़िदा हो गया।

लेकिन ये इत्तेफ़ाक़ था कि सूरज से पहले मनोज कुमार-नन्दा की जोड़ी वाली फ़िल्म गुमनाम रिलीज़ हो गयी। इसमें शारदा का मोहम्मद रफ़ी के साथ गाया गीत ‘जाने चमन शोला बदन पहलू में आ जाओ’ भी शामिल था। गुमनाम के गीत जब सुने गए तो शारदा की एकदम अलग किस्म की आवाज पर किसी ने खास ध्यान नहीं दिया। लेकिन, सूरज के गानों की शोहरत ने शारदा को रातों रात स्टार बना दिया। आलम ये हुआ कि उस साल फ़िल्म फ़ेयर अवार्ड के लिये तितली उड़ी ...और रफ़ी के गाए गीत बहारों फूल बरसाओं ... को बराबर बराबर वोट मिले।

उन दिनों प्लेबैक सिंगर की कैटेगिरी में पुरुष और महिला आवाजों के लिये एक ही अवार्ड होता था। उस साल अवार्ड तो मोहम्मद रफी को मिला, लेकिन शारदा को स्पेशल अवार्ड दिया गया। इसके साथ ही शारदा ने इतिहास रच दिया,क्योंकि अगले साल से फ़िल्म फ़ेयर ने पुरुष और महिला गायकों के लिये अलग अलग अवार्ड देना शुरू किये।

1967 में शंकर जयकिशन के संगीत से सजी फ़िल्म आयी अराउंड द वर्ल्ड। शारदा की अवाज़ के जादू ने फिर से सबका मन मोह लिया। गीत था, ‘चले जाना... ज़रा ठहरो... किसी का दम निकलता है – ये मंजर देखते जाना ’।

शारदा के गाए गीतों की तारीफ़ तो हुई मगर उनकी आवाज़ की आलोचना भी होने लगी। कहा गया कि शारदा की आवाज़ अनगढ़ और कच्ची है। लेकिन शंकर ने किसी आलोचना पर ध्यान नहीं दिया, वो शारदा को लगातार मौक़े देते रहे। उनके भरोसे ने रंग दिखाया और जिस दौर में लता, आशा भोसले और सुमन कल्याणपुर ज़्यादातर हिरोइन के लिये गाने गा रही थीं, उसी दौर की फ़िल्म ‘ जहां प्यार मिले ‘ के एक गाने के लिये शारदा को फ़िल्म फ़ेयर का अवार्ड मिला। लेकिन हैरत इस बात की है कि महज़ 20 गाने गाने के बाद फ़िल्म फ़ेयर अवार्ड हासिल करने वाली शारदा को शंकर जयकिशन के अलावा सिर्फ़ उषा खन्ना ने ही मौक़ा दिया

उस समय की ज़्यादातर अभिनेत्रियां लता या आशा की आवाज़ में ही अपने गाने गवाना चाहती थीं। शारदा के नाम पर ये मोहर लग गयी कि उनकी आवाज तो सिर्फ़ शंकर ही इस्तमाल करते हैं। जैसे- जैसे वक्त गुज़राता गया शारदा के लिये हालात मुश्किल होते गए। यहां तक की शारदा से गाने तो गवा लिये जाते थे, लेकिन फ़िल्म रिलीज़ होने तक वो गाने फ़िल्म से बाहर कर दिये जाते थे।

फ़िल्मी दुनिया में शारदा का ना तो कोई गहरा दोस्त था ना ही सहारा सिर्फ़ एक शंकर थे जिनका संरक्षण उन्हें हमेशा मिलता रहा। मगर दूसरे बड़े संगीतकार गाने का मौक़ा देने से कतराते रहे।

इस राजनीति ने शारदा को बुरी तरह परेशान कर दिया। लेकिन वो हारना नहीं चाहती थीं। उन्होंने नया अवतार ले लिया और ख़ुद को संगीतकार के रूप में गढ़ना शुरू किया। उन दिनों निजी गीतों का बाजार अस्तित्व में नहीं आया था। फिल्मी गीतों के अलावा या तो भजन के रिकार्ड जारी होते थे या फिर गजल और कव्वाली के। शारदा ने आठ पॉप गीत तैयार किये, जिन्हें एचएमवी ने जारी किया। शारदा का नया प्रयोग चर्चित ज़रूर हुआ लेकिन उसका लाभ शारदा नहीं उठा सकीं । शायद तब तक भारत में पॉप संगीत के लिये माहौल नहीं बन पाया था। लेकिन इस प्रयोग से शारदा को एक फ़ायदा ये हुआ कि कम बजट में फ़िल्म बनाने वाले प्रोड्यूसर उनके पास आने लगे। “मां बहन और बीवी” सहित कुछ फिल्मों में उन्होंने संगीत दिया।

शारदा के लिये साल 1987 बेहद मनहूस ख़बर ले कर आया। फ़िल्मी दुनिया में उनका इकलौता सहारा यानी शंकर इस दुनिया को छोड़ गए। शारदा को यकीन होने लगा कि उन्हें गाना गाने के मौक़े नहीं मिल पाएंगे। शारदा ने भी फिल्म संगीत से किनारा कर लिया। शारदा की कमसिन और अल्हड़ आवाज़ आखिरकार फ़िल्मों से बिदा हो गयी।

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Published: 09 Aug 2017, 6:33 PM