कोरोना से लड़ाई में रिकवरी रेट की बात समझ से परे, कम टेस्ट की वजह से संक्रमितों की संख्या कम

कोरोना मामलों पर अपनी प्रेस में जारी किए जाने वाली सामग्री में सरकार का फोकस दो चीज़ों पर रहता है। एक तो यह कि रिकवरी दर बढ़ रही है, और दूसरी यह कि प्रधानमंत्री मोदी की लॉकडाउन रणनीति नहीं होती तो हालात बिगड़ सकते थे।

फोटो: सोशल मीडिया
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आकार पटेल

सरकार का कहना है कि हमने देशव्यापी लॉकडाउन करके 37,000 से 71,000 लोगों की मौत होने से बचाली। सरकार कहती है कि अध्ययनों से पता चलता है कि अगर भारत में लॉकडाउन का आदेश नहीं दिया जाता तो भारत में 14 से 29 लाख मामले हो सकते थे। सरकार, या कम से कम अपनी व्यक्तिगत क्षमता में नीति आयोग के एक सदस्य ने भी, 24 अप्रैल को कही गई अपनी उस बात के लिए माफी मांगी कि मई अंत तक देश में कोरोना के शून्य मामले होंगे।

नीति योग के सदस्य ने शुक्रवार को एक सवाल के जवाब में कहा कि “किसी ने भी यह कभी नहीं कहा था कि किसी खास तारीख तक कोरोना के मामले शून्य पहुंच जाएंगे, यह गलतफहमी है, जिसे ठीक करने की जरूरत है। गलतफहमी के लिए, मुझे खेद है और माफी मांगता हूं। "

कोरोना मामलों पर अपनी प्रेस में जारी किए जाने वाली सामग्री में सरकार का फोकस दो चीज़ों पर रहता है। एक तो यह कि रिकवरी दर बढ़ रही है, और दूसरी यह कि प्रधानमंत्री मोदी की लॉकडाउन रणनीति नहीं होती तो हालात बिगड़ सकते थे। प्रेस कांफ्रेंस का फोकस अब नए केसों पर बिल्कुल नहीं होता क्योंकि सरकार अपनी ही एक स्लाइड में दिखा चुकी है कि लॉकडाउन संक्रमित लोगों की संख्या में वृद्धि को धीमा या खत्म कर देगा।

रिकवरी रेट उन लोगों की संख्या को दिखाता है जो संक्रमित हुए और उनका टेस्ट प़जिटिव आया, और कुछ समय बाद उनका टेस्ट निगेटिव आया। शनिवार की सुबह तक, लगभग 1.25 लाख लोगों ने के टेस्ट पॉजिटिव आ चुके थे और करीब 52,000 लोग रिकवर कर चुके थे। यानी आधे से थोड़ा कम। वैश्विक स्तर पर 53 लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं और 21 लाख लोग ठीक हो गए थे। रिकवर होने वालों का प्रतिशत प्राकृतिक रुप से बढ़ रहा है और हो सकता है यह 95 फीसदी या इससे भी ज्यादा तक हो जाए।


आखिर क्यों? क्योंकि कोरोना की घातक दर, यानी इससे मरने वालों की संख्या वर्तमान में 6 फीसदी है। और इनमें से अधिकांश लोग वह हैं जिनकी उम्र ज्यादा थी और उन्हें पहले से दूसरी बीमारियां थीं। ज्यादातर मौतें यूरोप और अमेरिका में हुई हैं।। भारत में अब तक सरकार की तरफ से कुछ खास नहीं किया गया है फिर भी मृत्यु दर लगभग 3 फीसदी है।

हमें याद रखना चाहिए कि कोरोना महामारी की अभी तक कोई इलाज नहीं है। यदि आप संक्रमित होते हैं तो सिर्व वक्त के साथ इसके खत्म होने का इंतजार ही कर सकते हैं। और यहां तक ​​कि एक बार रिकवर होने के बाद दोबारा भी आप इसके संक्रमण का शिकार हो सकते हैं। ऐसे में सरकार आखिर क्यों रिकवरी रेट की ही बात कर रही है, समझ से परे है।

