‘कलश के लिए नहीं अब क्लेश के लिए जाना जाता है काशी’

काशी, जिसे संसार जीवन के सुलह का केंद्र मानता है आज कलह की कगार पर है। काशी जो संसार भर में अपने मंदिरों के कलश के लिए जाना जाता है, आज वह अपने #क्लेश के लिए चर्चा में है।

नवजीवन ग्राफिक्स
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नवजीवन डेस्क

आशुतोष राणा, जाने-माने फिल्म अभिनेता हैं। सम-सामयिक मुद्दों पर उनकी बेबाक टिप्पणियां सदा चर्चा में आती रही हैं। उनकी टिप्पणियों में सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर आक्रोश और चिंतन के साथ ही सुझाव भी शामिल होते हैं। आशुतोष जब लिखते हैं तो खूब लिखते हैं और हिंदी शब्दों से खेलते हुए किसी भी विषय का सटीक चित्रण करते हैं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में छात्राओँ पर लाठीचार्ज और बर्बरता पर आशुतोष ने अपने फेसबुक पेज पर सटीक टिप्पणी की है। हम यहां इस टिप्पणी को जस का तस आपके लिए पेश कर रहे हैं।

•••॥ काशी का कलह ॥•••

काशी, जिसे संसार जीवन के सुलह का केंद्र मानता है आज कलह की कगार पर है।

काशी जो संसार भर में अपने मंदिरों के कलश के लिए जाना जाता है, आज वह अपने #क्लेश के लिए चर्चा में है।

काशी जहाँ हर सुबह धर्म का जय घोष होता है, आज वह अपने ऊपर हुई चोट से कराह रहा है।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय जिसकी स्थापना धर्मध्वजा वाहक भारतीय संस्कृति के अग्रदूत परम श्रद्धेय 'महामना पंडित श्री मदनमोहन मालवीय जी ने की थी- भारतीय ज्ञान, विज्ञान, संस्कार, साहित्य, सभ्यता, संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन के लिए।

क्योंकि वे जानते थे कि किसी भी राष्ट्र की वास्तविक पहचान मात्र उसका #भूखंड नहीं, उस देश के नागरिकों का #भावखंड होता है। और किसी भी सभ्यता-संस्कृति की वाहक उस राष्ट्र की संतति होती हैं, राष्ट्र की संताने ही राष्ट्र की वास्तविक सम्पत्ति हैं, अपनी सम्पत्ति का संरक्षण संवर्धन विद्यालयों का मूल दायित्व होता है, शिक्षकों को चाहिए की वे हर क़ीमत पर देश की प्रतिभाओं को #हनन करने की नहीं #मनन करने की शक्ति प्रदान करें। क्योंकि किसी भी देश का आकर्षण मात्र उसके #मानचित्र में नहीं अपितु देशवासियों के #मनचित्र में छिपा होता है। देशवासियों के खंडित 'मनचित्र' अखंड 'मानचित्र' के गौरव का नहीं, पीढ़ा का विषय होता है।

भारतीय संस्कृति में स्त्री को धर्म का, पुरुष को कर्म का और परमात्मा को मर्म का प्रतीक माना जाता है।

धर्म की महत्ता को ध्यान में रखते हुए ही हमारे मनीषियों ने- "धर्मो रक्षति रक्षितः" और "यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता" जैसे जीवन के कल्याणकारी मंत्र हमें दिए।

जब हम अपने कर्म से धर्म की रक्षा करते हैं तो धर्म हमारी, हमारे कर्मों की रक्षा करता है। किंतु यदि हम धर्म का नाश करेंगे तो धर्म हमारा सर्वनाश कर देगा।

जहाँ नारी को सम्मान, संरक्षण, सुरक्षा प्राप्त होती है वहाँ देवताओं का वास होता है। और जहाँ इन बातों का अभाव होता है वहाँ देवता निवास नहीं करते।

