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बिहार: खत्म हो रहा गोपालगंज का खादी ग्रामोद्योग, कारीगर पलायन को मजबूर

गोपालगंज खादी ग्रामोद्योग से जुड़े पूर्व कर्मचारी ने कहा कि आजादी के पहले से खादी ग्रामोद्योग की शुरुआत हुई थी और यह काफी तेजी से आगे बढ़ रहा था, लेकिन बदलते वक्त के साथ खादी उद्योग पर ध्यान नहीं दिया गया।

खत्म हो रहा गोपालगंज का खादी ग्रामोद्योग
खत्म हो रहा गोपालगंज का खादी ग्रामोद्योग फोटो: IANS

बिहार के गोपालगंज जिले ने अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं के जरिए एक विशिष्ट पहचान बनाई है। इन परंपराओं में खादी का विशेष स्थान रहा है, जिसने न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त किया, बल्कि जिले की पहचान को भी नया आयाम दिया। बिहार सरकार ने इसे 'एक जिला, एक उत्पाद' के तहत शामिल भी किया है। फिलहाल यह उद्योग बुरे दौर से गुजर रहा है। कम आमदनी के कारण परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है, इस वजह से कारीगर पलायन को मजबूर हैं। क्या इनकी दशा सुधर सकती है और कैसे सरकार की एक कोशिश इस उद्योग की तस्वीर बदल सकती है? इन तमाम सवालों का जवाब गोपालगंज खादी ग्रामोद्योग से जुड़े रहे सुरेंद्र कुमार सिंह ने दिया। उन्होंने न्यूज एजेंसी आईएएनएस से बात की और वर्तमान हालात से रूबरू कराया।

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गोपालगंज खादी ग्रामोद्योग से जुड़े पूर्व कर्मचारी ने कहा कि आजादी के पहले से खादी ग्रामोद्योग की शुरुआत हुई थी और यह काफी तेजी से आगे बढ़ रहा था, लेकिन बदलते वक्त के साथ खादी उद्योग पर ध्यान नहीं दिया गया और यह उद्योग आज बुरे दौर से गुजर रहा है।

बीते दौर को याद करते हुए सिंह कहते हैं, " पूरे गोपालगंज में 200 जगहों पर हथकरघा उद्योग चलता था, लेकिन वर्तमान में मुश्किल से 10 जगहों पर चल रहा है। मजदूरी कम मिलने से इस उद्योग से जुड़े कारीगर अब बाहरी राज्यों की ओर पलायन करने लगे हैं, जिस वजह से उद्योग बंद हो रहे हैं।"

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उन्होंने कहा कि सरकार की उदासीनता भी एक बड़ा कारण है। खासकर बिहार सरकार की ओर से कारीगरों को कोई मदद नहीं मिलती है। हालांकि, केंद्र सरकार से प्रोडक्शन पर 30 प्रतिशत तक की सहायता मिल जाती है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।

पलायन की मजबूरी का मुख्य कारण आर्थिक तंगी है। हुनर है पर उसका मान नहीं। सिंह के मुताबिक घंटों काम करने के बाद भी सम्मानजनक मजदूरी नहीं मिलती। उन्होंने कहा, "एक दिन में कम से कम आठ घंटे काम करना पड़ता है, जिसके बदले में 150 से 200 रुपये की कमाई होती है, आज के समय में ये काफी कम है। इस वजह से लोग दूसरे कामों में दिलचस्पी दिखा रहे हैं, जहां इतने घंटे काम करके 500 से 600 रुपये तक की कमाई हो जाती है।"

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खादी परिधान की मांग तो है, लेकिन कारीगरों की कमी से उद्योग का दायरा सिमट गया है। उन्होंने कहा कि उद्योग का दायरा सीमित होने से अब लोकल मार्केट में ही कपड़ों की बिक्री हो जाती है। गोपालगंज के आसपास के जिलों में कपड़े बिक जाते हैं और कभी-कभी गोरखपुर या वाराणसी से भी मांग की जाती है।

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उल्लेखनीय है कि गोपालगंज में खादी उद्योग की जड़ें प्राचीन काल से जुड़ी हुई हैं। स्थानीय कारीगरों ने अपनी कला और कौशल के माध्यम से हस्तनिर्मित वस्त्रों का उत्पादन किया, जो अपनी गुणवत्ता और डिजाइन के लिए प्रसिद्ध थे। समय के साथ, यह उद्योग स्थानीय समुदाय के लिए रोजगार का एक प्रमुख स्रोत बन गया था।

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गोपालगंज का खादी उद्योग जिले की सांस्कृतिक और आर्थिक पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, लेकिन गोपालगंज का खादी उद्योग कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। इनमें आधुनिक तकनीक की कमी, मार्केटिंग में कठिनाई, और कच्चे माल की उपलब्धता जैसी समस्याएं शामिल हैं।

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