दक्षिण अफ्रीका में खेले गए पहले टी-20 विश्व कप के उस फाइनल ओवर को कौन भूल सकता है। 24 सितंबर, 2007 को क्रिकेट के टी-20 फॉर्मेट का पहला विश्व कप खेला जा रहा था, फाइनल में थीं तो चिर प्रतिद्वंदी टीमें भारत और पाकिस्तान। उस फाइनल के आखिरी ओवर में पाकिस्तान को जीत के लिए 13 रन चाहिए थे। कप्तान धोनी ने बिल्कुल नौसिखिए गेंदबाज जोगिंदर शर्मा को गेंद थमा दी। भारतीय फैंस की सांसें मिस्बाह उल हक के क्रीज पर होने की वजह से अटकी हुई थीं। हर तरफ सवाल उठने लगे- आखिर जोगिंदर को गेंदबाजी क्यों दी गई..? लेकिन जोगिंदर शर्मा ने वो कारनामा किया जो इतिहास में दर्ज हो गया। वही जोगिंदर शर्मा ने अब इंटरनेशनल क्रिकेट को अलविदा कह दिया है। 39 साल के जोगिंदर शर्मा ने अपने शुक्रवार (3 फरवरी) को ट्विटर पर अपने संन्यास का ऐलान किया।
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हरियाणा के रोहतक के रहने वाले जोगिंदर शर्मा को हालांकि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में ज्यादा सफलता नहीं मिली। उन्होंने भारत के लिए सिर्फ 4 वनजे और 4 ही टी-20 मैच खेले हैं। लेकिन इतने मैचों में ही वो ऐसा कारनामा कर गए कि भारत का हर क्रिकेट प्रेमी उनका नाम जान गया। अहम बात यह है कि जोगिंदर ने जो चार टी-20 मैच खेले हैं वो सभी विश्व कप में खेले। जोगिंदर शर्मा की इंटरनेशनल कैरियर की शुरुआत 2004 में हुई। इसी साल उन्होंने वनडे में डेब्यू किया था और वो आखिरी वनडे मैच 2007 में खेले। इस दौरान सिर्फ 4 मैचों में ही उन्हें खेलने का मौका मिला। जोगिंदर हाल तक हरियाणा के लिए रणजी ट्राफी मैच खेल रहे थे।
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जोगिंदर शर्मा ने अपने संन्यास का ऐलान ट्विटर पर किया। अपने पोस्ट में उन्होंने उस पत्र को भी शेयर किया है, जो उन्होंने बीसीसीआई के सचिव जय शाह को भेजी है और रिटायरमेंट का ऐलान किया है। जोगिंदर ने अपने चिट्ठी में लिखा है कि वह बीसीसीआई, हरियाणा क्रिकेट एसोसिएशन, चेन्नई सुपर किंग्स और हरियाणा सरकार का शुक्रिया अदा करते हैं। जोगिंदर शर्मा ने अपने फैन्स, परिवार, दोस्तों का शुक्रिया अदा किया, जिन्होंने करियर के उतार-चढ़ाव में उनका साथ दिया।
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बता दें कि 24 सितंबर, 2007 को टी-20 विश्व कप के पहले संस्करण का फाइनल खेला गया था। यह दिन भारतीय क्रिकेट के लिए हमेशा यादगार रहेगा। इसी दिन भारत जोहानिसबर्ग के वांडरर्स स्टेडियम में चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को धूल चटाकर टी-20 वर्ल्ड कप का पहला चैंपियन बना था। इसके साथ ही महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में भारतीय टीम 1983 के बाद किसी विश्व खिताब पर कब्जा जमाने में कामयाब हुई थी।
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