सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बिहार के शेल्टर होम में बच्चों के साथ यौन दुर्व्यवहार और उत्पीड़न के सभी 17 मामलों की जांच सीबीआई को सौंप दी। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान नीतीश सरकार को आज फिर फटकार लगाते हुए कहा, “अगर राज्य सरकार ने अपना कार्य सही से किया होता तो मामलों को सीबीआई को नहीं सौंपना पड़ता।” न्यायमूर्ति मदन बीलोकुर, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने बिहार सरकार को मामले में और मोहलत देने मना कर दिया और साथ ही सीबीआई को हर मुमकिन मदद करने का आदेश दिया है।
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कोर्ट ने पहले से ही मुजफ्फरपुर शेल्टर होम कांड मामले की जांच कर रही सीबीआई को अपनी मौजूदा जांच टीम को बढ़ाने का स्वीकृति दी और कहा कि टीम का कोई भी सदस्य बिना कोर्ट के आदेश के जांच नहीं छोड़ सकता। कोर्ट ने जिन शेल्टर होम्स को लेकर सख्त रवैया अपनाया है, वो मोतिहारी, मधेपुरा, पटना, गया, कैमूर, अररिया, भागलपुर, मुजफ्फरपुर और मुंगेर जिलों में हैं। कहीं बच्चों के साथ मारपीट की शिकायत थी, कहीं उनके यौन शोषण या अप्राकृतिक यौनाचार की शिकायतें थीं।
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को 31 जनवरी तक स्टेट्स रिपोर्ट देने को कहा है। वहीं, सीबीआई ने बताया कि मुजफ्फरपुर मामले में 7 दिसंबर को चार्जशीट दाखिल करेंगे।
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इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बालिका गृह कांड पर सुवनाई करते हुए बिहार सरकार को जमकर लताड़ लगाई थी। इस केस की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट बिहार के मुख्य सचिव पहुंचे थे। कोर्ट ने मुख्य सचिव से कहा था, “आपने वक्त पर एफआईआर क्यों नहीं दर्ज की? जांच कैसे कर रहे हैं? देरी से एफआईआर दर्ज करने का मतलब क्या रह जाता है? रिपोर्ट कहती है कि शेल्टर होम में बच्चों के साथ कुकर्म हुआ लेकिन पुलिस ने धारा-377 के तहत मुकदमा दर्ज क्यों नहीं किया? ये बड़ा अमानवीय है। बेहद शर्मनाक है। आपने एफआईआर में हल्की धाराएं जोड़ी हैं। क्या सरकार की नजर में वो देश के बच्चे नहीं?”
(आईएएनएस के इनपुट के साथ)
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