कई बार फिर से बसने के लिए उजड़ना जरूरी होता है। इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि फिर से बसाने के लिए उजाड़ना जरूरी होता है। उत्तराखंड में इन दिनों इस बात का मतलब समझा जा सकता है। देहरादून हो या कि उधम सिंह नगर। टिहरी-चमोली हो या अल्मोड़ा-पिथौरागढ़। हर तरफ तोड़फोड़ मची है। दुकानें टूट रही हैं। घर टूट रहे हैं। बाजार में इस टूटन-फूटन का मलबा बिखरा पड़ा है। जाहिर है जिसके घर या दुकान टूट रहे हैं उनके दिलों पर भी बुलडोजर चल रहे होंगे। उंगली पकड़ते-पकड़ते आस्तीन पकड़ने वाला सा मसला है। एक-एक, दो-दो फुट सड़क घेरते-घेरते कब एक-एक दो-दो मीटर सड़क घेर ली गई पता ही नहीं चला।
अब जब नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिये, तो सरकार ने हरकत में आना ही था। घरों-मोहल्लों, बाजारों में लाल निशान दागे जाने लगे। लाल निशान देखते ही लोग सहमने लगे। कई तो ऐसे भी थे जिन्हें पता ही नहीं कि उनसे अतिक्रमण कब हो गया, या उनके पहले के लोगों ने सड़कों के साथ ऐसी छेड़छाड़ कब की।
Published: 24 Jul 2018, 4:39 PM IST
अब जब सरकार ने अतिक्रमण हटाना था तो ये कैसे तय करते कि अतिक्रमण हुआ या नहीं। तो इसके लिए शहर के पुराने नक्शे निकाले गए। सरकारी संदूकों से आजादी से पहले के नक्शे निकले। कहीं साल 1935 का नक्शा था तो कहीं साल 1965 का। किसे मालूम था कि वो नक्शे अब यूं काम आएंगे। इन्हीं नक्शों के आधार पर लाल चिन्ह लगाये जाने लगे। राजधानी देहरादून में ही साल 1904, 1938 और 1992 में बने नक्शों के आधार पर अतिक्रमण हटाया जा रहा है। फिर पता चला कि डॉक्टर साहब ने दो हाथ आगे बढ़कर बाउंड्री बना ली थी। स्कूल तो जैसे बोरे में कूद-कूद कर आगे बढ़े हों। बैंक की दीवार भी अतिक्रमण की जद में आई और पुश्तैनी बंगलेवाले साहब भी कुछ कम न थे। शर्मा जी, वर्मा जी सब नप रहे थे। अतिक्रमण के खेल में हम सब शामिल रहे हैं।
अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश जानकारी देते हैं कि देहरादून में फुटपाथों, गलियों, सड़कों और दूसरे सार्वजनिक स्थलों पर किये गए अनधिकृत निर्माण और अवैध अतिक्रमण को हटाने के लिए भी कार्य जोरों से चल रहा है। कोर्ट के आदेश के बाद 20 जुलाई तक राजधानी में कुल 2,565 अवैध अतिक्रमणों को ध्वस्त किया जा चुका है, 4,876 अतिक्रमण चिन्हित किये जा चुके हैं और 95 भवनों को सील किया जा चुका है।
Published: 24 Jul 2018, 4:39 PM IST
अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश ने इस मुद्दे पर कहा कि हाईकोर्ट के आदेशानुसार ये कार्रवाई की जा रही है। यदि किसी को कोई आपत्ति है तो वो अपनी बात रखने के लिए अदालत जा सकता है। उन्होंने कहा कि अतिक्रमण हटाने के दौरान जिन-जिन स्थानों से बडे और छोटे होर्डिंग्स को ध्वस्त किया गया है। ऐसे स्थानों पर दोबारा होर्डिंग्स न लगने पाए, इसकी पूर्ण निगरानी रखी जा रही है। अपर मुख्य सचिव ने कहा कि जो लोग भविष्य में दुबारा अतिक्रमण करते है, उन पर आईपीसी की धाराओं में एफआईआर दर्ज की जाएगी।
