केरल, दिल्ली के बाद क्या अब मंकीपॉक्स ने बिहार में पैर पसारने शुरू कर दिए हैं? ये सवाल इसलिए पूछा जा रहा है क्योंकि राजधानी पटना में मंकीपॉक्स के एक संदिग्ध मामले का पता चला है, जानकारी के मुताबिक पटना के गुरहट्टा इलाके में मंकीपॉक्स का ये संदिग्ध मामला पाया गया है। बता दें, कि पीड़िता एक महिला है और स्वास्थ्य अधिकारियों की एक टीम ने जांच के लिए उनके नमूने एकत्र किए हैं।
एक अधिकारी के मुताबिक, महिला में मंकीपॉक्स के सभी लक्षण हैं और फिलहाल वह होम आइसोलेशन में है।
उन्होंने कहा, "हमने मरीज के नमूने लिए हैं और उन्हें जांच के लिए भेज दिया है। वह होम आइसोलेशन में है और एक टीम उनके स्वास्थ्य की निगरानी कर रही है।"
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आपको बता दें, इससे पहले, दिल्ली में मंकीपॉक्स का एक और केरल में तीन मामले सामने आए थे। इसलिए, बिहार का स्वास्थ्य विभाग हाई अलर्ट पर है और मेडिकल और नसिर्ंग स्टाफ, एएनएम (सहायक नर्स और दाई) और आशा कार्यकर्ताओं को तैयार रहने को कहा है।
नर्सों, दाइयों और आशा कार्यकर्ताओं को विशेष रूप से उच्च घनत्व वाले क्षेत्रों पर नजर रखने और किसी भी रोगी में बीमारी के लक्षण पाए जाने पर विभाग को सूचित करने के लिए कहा गया है।
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मंकीपॉक्स एक वायरस है, जो रोडेन्ट और प्राइमेट जैसे जंगली जानवरों में पैदा होता है। इससे कभी-कभी मानव भी संक्रमित हो जाता है। मानवों में अधिकतक मामले मध्य और पश्चिम अफ्रीका में देखे गए हैं, जहां यह इन्डेमिक बन चुका है। इस बीमारी की पहचान सबसे पहले वैज्ञानिकों ने 1958 में की थी, जब शोध करने वाले बंदरों में चेचक जैसी बीमारी के दो प्रकोप हुए थे, इसलिए इसे मंकीपॉक्स कहा जाता है। मानव में मंकीपॉक्स का पहला मामला 1970 में मिला था, जब कांगो में रहने वाला 9 साल बच्चा इसकी चपेट में आया था।
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मंकीपॉक्स वायरस का इसके नाम के मुताबिक बंदरों से कोई सीधे लेना-देना नहीं है। इंसानों में इस वायरस का पहला मामला मध्य अफ्रीकी देश कांगो में 1970 में मिला था। 2003 में अमेरिका में इसके मामले सामने आए थे। इसके पीछे तब घाना से आयात किए गए चूहे कारण बताए गए थे, जो पालतू जानवरों की एक दुकान से बेचे गए थे।
साल 2022 में इसका पहला मामला मई के महीने में यूनाइटेड किंगडम में सामने आया। इसके बाद से यह वायरस यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों में पैर पसार चुका है। भारत में फिलहाल मंकीपॉक्स का कोई केस सामने नहीं आया है।
डॉक्टर बताते हैं कि जो भी संक्रमित या संदिग्ध मरीज होता है उसके स्किन का सैंपल जांच के लिए पुणे भेजा जाता है। मंकीपॉक्स के लक्षणों में अगर किसी व्यक्ति ने उन अंतरराष्ट्रीय देशों में यात्रा की है जहां पर मंकीपॉक्स के मामले आ रहे हैं, व्यक्ति के स्किन 7 में निशान हैं, बुखार, आंखों में लाल पन, जोड़ों में दर्द है तो व्यक्ति को तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
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विदेश से आए लोग बीमार लोगों के साथ निकट संपर्क में न आएं। खासकर त्वचा व जननांग में घाव वाले लोगों से दूर रहें।
बंदर, चूहे, छछुंदर, वानर प्रजाति के अन्य जीवों से दूर रहें।
मृत या जीवित जंगली जानवरों और अन्य लोगों के संपर्क में आने से भी बचे।
मंकीपॉक्स एक वायरल जूनोटिक बीमारी है। इसमें बुखार के साथ शरीर पर रेशेस आते हैं।
