कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने बृहस्पतिवार को आरोप लगाया कि मोदी सरकार का अब तक का 'ट्रैक रिकॉर्ड' ऐसा नहीं रहा है कि उस पर पर्यावरण, वन संरक्षण और संबंधित मुद्दों पर पूरा ध्यान देने के लिए भरोसा किया जाए।
पूर्व पर्यावरण मंत्री ने कई नागरिक संगठनों और कार्यकर्ताओं द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे गए हालिया पत्र का उल्लेख किया।
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रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट कर कहा, "हाल ही में 150 नागरिक संगठनों और कार्यकर्ताओं ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर वन अधिकार अधिनियम, 2006 को योजनाबद्ध तरीके से कमजोर करने में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की भूमिका पर गंभीर चिंता जताई है।"
उन्होंने कहा, "पत्र में पांच अहम बिंदुओं को रेखांकित किया गया है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री द्वारा दिए गए खुद के ऐसे बयान..., जिनमें वन अधिकार अधिनियम, 2006 को देश के प्रमुख वन क्षेत्रों के क्षरण और नुकसान के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है।"
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उन्होंने कहा, "वन अतिक्रमण को लेकर कानूनी तौर पर अपुष्ट आंकड़ों को लगातार संसद और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के सामने पेश किया गया। जून, 2024 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा देशभर के टाइगर रिजर्व से लगभग 65,000 परिवारों को बेदखल करने का आदेश दिया गया।"
उन्होंने पत्र का हवाला देते हुए दावा किया कि भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा पिछले एक दशक में वन क्षेत्र में आई गिरावट के लिए वन अधिकार अधिनियम को गलत तरीके से जिम्मेदार ठहराया गया।
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रमेश ने कहा, " 2023 में बिना पर्याप्त संसदीय चर्चा के पारित किया गया वन (संरक्षण) अधिनियम संशोधन और उसके तहत लागू किए गए ‘वन संरक्षण एवं संवर्धन नियम, 2023’ -का प्रतिकूल असर वनों पर पड़ा है।"
उनके मुताबिक, ये सभी मुद्दे विशेष रूप से आदिवासी और वन क्षेत्रों में रहने वाले अन्य समुदायों के लिए अत्यंत अहम हैं, जिनकी आजीविका जंगलों पर निर्भर है तथा ये भारत की पारिस्थितिकीय सुरक्षा के लिए भी बेहद जरूरी हैं।
रमेश ने कहा, "दुर्भाग्य से मोदी सरकार का अब तक का रिकॉर्ड यह भरोसा नहीं दिलाता कि इन महत्वपूर्ण सवालों पर कोई ध्यान दिया जाएगा और न ही उन समुदायों से संवाद किया जाएगा जिन्हें इन नीतियों के कारण सीधे नुकसान उठाना पड़ रहा है।"
पीटीआई के इनपुट के साथ
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