एक बहुत ही उज्जवल प्रतिभा को खोए हुए हमें एक माह हो चुका है। कभी-कभी मैं यह सोचकर हैरान हो जाता हूं कि जब सुशांत सिंह राजपूत ब्रह्मांड के किसी छोर से अपने व्यक्तित्व के चारों ओर उमड़े इस जन उन्माद के सैलाब को देखते होंगे तो क्या सोचते होंगे। उनके नाम पर सड़कों के नाम रखे जा रहे हैं और कट्टर बन चुके उनके चाहने वाले यह दृढ़ विश्वास रखते हैं कि सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या नहीं की बल्कि उनकी हत्या हुई है। उनके चाहने वालों द्वारा कुछ लोगों की प्रतिष्ठा के आईने इस तरह से चकनाचूर किए जा रहे हैं कि शायद ही कभी उन टुकड़ों को फिर से एक किया जा सके। हम भावनाओं से बहस नहीं कर सकते। उनकी अपनी गति और अपना जीवन होता है।
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एक मनोचिकित्सक, एक बहुत ही समझदार महिला जिनको आज तक मैंने कभी भी कुतर्क करते नहीं देखा, उन्होंने मुझे बताया, “अगर सुशांत ने वास्तव में अपने को स्वयं मारा है तो सुसाइड नोट कहां है और जब उनका मृत शरीर मिला तो क्यों उनकी जिह्वा और आंखें लटकने के कारण बाहर नहीं निकली हुई थीं। उनके गले पर बंधा हुआ फंदा गोलाकार था, न कि वी के आकार का था?” एक पक्ष को यह विश्वास है कि इसमें अंडरवर्ल्ड का हाथ है। जबकि दूसरा यह मानता है कि यह सब उनके पैसे के लिए एक स्त्री ने किया। सच में? यहां मेरी चिंता उनके स्वास्थ्य को लेकर है जो जीवित हैं। इस त्रासदी की धमकी केवल प्रतिष्ठाओं की हत्या नहीं है बल्कि उनकी भी जिनकी वे प्रतिष्ठाएं हैं। जैसे- करण जौहर, महेश भट्ट और उनकी बेटी आलिया भट्ट (आलिया भट्ट करण को भी अपने पिता समान ही मानती हैं )पर भी गंभीर हमले हुए हैं।
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जहां आलिया भट्ट चुप रहकर समझदारी का परिचय देती हैं, वहीं उनके किसी बहुत करीबी ने मुझे बताया कि वह गाली-गलौज से विचलित नहीं बल्कि हैरान हैं। वह अपने करीबियों से पूछती हैं, “मैंने क्या किया है!” मैं भी यही सोचकर हैरान हूं। क्या मात्र एक यह तथ्य कि आलिया करण जौहर के करीब हैं इसलिए वह राजपूताना के प्रचंड क्रोध का निशाना बन रही हैं? अगर ऐसे ही देखें, तो वरुण धवन के लिए आपके क्या विचार हैं? उन्हें क्यों नहीं निशाना बनाया जा रहा है? ओ, अब मैं समझा, कॉफी विद करण में ‘रैपिड फायर’ के दौरान एक बार आलिया ने पूछा था, “सुशांत कौन है”?क्या नफरत करने वाले यह जानते हैं कि ‘रैफिड फायर’ पूर्व नियोजित (रिग्गड) होते हैं? उत्तर पहले से तय होते हैं? यह सब कौन निर्धारित करता है, इसका अनुमान लगाने पर कोई इनाम नहीं है।
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अब जैसे-जैसे इस संताप का दूसरा माह शुरू हो रहा है, मैंने अचानक से देखा कि सुशांत के बहुत सारे ‘मित्र’, ‘विशेष मित्र’ और ‘विशिष्टमित्र’ सतह पर उभर रहे हैं जबकि सत्य तो यह है कि सुशांत ने पिछले एक वर्ष से किसी से भी मिलना छोड़ दिया था। “पहले माह की पुण्यतिथि” पर सुशांत की पूर्व महिला मित्र और मौजूदा महिला मित्र को भावनात्मक संदेशों को प्रेषित करने में एक दूसरे से होड़ करते हुए देखा गया। यह शोक मनाने का एक बिल्कुल ही नया अंदाज है।मानो, फिर से राधा और मीरा की स्पर्द्धा चल रही हो। यह सब उस कलाकार जो मेरी समझ में किसी परिभाषा से परे जाकर अतिप्रतिभा शाली और दक्ष थे, की यादों के लिए बहुत ही भावुक और अत्यंत संतोषजनक है। मैं इस पर विवाद नहीं करुंगा। लेकिन जिस पर मुझे आपत्ति है, वह यह विसंगत धारणा है कि सुशांत के करियर को भाई-भतीजावाद (नेपोटिज्म) ने तबाह कर दिया।
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सुशांत के अपने फिल्मी जीवन में 10 फिल्में प्रदर्शित हुईं जिनमें से छह बिल्कुल हिट यानी सफल रहीं। एक कोई बहुत बुरा आंकड़ा तो नहीं है। यह कम-से-कम अर्जुन कपूर और उनके चचेरे भाई हर्षवर्धन कपूर- जैसे स्टार पुत्रों के प्रदर्शन से तो बहुत बढ़िया है। सुशांत लगातार और दृढ़ संकल्प के साथ बहुत बड़ी-बड़ी भूमिकाओं से इनकार करते रहे जिनकी वजह उन्हीं को ही पता होगी। उन्होंने मुझसे कई बार कहा कि उनके लिए पैसा महत्व नहीं रखता और वह मात्र पैसे के लिए कोई फिल्म नहीं करेंगे। सच्चाई तो यही है कि सुशांत की किसी ने हत्या नहीं की। षडयंत्रों की इन थीअरीज (परिकल्पनाएं) को उनकी “मृत्यु की दूसरे माह की पुण्यतिथि” से पहले समाप्त हो जाना चाहिए। ये उनकी यादों की ज्यादा बड़ा नुकसान पहुंचा रहे हैं।
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