बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार के कार्यकाल का करीब 70 फीसदी वक्त पूरा होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में यूं तो करीब-करीब हर मुद्दे पर अपनी बात रखी। लेकिन वह तीन सवाल जिनके जवाब पूरा देश जानना चाहता है, वे टाल गए।
चैनल एंकर ने जब पीएम मोदी से सीधा सवाल पूछा कि जीएसटी और नोटबंदी कितने सफल रहे, जो टारगेट आपने चुना वो कितना पूरा हुआ? यह पूछे जाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जवाब था कि, “अगर इन दोनों कामों को ही मेरी सरकार का काम मानेंगे तो हमारे साथ यह अन्याय है। हमारे चार साल के काम को देखें. इस देश में बैकों के राष्ट्रीयकरण के बाद भी 30-40 फीसदी लोग बैंकिंग सिस्टम से बाहर थे, हम उनको वापस लाए हैं. क्या ये उपलब्धि नहीं है? लड़कियों के स्कूल के लिए शौचालय, क्या ये काम नहीं है? 3.30 करोड़ लोगों के घर गैस पहुंचाना क्या काम नहीं है। 90 पैसे में ग़रीब का इंश्योरेंस, क्या ये काम नहीं है. जहां तक जीएसटी का सवाल है, जब अटलजी की सरकार थी इसकी चर्चा शुरू हुई। यूपीए सरकार के समय इस मसले पर राज्यों की नहीं सुनी जाती थी – चाहे जो भी रीज़न रहा हो। मैं जब गुजरात का सीएम था तो बोलता था, पर नहीं सुनी जाती थी। एक देश, एक टैक्स की दिशा में हमने बहुत बड़ी सफलता पाई। कोई व्यवस्था बदलती है तो थोड़े एडजस्टमेंट करने होते हैं. जब लॉन्ग टर्म में देखा जाएगा तो इन्हें बहुत सफल माना जाएगा।
लेकिन इस जवाब में उन्होंने न तो यह बताया कि जीएसटी से क्या फायदा हुआ और न ही यह बता पाए कि नोटबंदी और जीएसटी के जो टारगेट थे, वे पूरे हुए या नहीं।
इसी तरह जब एंकर ने सवाल पूछा कि आपने वादा किया था कि हर साल एक करोड़ रोजगार देंगे, रोजगार बड़ा मुद्दा है। इस सवाल को सुनते वक्त मोदी के चेहरे के हाव-भाव बदले, तो एंकर ने अपने सवाल को बदलते हुए कहा कि कैसे आपने लोगों की जिंदगी में बदलाव किया।
अब इस सवाल का जवाब सुनिए। पीएम मोदी ने कहा कि, ‘’न्यूट्रल एजेंसी की रिपोर्ट आई है। पिछले एक साल में ईपीएफ में आने वाले लोग 70 लाख हैं। यह सारे लोग फॉर्मल सेक्टर से आए हैं। इसके अलावा करोड़ों लोग इनफॉर्मल सेक्टर में काम कर रहे । उन्होंने कहा कि 10 करोड लोगों को मुद्रा योजना के तहत 4 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा दिए गए और इनमें से 3 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्हें पहली बार बैंक से पैसा मिला है।
यहां यह जानना जरूरी है कि ईपीएफ में जिन 70 लाख नए लोगों के आने की बात मोदी कर रहे हैं, वे सारे के सारे 2009 से 2016 के बीच किसी न किसी कंपनी में काम करने वाले कर्मचारी हैं। दरअसल सरकार की एक योजना के तहत पहली जनवरी 2017 से जुलाई 2017 के बीच एक योजना चलाई गई थी। जिसमें कहा गया था कि ऐसी कंपनियां जिन्होंने अपने कर्मचारियों का 2009 से 2016 के बीच ईपीएफ में एनरोलमेंट नहीं कराया है, व अपने कर्मचारियों को बिना किसी दंड के ईपीएफ में एनरोल करा सकती हैं। इसके लिए कंपनी पर सिर्फ एक रुपया प्रति वर्ष का दंड लगाया गया था।
इस आंकड़े को देखकर कहा जा सकता है कि हकीकत में ईपीएफ में नए एनरोलमेंट का जो ढिंढोरा पीटा जा रहा है, वह दरअसल एक छलावा है। इसके अलावा भी रोजगार पर पीएम मोदी के जवाब काफी अटपटे थे। मसलन उन्होंने कहा कि टीवी चैनल के बाहर कोई व्यक्ति पकौड़ा बेच रहा है तो क्या वह रोजगार होगा या नहीं?
पीएम मोदी के इस इंटरव्यू को लेकर सोशल मीडिया पर उनका मजाक भी उड़ रहा है। जेएनयू छात्र संघ की पूर्व उपाध्यक्ष शहला राशिद ने लिखा कि यूं तो यह पूरा इंटरव्यू पहले से तय था, फिर भी मोदी ने किसी सवाल का सही जवाब नहीं दिया।
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इसके अलावा जब दुनिया में भारत की भूमिका पर सवाल पूछा गया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्लोबल वार्मिंग पर पैरिस समझौते से लेकर विश्व शांति के प्रयासों तक का श्रेय ले लिया। उनके इस जवाब का भी ट्वीटर मजाक उड़ा।
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यह सही है कि प्रधानमंत्री जैसे पद पर बैठे किसी भी व्यक्ति से पूछे जाने वाले सवाल पहले से तय होते हैं। लेकिन जरूरत से ज्यादा एहतियात किसी भी इंटरव्यू की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करती है। इसी संदर्भ में सोशल मीडिया पर लोगों ने मोदी के उस इंटरव्यू की याद दिलाई जो उनके प्रधानमंत्री बनने से पहले करण थापर ने लिया था। हालांकि वह इंटरव्यू पूरा नहीं हुआ था और मोदी पानी पीकर इंटरव्यू बीच में छोड़कर उठ गए थे।
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