जेएनयू, डीयू के बाद हैदराबाद विश्वविद्यालय में भी एबीवीपी की करारी हार 

जेएनयू और डीयू छात्रसंघ चुनावों में करारी हार के बाद अब हैदराबाद केंद्रीय विश्विद्यालय (एचसीयू) के छात्र संघ चुनाव में भी आरएसएस की अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) को बड़ा झटका लगा है।

नतीजों के बाद खुशी में एचसीयू के छात्र/फोटोः Twitter
नतीजों के बाद खुशी में एचसीयू के छात्र/फोटोः Twitter
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आसिफ एस खान

एचसीयू के छात्र संघ चुनाव के नतीजों में एबीवीपी को करारी मात देते हुए स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया एसएफआई और अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन के गठबंधन वाली एलायंस फॉर सोशल जस्टिस (एएसजे) ने सभी पदों पर जीत हासिल की है। नतीजों में एएसजे के श्रीराग पी. ने अध्यक्ष, आरिफ अहमद ने महासचिव, लवनाथ नरेश ने उपाध्यक्ष, मोहम्मद आशिक ने संयुक्त सचिव, लोलम श्रवण कुमार ने खेल सचिव और गुंडेती अभिषेक ने सांस्कृतिक सचिव पद पर जीत हासिल की है।

श्रीराग पी. ने एबीवीपी-ओबीसीए गठबंधन के उम्मीदवार के. पलसानिया और एनएसयूआई के अंजु राव को हराया है। नतीजों का एलान होने के बाद छात्रों ने जमकर खुशी की इजहार किया और विश्वविद्यलय में मिठाईयां बाटीं। कई छात्रों का कहना है कि इस जीत से ऐसा लग रहा है कि रोहित वेमुला हम सब के बीच में वापस आ गए हैं। एचसीयू पिछले साल दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या की वजह से हैदराबाद विश्वविद्यालय काफी विवादों में रहा था। आरोप था कि दलित होने की वजह से विश्वविद्यालय द्वारा प्रताड़ित किये जाने से तंग आकर रोहित वेमुला ने खुदकुशी की थी। रोहित आंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन से जुड़े हुए थे।

जेएनयू, डीयू के बाद हैदराबाद विश्वविद्यालय में भी एबीवीपी की करारी हार 

रोहित की आत्महत्या के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन और केंद्र सरकार के रवैये को लेकर कई सवाल खड़े हुए थे। रोहित को इंसाफ दिलाने के लिए एचसीयू के छात्रों ने कई दिनों तक आंदोलन किया था। पुलिस ने आंदोलन में शामिल छात्रों के साथ कई छात्राओं को भी बेरहमी से पीटा था। वहीं केंद्रीय मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने इस संगठन को राष्ट्रविरोधी बताते हुए कार्रवाई लिए शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी को चिट्ठी भी लिखी थी। इस पूरे विवाद के दौरान विश्वविद्यालय के कुलपति अप्पा राव की भूमिका को लेकर भी काफी सवाल उठे थे।

इससे पहले इसी महीने दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में कांग्रेस के छात्र संगठन ने एबीवीपी को तगड़ा झटका देते हुए अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद पर जीत हासिल की थी। वहीं जेएनयू में हुए छात्रसंघ चुनाव में सभी पदों पर लेफ्ट यूनिटी ने जीत दर्ज कर एबीवीपी को करारी मात दी थी। राजस्थान यूनिवर्सिटी में भी हुए छात्रसंघ चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार पवन यादव ने एबीवीपी को शिकस्त देते हुए जीत हासिल की और चार में से तीन मुख्य सीटें एबीवीपी के हाथ से निकल गईं।

अलग-अलग विश्वविद्यालयों में हुए छात्रसंघ चुनावों के नतीजों से एक स्पष्ट संदेश भी मिलता नजर आ रहा है। इन चुनावों में जिस विचारधारा के छात्र संघों की हार हुई है, उसका संदेश एक ही है, नफरत की सियासत किसी को मंजूर नहीं है। इन नतीजों ने साबित कर दिया है कि देश के युवाओं और छात्रों का अब नफरत की सियासत से मोह भंग होना शुरु हो गया है। पूर्वोत्तर से लेकर उत्तर भारत और राजधानी दिल्ली तक में संघ और बीजेपी पोषित छात्र संघ की हार से साफ हो गया है कि युवाओं ने अब उस राजनीति को खारिज करने की शुरुआत कर दी है, जो सिर्फ ऐसे सपने दिखाती है जिसका यथार्थ से कुछ लेना-देना नहीं होता।

शिक्षकों का अपमान, परस्पर गाली-गलौज, निराधार आरोप, घृणा और वैमनस्य का माहौल, असहमति की आवाज़ों पर हमले और उन्हें गोलियों की गूंज से खामोश करने का दुस्साहस, इतिहास से छेड़छाड़, परिसरों में टैंक रखने की वकालत, बोलने और किसी भी माध्यम से अभिव्यक्ति की आजादी पर पाबंदी...ये सब उस अग्नि से उठ रहे धुएं में साफ नजर आ रहे थे, जो बीते करीब साढ़े तीन साल से देश के युवा और छात्रों के ऊपर मंडरा रहा था। यह धुंआ अब मेघ बनकर बरसना शुरु हो गया है। ये नतीजे बताते हैं कि युवा और छात्रों का उस आख्यान या नैरेटिव से मोहभंग हो रहा है, जिसके बीज बीते तीन-साढ़े तीन सालों में बोए गए हैं। ये तथ्य है कि अलग–अलग छात्र संघ चुनावों में अलग-अलग विचारों के छात्र संघों ने जीत हासिल की है। इन सभी के अलग-अलग अर्थ और संदेश हो सकते हैं, लेकिन जिस विचारधारा के छात्र संघों की हार हुई है, उसका संदेश एक ही है, नफरत की सियासत किसी को मंजूर नहीं है।

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