
कांग्रेस ने एक बार फिर एक देश, एक चुनाव का विरोध किया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने शुक्रवार को वन नेशन, वन इलेक्शन पर बनी हाई लेवल कमेटी के सचिव पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने कहा है कि देश में एकसाथ चुनाव करवाने का कांग्रेस विरोध करती है। पत्र में उन्होंने कहा कि यह संविधान की मूल संरचना के खिलाफ है। इसलिए अगर यह व्यवस्था लागू होती है तो इसके लिए संविधान की मूल संरचना में ही बदलाव करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि जिस देश में संसदीय शासन प्रणाली अपनाई गई हो, वहां एकसाथ चुनाव की अवधारणा के लिए कोई जगह नहीं है।
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यहां बता दें कि देश में एकसाथ चुनाव कराने की बीजेपी की कोशिशों के बीच इस पर पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई है, जिसमें गृहमंत्री अमित शाह समेत 8 सदस्य हैं। पिछले साल 18 अक्टूबर को कमेटी ने कांग्रेस से इस मुद्दे पर सुझाव मांगे थे। इसी पर 17 जनवरी को खड़गे ने कमेटी के सेक्रेटरी नितिन चंद्र को 4 पन्ने का पत्र लिखकर जवाब दिया है। उन्होंने 17 पॉइंट्स में बिंदुवार अपनी बात रखी है। कांग्रेस का साफ कहना है कि लोकतंत्र को बचाए रखने के लिए जरूरी है कि एकसाथ चुनाव करवाने के विचार को छोड़ दिया जाए और इसके लिए बनाई गई हाई पावर कमेटी को भंग कर दिया जाए।
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खड़गे ने पत्र में साफ कहा है कि वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर जो हाईलेवल कमेटी बनाई गई है, वह पक्षपाती है। क्योंकि इसमें विपक्षी दलों का कोई प्रतिनिधि नहीं है। साथ ही उन्होंने कहा कि एक साथ चुनाव कराने को लेकर सरकार ने पहले ही अपनी मंशा जाहिर कर दी है। ऐसे में इसको लेकर कमेटी का गठन सिर्फ दिखावा है। खड़गे ने पत्र में कहा कि कमेटी के अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद हैं, जिन्होंने 2018 में संसद में कहा था कि बार-बार चुनाव करवाने से विकास के काम रुक जाते हैं। कांग्रेस बताना चाहती है कि विकास इसलिए नहीं हो पा रहा है, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी काम करने की बजाय चुनाव ही करते रहते हैं।
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खड़गे ने आगे कहा कि इस कमेटी का तर्क है कि अगर एकसाथ चुनाव होते हैं तो खर्चा बचेगा। यह बिल्कुल बेबुनियाद है। 2014 के लोकसभा चुनाव में 3,870 करोड़ रुपए खर्च हुआ था, जिसके बारे में कमेटी का दावा है कि यह काफी ज्यादा है। इससे ठीक उल्ट बीजेपी को 2016-2022 के दौरान 10,122 करोड़ रुपए का चंदा मिला, जिसमें से 5271.97 करोड़ रुपए के बेनामी बॉन्ड हैं। अगर कमेटी और सरकार सच में चुनाव के खर्च पर गंभीर है तो पहले इलेक्टोरल बॉन्ड की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाएं।
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खड़गे पत्र में कहा कि यह तर्क भी बेबुनियाद है कि आचार संहिता लगने से विकास के कामों पर असर पड़ता है। चुनाव के दौरान पहले से मौजूद योजनाएं और परियोजनाएं जारी रहती हैं। उन पर कोई रोक नहीं होती है। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि एकसाथ चुनाव कराने के लिए कई विधानसभाओं को भंग करने की आवश्यकता होगी, जो अभी भी अपने कार्यकाल के आधे (या उससे कम) समय पर हैं। यह उन राज्यों के मतदाताओं के साथ धोखा होगा।
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गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 2 सितंबर को वन नेशन, वन इलेक्शन पर कमेटी बनाई थी। 23 सितंबर 2023 को दिल्ली में कमेटी की पहली बैठक हुई। इसमें गृह मंत्री अमित शाह और पूर्व सांसद गुलाम नबी आजाद समेत इसके सदस्य शामिल हुए। कमेटी ने अपनी पहली बैठक में इस मुद्दे पर देश की राजनीतिक पार्टियों की राय जानने का फैसला किया था। इसके लिए कमेटी ने देश की 46 पॉलिटिकल पार्टियों को पत्र लिखकर उनके विचार मांगे थे। इसमें 6 राषट्रीय पार्टियां, 33 राज्य स्तर की पार्टियां और 7 गैर मान्यता दल हैं।
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वर्तमान में भारत में राज्यों के विधानसभा चुनाव और देश की केंद्रीय सरकार के लिए लोकसभा चुनाव अलग-अलग अपने-अपने समय पर होते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब है कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हों। यानी पूरे देश के मतदाता लोकसभा और अपनी राज्य की विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर अपना वोट डालेंगे। इस समय पूरे देश में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर बहस छिड़ी हुई है। संभावना जताई जा रही है कि अगले लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभाओं के भी चुनाव हो सकते हैं। कहा जा रहा है कि इसके लिए बीजेपी आगामी संसद सत्र में 'वन नेशन, वन इलेक्शन' बिल ला सकती है।
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