समस्या यह है कि यह कोरोना संक्रमितों की संख्या जिस तरह अभी खबरों में है, इसके कुछ ज्यादा ही समय तक ऐसा ही रहने की संभावना है। मई महीने की शुरुआत में हर रोज करीब 2000 लोगों के संक्रमित होने की बात सामने आ रही थी जो अब ढ़कर करीब 6000 रोज पहुंच गई है। केरल के अलावा कहीं भी संक्रमण की दर धीमी नहीं हुई है। जैसे-जैसे लॉकडाउन के खुलेगा और ज्यादा लोगों के टेस्ट होंगे तो संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ने की ही आशंका है।

यही कारण है कि लगभग हर देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है सिवाए उन देशों के जहां आम लोगों ने स्वेच्छा से सामाजिक दूरी, मास्क और हाथ धोने जैसे कदमों का पालन किया और कोरोना का कर्व फ्लैट हो गया। इस वक्त दुनिया में 11 ऐसे देश हैं जहां कोरोना संक्रमितों की संख्या 1 लाख से अधिक है। इनमें से सिर्फ ब्राज़ील, भारत और पेरू में मामले लगातार बढ़ रहे हैं। तो हालात कितने खराब हैं? अमेरिका में पिछले 50 दिनों से हर रोज 20,000 से 35,000 के बीच नए मामले रिपोर्ट हो रहे हैं। अमेरिका में अब तक 1.4 करोड़ कोरोना टेस्ट किए गए हैं, यानी हर 10 लाख लोगों पर 42000 टेस्ट। भारत में हर 10 लाख आबादी पर सिर्फ 2,000 टेस्ट हो रहे हैं।

क्या हम यह कह सकते हैं कि हमारे यहां कम टेस्ट का अर्थ है कि बहुत से लोग संक्रमित हैं लेकिन उन्हें पता नहीं है कि वे संक्रमित हैं या नहीं? हां, सिर्फ मृत्युदर से कुछ संकेत मिलते हैं जिसके अब हमारे पास पर्याप्त आंकड़े हैं। गुजरात में 13,000 लोग संक्रमित हो चुके हैं और वहां 800 से अधिक लोगों की मौत हुई है, जो कि राष्ट्रीय मृत्युदर से लगभग दो गुना है। इसका मतलब यह है कि निश्चित रूप से, गुजरात में कम से कम 13,000 लोग तो और संक्रमित हैं जिनका टेस्ट नहीं हुआ है और उन्हें नहीं पता है कि वे संक्रमित हैं या नहीं।


ये वही लोग हैं जो अब काम पर वापस जाने लगे हैं, यह वे प्रवासी हैं जो अपने घरों को लौट गए हैं या लौट रहे हैं, और अगर इनके टेस्ट हों तो संख्या कहीं अधिक होगी। एक समय आएगा कि यह संख्या अपने चरम पर होगी और फिर इसमे गिरावट आना शुरु होगी, जैसा कि अमेरिका, इटली या यूके में हुआ। यह वह देश हैं जो कोरोना से सर्वाधिक प्रभावित हैं। रोज नए मामले आने की संख्या ही ऐसा आंकड़ा है जो सबसे अहम है, न कि रिकवरी रेट, क्योंकि यह तो अपने आप बढ़ ही जाएगा।

हम कितनी जल्दी दैनिक संक्रमणों की संख्या को कम करना शुरू कर सकते हैं? केवल केरल ही जानता है। मार्च की शुरुआत में केरल अधिकांश मामलों वाले राज्यों में से था, लेकिन आज वह 17 वें स्थान पर आ गया है। इसकी सफलता को विश्व स्तर पर स्वीकार किया गया है, लेकिन प्रधानमंत्री ने एक बार भी इसका जिक्र नहीं किया। केरल में कोरोना रोकने के लिए उठाए कदम पूरे देश के लिए मिसाल हो सकते हैं।

हम में से कितने लोगों को पता है कि आखिर केरल ने ऐसा क्या किया जो महाराष्ट्र और गुजरात और दिल्ली नहीं कर पा रहे हैं? यदि इसका उत्तर नहीं है, तो ऐसा इसलिए है क्योंकि केंद्र सरकार ने यह मानने से इनकार कर दिया है कि केरल ने कोरोना संक्रमण काबू करने में एक आदर्श स्थापित किया है, जहां रोज नए मामले आने पर अंकुश लगा है, और यही सबसे भरोसेमंद और अर्थपूर्ण आंकड़ा है।

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Published: 25 May 2020, 8:00 PM