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‘झूठ बोल रही है केंद्र सरकार, नहीं मानी थी प्रोफेसर जी डी अग्रवाल की कोई मांग’

केंद्र सरकार के ये दावे झूठे हैं कि प्रोफेसर जी डी अग्रवाल उर्फ स्वामी सानंद की गंगा को लेकर मांगे मान ली गई थीं। स्वामी सानंद के करीबी सहयोगियों ने जल संसाधन, नदी विकास और गंगा पुनर्जीवन विभाग के मंत्री नितिन गडकरी के बयान को “एकदम झूठा” करार दिया है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया गंगा के लिए 111 दिन से अनशन कर रहे प्रोफेसर जी डी अग्रवाल उर्फ स्वामी सानंद का 11 अक्टूबर को निधन हो गया

जल पुरुष के नाम से विख्यात और प्रोफेसर जी डी अग्रवाल के सहयोगी रहे राजेंद्र सिंह ने नवजीवन के साथ ऋषिकेश से बातचीत में कहा कि “स्वामी सानंद की मुख्य मांगों में से एक यह भी थी कि गंगा में जल प्रवाह को इसके मूल प्रवाह के कम से कम 80 फीसदी तक लाया जाए। इसके लिए स्वामी जी जारी परियोजनाओं और नए बांध निर्माण को रोकने की मांग कर रहे थे।”

राजस्थान के अलवर में जल संरक्षण और प्रबंधन के लिए तरुण भारत संघ नाम से एनजीओ चलाने वाले राजेंद्र सिंह ने कहा, “9 अक्टूबर को जल संसाधान मंत्रालय द्वारा जारी ई-गजट नोटिफिकेशन में परियोजना विकसित करने वालों और अधिकारियों को पर्यावरण के मुताबिक जल प्रवाह बनाए रखने को कहा गया है। लेकिन, इसमें गंगा तटों के आसपास निर्माण गतिविधियों को रोकने का कोई जिक्र तक नहीं है।”

उन्होंने बताया कि, “स्वामी जी ने ई-गजट नोटिफिकेशन देखकर फर्श पर फेंक दिया था। उनका मानना था कि इस आदेश के नाम पर सरकार हमें मूर्ख बनाने की कोशिश कर रही है।” राजेंद्र सिंह गंगा सद्भावना यात्रा का भी हिस्सा रहे हैं जिसे स्वामी सानंद ने 29 सितंबर को शुरु किया था ताकि मांगों को मनवाने के लए सरकार पर दबाव बनाया जा सके।

राजेंद्र सिंह ने बताया कि वे और गंगा सद्भावना यात्रा के दूसरे सदस्य अपने अनशन को 14 जनवरी तक जारी रखेंगे। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस तारीख तक सरकार उनकी मांगें मानने को तैयार हो जाएगी।

प्रोफेसर अग्रवाल 22 जून से अनशन पर थे। उनकी प्रमुख मांग थी कि गंगा की निर्मलता और अविरलता बहाल की जाए। इसके अलावा वे गंगा में जारी प्रदूषण और उसके घाटों के आसपास हो रहे अतिक्रमण को रोकने के लिए सरकार से संसद में कानून लाने की मांग कर रहे थे। 86 वर्षीय प्रोफेसर अग्रवाल का 11 अक्टूबर को ऋषिकेश एम्स में निधन हो गया। उन्हें एक दिन पहले ही जबरदस्ती एम्स में भर्ती कराया गया था।

उनके निधन के बाद आनन-फानन केंद्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक संदेश जारी किया था। इससे पहले प्रोफेसर अग्रवाल ने गंगा के संबंध में प्रधानमंत्री को तीन पत्र लिखे थे, जिसमें उन्होंने अपनी मांगे दोहराई थीं। आखिरी पत्र उन्होंने अपने अनिश्चितकालीन अनशन के दौरान ही लिखा था।

13 जून, 2018 को लिखे पत्र में प्रोफेसर अग्रवाल ने लिखा था:

प्रिय छोटे भाई नरेन्द्र मोदी,

मां गंगा जी की दुर्दशा को तुम्हारी बहुस्तरीय सरकार और सरकारी मण्डलियों (जैसे नमामि गंगे ) द्वारा पूर्ण अवहेलना ही नहीं, जानते बूझते इरादतन किये जा रहे मां गंगा जी और पूरे पर्यावरण-निःसर्ग-प्रकृति को पहुंचाये जा रहे अहित के विषय को लेकर, मैं ने तुम्हें एक खुला पत्र 24 फरवरी 2018 को उत्तरकाशी से लिखा था जिसे श्रीनगर गढ़वाल पोस्ट ऑफिस से स्पीडपोस्ट किया गया था । पत्र की प्रति, जिस पर स्पीड पोस्ट कराने की रसीद की प्रतिकृति भी है, तुम्हें याद दिलाने और प्रमाण-हेतु साथ लगा रहा हूं।

जैसे मुझे पहले ही जानना चाहिये था, साढ़े तीन महीने के 106 दिन में, न कोई प्राप्ति सूचना न कोई जवाब या प्रतिक्रिया या मां गंगा जी या पर्यावरण के हित में (जिससे गंगाजी या निःसर्ग का कोई वास्तविक हित हुआ हो) कोई छोटा सा भी कार्य। तुम्हें क्या फुर्सत मां गंगा की दुर्दशा या मुझ जैसे बूढ़ों की व्यथा की ओर देखने की ???