देहरादून के बाजार से निकलते हुए ऐसा लग रहा था कि हम बाय-नेचर दो फलांग आगे बढ़कर चलने वाले लोग हैं। अरे तान तो तंबू, जब सरकार हटाने आएगी तो देखा जाएगा। देखा-देखी कई ने तंबू ताने। बरसों तक कोई तंबू हटाने न आया। पूरा मोहल्ला ईंट-पत्थर के तंबुओं से आबाद हो गया। अचानक एक दिन कोर्ट के आदेश के बाद अधिकारी पर्चा लेकर पहुंच गए, तो सब दंग रह गए। अब तो तंबू के उपर तंबू गड़ चुके थे। उसके उपर भी तंबू। एक-दो घर नहीं पता चला कि पूरा मोहल्ला और पूरी कॉलोनी ही अवैध है। अब जो मोहल्ला हटेगा तो वोटबैंक भी हटेगा, सियासत दां की आफत कुछ कम थोड़े ही न है।
कई गरीबों के घर ढह रहे हैं और अमीर अपने घर को बचाने की जुगत लड़ा रहे हैं। ऐसी शिकायतों से अधिकारी खुन्नस खा रहे हैं। नेता लोगों ने मौका भांप लिया है। अपनी ही सरकार के खिलाफ जनता के साथ खड़े हो गये हैं। कि वोट तो जनता देती है, फिर सरकार बनती है न। एक भी वोट इधर से उधर न खिसके, इसलिए विधायक जी अपने इलाके की एक भी ईंट हटने न देने की धमकी पर उतारू हो गये। बल्कि इससे आगे अतिक्रमण हटाओ अभियान से हटाए गये लोगों के पुनर्वास की भी मांग की जा रही है। कहीं मुआवजा भी न देना पड़ जाए।
Published: 24 Jul 2018, 4:39 PM IST
एक तरफ सरकार के बुलडोजर गरज रहे हैं, दूसरी तरफ उनके विधायक भी अपनी ही सरकार पर बरस रहे हैं। रायपुर क्षेत्र से विधायक उमेश शर्मा काऊ बताते हैं कि विधायकों ने इस संबंध में बैठक की है। उनकी सरकार से अपील है कि लोगों के साथ अन्याय न हो और जो कुछ भी उनके लिए किया जा सकता है, चाहे सरकार कोर्ट से रिलीफ मांगे या अध्यादेश लाकार और कानून बनाकर उनकी मदद करे। उमेश शर्मा कहते हैं कि हम सभी हाईकोर्ट के आदेश का सम्मान करते हैं। लेकिन ये हाईकोर्ट भी नहीं कहती कि बिना सुनवाई किए या लोगों को स्वंय अतिक्रमण हटाने का मौका दिये, इस तरह की कार्रवाई की जाए। विधायक काऊ कहते हैं कि कुछ जगहों पर बिना किसी नोटिस के अतिक्रमण हटाया जा रहा हैं।
हालांकि उत्तराखंड में पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी और हरीश रावत के कार्यकाल में मलिन बस्तियों को नियमित करने के लिये कानून लाया जा चुका है। लेकिन देहरादून में इस पर अमल नहीं हुआ। यहां 129 पंजीकृत बस्तियां हैं। उसके अलावा भी कई बस्तियां हैं जो चिन्हित नहीं हैं। राज्यभर में 582 से अधिक मलिन बस्तियां हैं जो रजिस्टर्ड हैं। जबकि नदियों के किनारे बसी एक हजार से अधिक ऐसी बस्तियां हैं जो अभी रजिस्टर्ड नहीं हैं। देहरादून में तो इस वर्ष रजिस्टर्ड मलिन बस्तियों से हाउस टैक्स वसूलने का नोटिस भी भेजा गया।
हालांकि हल्द्वानी में कुछ बस्तियों को नियमित किया गया है। विधायक उमेश शर्मा काऊ महाराष्ट्र और दिल्ली का हवाला भी देते हैं। महाराष्ट्र में धारावी जैसी सबसे बड़ी अवैध बस्ती को वैध किया गया। वहीं दिल्ली में शीला दीक्षित के मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान भी कई बस्तियों को वैध किया गया। उनका तर्क है कि अतिक्रमण हटाओ अभियान के तहत मलिन बस्तियों को हटाने से लाखों लोग प्रभावित होंगे। बेघर हो जाएंगे। विधायकों का गुस्सा इस बात पर भी है कि हाईकोर्ट में सरकार के वकील ने अपना पक्ष मजबूती से नहीं रखा।
