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बंगाली श्रमिकों के कथित उत्पीड़न पर अमर्त्य सेन बोले- ये संविधान के खिलाफ

अमर्त्य सेन ने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई व्यक्ति बंगाली है, पंजाबी है या मारवाड़ी है। बस! वह जहां चाहे जा सकता है और जो भी चाहे वो भाषा बोल सकता है। ये उसका संवैधानिक अधिकार है।

विश्‍व भारती भूमि विवाद में निचली अदालत ने अमर्त्य सेन के पक्ष में फैसला सुनाया
विश्‍व भारती भूमि विवाद में निचली अदालत ने अमर्त्य सेन के पक्ष में फैसला सुनाया फोटोः IANS

देश के अलग-अलग हिस्सों में बंगाली प्रवासी श्रमिकों के कथित उत्पीड़न पर राजनीतिक विवाद को देखते हुए प्रख्यात अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कहा कि भारत के प्रत्येक नागरिक को उसकी मर्जी से कहीं भी जाने की स्वतंत्रता है और इस पर रोक लगाए जाने के किसी भी प्रयास का विरोध किए जाने की जरूरत है।

शांतिनिकेतन स्थित अपने पैतृक आवास पर पत्रकारों से बात करते हुए अमर्त्य सेन ने कहा,‘‘इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई व्यक्ति बंगाली है, पंजाबी है या मारवाड़ी है। बस! वह जहां चाहे जा सकता है और जो भी चाहे वो भाषा बोल सकता है। ये उसका संवैधानिक अधिकार है।’’

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उन्होंने कहा, ‘‘एक भारतीय नागरिक को पूरे देश में कहीं भी जाने-आने का अधिकार है। हमारे संविधान में कहीं भी क्षेत्रीय अधिकारों का उल्लेख नहीं है।’’

पश्चिम बंगाल में उथल-पुथल मचाने वाले इस मुद्दे पर पत्रकारों के एक सवाल के जवाब में उन्होंने बृहस्पतिवार को कहा, ‘‘भारत के प्रत्येक नागरिक को खुश रहने का अधिकार है। हमें सभी का सम्मान करना चाहिए।’’

सेन ने कहा कि अगर बंगालियों को प्रताड़ित किया जा रहा है और उनकी उपेक्षा की जा रही है तो इसका विरोध किया जाना चाहिए।

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तृणमूल कांग्रेस पार्टी (टीएमसी) आरोप लगा रही है कि बांग्ला भाषी लोगों, विशेषकर गरीब मुस्लिम प्रवासी श्रमिकों को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) शासित राज्यों में परेशान किया जा रहा है और उन्हें अवैध बांग्लादेशी प्रवासी करार दिया जा रहा है। इसी मुद्दे को लेकर टीएमसी पिछले एक महीने से लगातार आवाज उठा रही है।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में पिछले महीने इस मुद्दे पर कोलकाता में महा रैली का आयोजन किया गया और उन्होंने बीजेपी के खिलाफ ‘भाषा आंदोलन’ भी शुरू किया।

वहीं, दूसरी तरफ बीजेपी ने आरोपों को खारिज करते हुए दावा किया है कि टीएमसी ने पिछले 14 वर्षों में प्रवासी श्रमिकों के कल्याण के बारे में नहीं सोचा और अब वह राज्य में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए इस मुद्दे को उठा रही है।

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