ठीक है भाई मैं क्यों व्यथा झेलता रहूं। मैं भी तुम्हें कोसते हुए और प्रभु राम जी से तुम्हें मां गंगा जी की अवहेलना-पूर्ण-दुर्दशा और अपने बड़े भाई की हत्या के लिये पर्याप्त दण्ड देने की प्रार्थना करता हूं, शुक्रवार 22 जून 2018 (गंगावतरण – दिवस) से निरंतर उपवास करता हुआ प्राण त्याग देने के निश्चय का पालन करूंगा । आशा तो नहीं है कि तुम्हारे पास ध्यान देने का समय होगा, पर यदि राम जी के प्रताप से, मां गंगा जी की सुध लेने का मन बने तो मां के स्वास्थ्य के हित में निम्न कार्य तुरन्त आवश्यक है:

गंगा जी के लिये गंगा-महासभा द्वारा प्रस्तावित अधिनियम ड्राफ्ट 2012 पर तुरन्त संसद द्वारा चर्चा कराकर पास कराना (इस ड्राफ्ट के प्रस्तावकों में मैं, एडवोकेट एम. सी. मेहता और डा. परितोष त्यागी शामिल थे ), ऐसा न हो सकने पर उस ड्राफ्ट के अध्याय – 1 (धारा 1 से धारा 9) को राष्ट्रपति अध्यादेश द्वारा तुरन्त लागू और प्रभावी करना ।

उपरोक्त के अन्तर्गत अलकनन्दा, धौलीगंगा, नन्दाकिनी, पिण्डर तथा मन्दाकिनी पर सभी निर्माणाधीन/प्रस्तावित जलविद्युत परियोजना तुरन्त निरस्त करना ।

उपरोक्त ड्राफ्ट अधिनियम की धारा 4 (D) वन कटान तथा 4(F) खनन, 4 (G) किसी भी प्रकार की खुदान पर पूर्ण रोक तुरन्त लागू कराना, विशेषतया हरिद्वार कुंभ क्षेत्र में ।

मेरे 24 फरवरी के पत्र की अपेक्षा – ग में वर्णित गंगा-भक्त परिषद का Provisional गठन, (जून 2019 तक के लिये) तुम्हारे द्वारा नामांकित 20 सदस्यों का जो गंगा जी और केवल गंगा जी के हित में काम करने की शपथ गंगा जी में खड़े होकर लें और गंगा से जुड़े सभी विषयों पर इसका मत निर्णायक माना जाए (तुम स्वयं तो यह शपथ ले नहीं पाओगे शायद। क्योंकि तुम संविधान से जुड़े हो )

प्रभु तुम्हें सदबुद्धि दें और अपने अच्छे बुरे सभी कामों का फल भी। मां गंगा जी की अवहेलना, उन्हें धोखा देने को किसी स्थिति में माफ न करें….

तुम्हारा मां-गंगा-भक्त

बड़ा भाई

(ज्ञान स्वरूप सानंद)

प्रोफेसर अग्रवाल की मृत्यु के बाद नितिन गडकरी ने कहा था कि, “उनकी 70-80 फीसदी मांगे मान ली गई थीं।” उन्होंने कहा था कि, “उनकी कुछ मांगे गंगा नदी पर विद्युत परियोजनाओं को लेकर थीं। हम इस बारे में सभी लोगों को एक साथ लाकर मामले का हल निकालने की कोशिश कर रहे हैं। मैंने उन्हें पत्र भी लिखा था कि हमने 70-80 फीसदी मांगे मान ली हैं और हमें उनकी जरूरत है, उन्हें अपना अनशन खत्म कर देना चाहिए।”

गडकरी ने दावा किया था कि गंगा में प्रदूषण रोकने का कानून बनाने का प्रस्ताव कैबिनेट को भेजा गया है, इसके बाद इसे संसद में पेश किया जाएगा।

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लेकिन सरकार के इस तर्क से स्वामी सानंद के सहयोगी नाराज हैं। उनका कहना है कि अब इससे कुछ नहीं होने वाला। स्वामी सानंद के सहयोगी सुरेश रायकवर ने कहा कि प्रधानमंत्री ट्वीट कर शोक संवेदना तो जताते हैं, लेकिन वे तो प्रधानमंत्री से एक लिखित आश्वासन चाहते थे। अगर प्रधानमंत्री ने व्यक्तिगत तौर पर उन्हें आश्वासन दिया होता तो वे अपना अनशन तोड़ सकते थे।“

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