लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था में आई गिरावट से देश को उबारने के नाम पर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बाद गुजरात की बीजेपी सरकार ने भी अपने यहां श्रम कानूनों में बदलाव कर मजदूरों के अधिकार पर वार किया है। इन सरकारों अध्यादेश के जरिये करार के अनुसार नौकरी करने वालों को हटाने, नौकरी के दौरान हादसे का शिकार होने पर मुआवजा और समय पर वेतन देने जैसे कुछ नियमों को छोड़कर अन्य सभी श्रम कानूनों को तीन वर्ष के लिए स्थगित कर दिया है। एक तरह से कंपनियों को कभी भी हायर और फायर का अधिकार दे दिया गया है।
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तीनों राज्यों ने तीन वर्ष से ज्यादा समय के लिए उद्योगों को न केवल श्रम कानूनों से छूट दी है, बल्कि उनके पंजीकरण और लाइसेंसिंग प्रक्रिया को भी ऑनलाइन और सरल कर दिया है। नए उद्योगों को कानून की विभिन्न धाराओं के तहत पंजीकरण कराने और लाइसेंस प्राप्त करने की प्रक्रिया अब 1 दिन में पूरी होगी। इसके साथ ही उद्योगों को उत्पादन बढ़ाने के लिए शिफ्ट में परिवर्तन करने, श्रमिक यूनियनों को मान्यता देने जैसी कई छूट दी गई हैं। राज्य सरकारों की इन घोषणाओं से एक तरफ उद्योग जगत राहत महसूस कर रहा है तो वहीं श्रमिक संगठन आशंका जता रहे हैं कि इससे कर्मचारियों पर काम का दबाव और बढ़ेगा।
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इसके पीछे तर्क दिया गया है कि कोरोना वायरस से निपटने के लिए लागू देशव्यापी लॉकडाउन के चलते कारोबारी गतिविधियां पूरी तरह से ठप हो गई थीं। ऐसे में इन्हें गति देने के लिए यह कदम उठाया गया है। नए निवेश को आमंत्रित करने, औद्योगिक प्रतिष्ठानों की स्थापना के लिए यह जरूरी था कि राज्य में लागू श्रम कानूनों से कंपनियों को अस्थायी तौर पर कुछ छूट दी जाए।
कोरोना संकट की आड़ लेकर श्रम कानूनों को कमजोर करने का आरोप लगाते हुए 8 राजनीतिक पार्टियों ने संयुक्त रूप से राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखा है। शुक्रवार को भेजे पत्र में इन दलों ने इस मुद्दे पर अपना विरोध जताया है। सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, सीपीआई महासचिव डी राजा, सीपीआईएमएल महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य, ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक महासचिव देबब्रत बिस्वास, रेवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी महासचिव मनोज भट्टाचार्य, आरजेडी सांसद मनोज झा, काची तोल तिरुमावलावन के अध्यक्ष विदुतलाई चिरुताइगल और लोकतांत्रिक जनता दल नेता शरद यादव ने पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं।
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इस पत्र में आरोप लगाया गया है कि मोदी सरकार में कामगारों के साथ गुलामों की तरह व्यवहार किया जा रहा है। इस स्थिति तक उन्हें लाना न केवल संविधान का उल्लंघन है, बल्कि निष्प्रभावी बनाना भी है। गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और पंजाब ने फैक्ट्री अधिनियम में संशोधन किये बगैर काम के घंटे को आठ से बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया है। इन पार्टियों ने अन्य राज्यों के भी इसी राह पर जाने की आशंका जताई है।
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