वीडियो: मदर टेरेसा को भारत से ही क्यों था ज्यादा लगाव, 109वें जन्मदिन पर जानिए उनके जीवन से जुड़ी कुछ अहम जानकारियां

करीब 35 वर्ष की आयु में टेरेसा ने गरीबों और मजबूर लोगों की सहायता करने का फैसला किया। इसके बाद भारत आकर उन्होंने 1950 में 12 लोगों के साथ मिलकर कोलकाता में ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटीज’ नाम की एक संस्था की शुरुआत की जो आज 133 देशों में सक्रीय है।

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नवजीवन डेस्क

मदर टेरेसा इंसानियत की वो जीती जागती मिसाल थीं, जिन्होंने अपना सारा जीवन गरीबों और दीन दुखियों की सेवा करने में लगा दिया। मदर टेरेसा को उनकी समाज सेवा और इंसानियत भरे काम के लिए दुनिया के सबसे बड़े सम्मान शांति के नोबल पुरुस्कार से नवाजा गया था। आज उनके 109 वें जन्मदिन पर आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़े कुछ इंट्रेस्टिंग फैक्ट्स।

26 अगस्त 1910 को मेंसेडोनिया की राजधानी स्कोपिये में जन्म लेने के बावजूद भी मदर टेरेसा को भारत, ऑटोमन, सर्बिया, बुल्गेरिया समेत कई देशों की नागरिकता प्राप्त थी।

मदर टेरेसा का असली नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू था, लेकिन भारत आने के बाद उन्होंने अपना नाम बदल का टेरेसा रख लिया था।

करीब 35 वर्ष की आयु में टेरेसा ने गरीबों और मजबूर लोगों की सहायता करने का फैसला किया। इसके बाद भारत आकर उन्होंने 1950 में 12 लोगों के साथ मिलकर कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चैरिटीज नाम की एक संस्था की शुरुआत की। इस संस्था का मकसद निस्वार्थ गरीबों और दुखियों की सहायता करना था। साल 1979 में उन्हें दुनिया का सबसे बड़ा सम्मान नोबल शांति पुरुस्कार दिया गया।

अपने अंतिम दिनों तक मदर टेरेसा कोलकाता में ही रहीं। हलांकि अरोप प्रत्यारोप के दौर से मदर टेरेसा को भी गुजरना पड़ा। कुछ लोगों ने उनपर समाज सेवा की आढ़ में लोगों का धर्म बदलकर ईसाई बनाने का भी आरोप लगाया। लगातार गिरती सेहत की वजह से आखिरकार 1997 में उनका निधन हो गया।

वेटिकन सिटी के चर्च में एक समरोह के दौरान उन्हें संत की उपाधी दी गयी थी। उनके द्वारा शुरू की गई यह संस्था आज 4500 सिस्टर के साथ 133 देशों में काम कर रही है।

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