त्रिवेंद्र सरकार अध्यादेश लाने की तैयारी में है, ये जानकर प्रदेश कांग्रेस और बिफर गई। प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह का कहना है कि 2016 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार मलिन बस्तियों के नियमितीकरण का कानून बना चुकी है। इसके बावजूद बस्तियों को उजाड़ने की तैयारी है। प्रीतम सिंह कहते हैं कि सरकार इस अभियान की आड़ मे मलिन बस्तियों को उजाड़ने की साजिश कर रही है।
Published: 24 Jul 2018, 4:39 PM IST
देहरादून में रिंग रोड पर बसे आदर्श बस्ती में रहने वाले लोग भी सहमे हुए हैं। दीपनगर समेत कई मलिन बस्तियों को खाली करने के लिए एक महीने का नोटिस पहुंच चुका है।। यहां रहने वाली सरोज यादव कहती हैं कि हमने अपनी मेहनत की पूरी कमाई एक छोटे से घर को बनाने में लगा दी है। लोगों के घरों में इन्हें हटाने के नोटिस भेजे जा रहे हैं। हमारे पास नोटिस आएगा तो हम क्या करेंगे। कहां जाएंगे।
बात यही नहीं ठहरती। जिन लोगों ने रिहायशी इलाकों में मॉल सरीखी दुकानें खोल डालीं, उनके घर भी नोटिस के सरकारी फर्रे फड़फड़ाते हुए पहुंच गये। रहने की जगह स्कूल खुल गये। क्लीनिक खोल दी गई। इसका दफ्तर, वो एनजीओ, ये पार्लर, वो फोटोग्राफर, कॉस्मेटिक शॉप, बार्बर शॉप, रेस्टोरेंट और न जाने क्या क्या...। जो बाजार मोहल्लों में घुस आए थे, उन्हें वापस खदेड़ने की तैयारी शुरू हो गई है। श्रीमान के पुत्र को कोई नौकरी नहीं मिली तो वे घर में ही एक दुकान निकाल के बैठ गए। जिनके पुत्रों को नौकरी मिल गई, उन्होंने और कमाई के लिए घर में तीन दुकानें निकाल दीं। कुछ लोगों ने तो पूरे घर को ही दुकान में बदल दिया। माया महा ठगनी हम जानी। कुछ माया का मामला था, कुछ बेरोजगारी का भी। वजहें तमाम थीं। पहले घर अलग बसाये जाते थे, बाजार अलग। अब सब गड्डमड्ड हो चुका है। बाजार घरों तक घुस आए हैं।
Published: 24 Jul 2018, 4:39 PM IST
18 जून को नैनीताल हाईकोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को 4 हफ्ते में अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिये थे। तय समय पर अतिक्रमण न हटने पर मुख्य सचिव को व्यक्तिगत तौर पर जिम्मेदार ठहराने की बात कही। हाईकोर्ट ने अतिक्रमण हटाने के लिए पूरी ताकत झोंकने और जरूरत पड़ने पर धारा 144 तक लगाने को कहा। बारिश और आपदा से जूझ रही सरकार की मुश्किल बढ़ गई। तो सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। लेकिन वहां भी राहत न मिली। राज्य सरकार की याचिका खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में ही अपील करने को कहा।
Published: 24 Jul 2018, 4:39 PM IST
इस दौरान सरकार की टास्क फोर्स सड़कों पर अतिक्रमण हटाने में व्यस्त है। कुछ ईमानदार लोग खुद ही अपने अतिक्रमण को तोड़ताड़ कर पीछे लौट रहे हैं। कुछ टूट रहा है, बहुत कुछ बिखर रहा है। ये उजड़ना तकलीफ देह तो है। फिर से बसेंगे तो हो सकता है कि सड़कें कुछ चौड़ी नज़र आएं। ट्रैफिक जाम से कुछ निजात मिले। शहर कुछ सुंदर बनें। हम अपने अतिक्रमण वादी रवैये को बदलने की कोशिश करें।
Published: 24 Jul 2018, 4:39 PM IST
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Published: 24 Jul 2018, 4:39 PM IST