तपोनिष्ठ ऋषियों के कथन को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि वे स्वयं ही प्रमाण होते हैं, इसलिए देश के अत्यंत गौरवशाली शिक्षण संस्थान बीएचयू में घटी घटना ने हमारे सभी समाधानी शास्त्रोक्त सूत्रों को आज यक्षप्रश्न बनाकर हमारे सामने खड़ा कर दिया है।

स्त्री का सम्मान, उसकी सुरक्षा, उसके संरक्षण का निर्देश तो हमारे पूजनीय वेदों, शास्त्रों में स्पष्ट वर्णित है, तथा काशी को वेदज्ञ नगरी भी कहा जाता है-

तो फिर ये है क्या ? काशी की घटना को क्या माना जाए ? इसे हमारी अशिक्षा माना जाए या धर्म की प्रतीक स्त्री के प्रति हमारा दुराग्रह ?

इसके कारणों पर हमें ईमानदारी से विचार करना होगा। ताकि स्त्री पर हो रहे अनाचार, दुराचार को ख़त्म किया जा सके। क्योंकि स्त्री का शोषण उसके ऊपर किया गया अत्याचार, उसका दमन, उसका अपमान- आधी मानवता का नहीं, पूरी मानवता पर एक कलंक की भाँति होता है।

किसी भी घटना के ऊपर हम चर्चा कर सकते हैं, उसके पक्ष विपक्ष में बोलकर अपने तर्कों से उसे न्यायोचित या अन्याय पूर्ण सिद्ध कर सकते हैं, किंतु इस सबके बाद भी उस घट चुकी घटना को मिटाया नहीं जा सकता।

संसार कार्य-कारण-परिणाम के सिद्धांत पर चलता है, सरल शब्दों में ये कहा जा सकता है कि कर्म बीज होता है और परिणाम उसकी फ़सल। कार्य और परिणाम के बीच में 'कारण' होता है जहाँ तर्क वितर्क कुतर्क अतर्क पक्ष विपक्ष की चर्चा घटित होती रहती है, किंतु परिणाम #चर्चा के मुताबिक़ नहीं #चर्या ( कर्म ) के अनुसार मिलते हैं।

कोई भी शिक्षण संस्थान भटके हुए बच्चों को #पटक_कर नष्ट करने का साधन नहीं होते, वे इन्हें #फ़टक_कर, साफ़ करके शिष्ट बनाने के हेतु होते हैं।

शिक्षा हमारी निकृष्ट वृत्ति को उत्कृष्ट बनाने का काम करती है।

शिक्षा का उद्देश्य समाज को आहत करने वाली नहीं, समाज को राहत देने वाली मानसिकता का निर्माण होता है।

अच्छे शिक्षक हमारे रोष को जोश में बदलने का काम करते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि रोष जब- जोश और होश से युक्त होता है, तब वह विध्वंस की भूमि पर भी सृजन की इबारत लिख देता है, और जब भी #जोश- रोष में बदलता है तब वह सृजन की भूमि को भी विध्वंस का केंद्र बना देता है।

शिक्षा, शिक्षक व शिक्षण संस्थान समाज के निर्माता होते हैं, और समाज -सरकारों के निर्माण का मुख्य अभियंता होता है। समाज और सरकार एक दूसरे के परस्पर सहयोगी होते हैं, समाज सरकार का मात्र निर्माण ही नहीं करता वह उसका रक्षण भी करता है, और सरकार भी समाज के रक्षण संवर्धन के लिए सतत प्रयासरत रहती है।

इसलिए शिक्षण संस्थानों को यह स्मरण रखना अत्याव्यश्यक है कि समाज और सरकार एक दूसरे के बाधक-विरोधी नहीं, बल्कि एक दूसरे को साधने वाले साधक और सहयोगी बनें जिससे सम्पूर्ण राष्ट्र शांति, सहयोग, स्वीकार, के भाव से भरा हुआ एक साथ सृजन के मार्ग पर अग्रसर ही नहीं अग्रणी भी हो।~आशुतोष राणा

शुभम भवतु 🙏

(आशुतोष राणा के फेसबुक पेज से साभार)

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Published: 26 Sep 2017, 8:20 PM