इसके लक्षण चेचक के समान होते हैं।
यह वायरस मुख्यतया मध्य और पश्चिम अफ्रीका में होता है। 2003 में मंकीपॉक्स का पहला केस सामने आया था।
जंगली जीवों का मांस नहीं खाने और अफ्रीका के जंगली जानवरों से प्राप्त उत्पाद जिनमें क्रीम, लोशन, पाउडर शामिल से नहीं करने की सलाह दी गई है।
बीमार लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली दूषित सामग्री जैसे कपड़े, बिस्तर आदि के संपर्क में न आएं।
देश में आगमन के हर प्वाइंट पर संदिग्ध मरीजों की जांच, लक्षण वाले और बिना लक्षण के मरीजों की टेस्टिंग, ट्रेसिंग और सर्विलांस टीम का गठन किया जाए।
अस्पतालों में मेडिकल तय प्रोटोकॉल के तहत इलाज और क्लिनिकल मैनेजमेंट हो।
सभी संदिग्ध मामलों की टेस्टिंग और स्क्रीनिंग एंट्री प्वाइंट्स और कम्युनिटी में की जाएगी
आइसोलेशन में रखे गए मरीज के जब तक सभी घाव ठीक नहीं होते और पपड़ी पूरी तरह से गिर नहीं जाती है को छुट्टी न दी जाए।
मंकीपॉक्स के संदिग्ध मामलों के प्रबंधन के लिए चिन्हित अस्पतालों में पर्याप्त मानव संसाधन और रसद सहायता सुनिश्चित की जाए।
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स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक मंकीपॉक्स नामक वायरस के कारण यह संक्रमण होता है। यह वायरस ऑर्थोपॉक्सवायरस समूह से संबंधित है। इस समूह के अन्य सदस्य मनुष्यों में चेचक और काउपॉक्स जैसे संक्रमण का कारण बनते हैं।
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक मंकीपॉक्स के एक से दूसरे व्यक्ति में संक्रमण के मामले बहुत ही कम हैं। संक्रमित व्यक्ति के छींकने-खांसने से निकलने वाली ड्रॉपलेट्स, संक्रमित व्यक्ति की त्वचा के घावों या संक्रमित के निकट संपर्क में आने के कारण दूसरे लोगों में भी संक्रमण होने की आशंका रहती है।
WHO के मुताबिक मंकीपॉक्स संक्रमण का इनक्यूबेशन पीरियड (संक्रमण होने से लक्षणों की शुरुआत तक) आमतौर पर 6 से 13 दिनों का होता है, हालांकि कुछ लोगों में यह 5 से 21 दिनों तक भी हो सकता है।
संक्रमित व्यक्ति को बुखार, तेज सिरदर्द, लिम्फैडेनोपैथी (लिम्फ नोड्स की सूजन), पीठ और मांसपेशियों में दर्द के साथ गंभीर कमजोरी का अनुभव हो सकता है।
लिम्फ नोड्स की सूजन की समस्या को सबसे आम लक्षण माना जाता है। इसके अलावा रोगी के चेहरे और हाथ-पांव पर बड़े आकार के दाने हो सकते हैं। कुछ गंभीर संक्रमितों में यह दाने आंखों के कॉर्निया को भी प्रभावित कर सकते हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक मंकीपॉक्स से मौत के मामले 11 फीसदी तक हो सकते हैं। संक्रमण के छोटे बच्चों में मौत का खतरा अधिक रहता है।
मंकीपॉक्स का लक्षण दिखते ही डॉक्टर से संपर्क करने की जरूरत है
मंकीपॉक्स के लक्षण जैसे स्कीन में रैशेज हो तो, दूसरे के संपर्क में आने से बचना चाहिए
जिस व्यक्ति में मंकीपॉक्स के लक्षण दिख रहे हैं, उनकी चादर, तौलिया या कपड़ों जैसी पर्सनल चीजों का इंस्तेमाल नहीं करना चाहिए
बार-बार अपने हाथों को साबुन या फिर सैनिटाइजर से साफ करते रहें
मंकीपॉक्स के लक्षण दिखते ही घर के एक कमरे में अकेले रहें
अपने पालतू जानवरों से भी दूरी बनाकर रखने की जरूरत है
गौरतलब है कि 65 देशों में संक्रमण के 16,000 से अधिक मामले सामने आने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मंकीपॉक्स को वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया है।
(IANS के इनपुट के साथ)
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