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कोरोना वायरसः हमारी-आपकी-सबकी दुनिया बदल देगी यह महामारी

साफ है कि यह बीमारी कई तरह से हम सबके जीवन को बदलने जा रहा है। इसका नकारात्मक असर समाज के बिल्कुल निचले वर्गों पर पड़ना तय है- वह लंबे समय तक वाला होगा या एक-डेढ़ साल में उससे उबरना संभव होगा, यह कहना फिलहाल मुश्किल है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

अब यह लगने लगा है कि कोरोना वायरस का खौफ कम-से-कम छह महीने तक तो रहेगा ही। भारत इससे कितना प्रभावित होगा, यह देखने की बात है। लेकिन यह सिर्फ भारत और यहां रहने वाले लोगों का मसला नहीं है और न ही यह सिर्फ हेल्थ तक सीमित है। महामारी वैश्विक है, इसलिए इससे निबटने के तौर-तरीके दुनिया भर को तरह-तरह से अपनाने पड़ रहे हैं। साफ है कि यह बीमारी कई तरह से हम सबके जीवन को बदलने जा रहा है। इसका नकारात्मक असर समाज के बिल्कुल निचले वर्गों पर पड़ना तय है- वह लंबे समय तक वाला होगा या एक-डेढ़ साल में उससे उबरना संभव होगा, यह कहना फिलहाल मुश्किल है।

बात पहले इससे ही शुरू करें कि अपने देश में भी चारों तरफ सभी चीजें जिस तरह बंद की जा रही हैं, उसका असर आम लोगों पर क्या होगा। यह मत सोचिए कि सिर्फ अधिकतर इंटरनेशनल फ्लाइट्स बंद किए गए हैं और इससे पैसे वाले ही प्रभावित होंगे। लोग देश में इधर-उधर जाने से भी यथासंभव बच रहे हैं। लोगों को जरूरी यात्राएं भी टालनी पड़ रही हैं। ये वैसी यात्राएं भी हैं जो नौकरी से जुड़ी हैं। ऐसे लोगों को कंपनियां कब तक रोजगार में रखेंगी, कहना मुश्किल है। घर बैठाकर कोई कंपनी किसी कर्मचारी को बहुत दिनों तक नहीं रखती। अगर सिलसिला थोड़ा भी खिंचा, तो स्वाभाविक ही, उनसे, कम-से-कम फिलहाल के लिए घर बैठने को कहा जा सकता है। कितने दिनों बाद इनमें से कितनों को फिर रोजगार पर रखा जाएगा, कहना मुश्किल है।

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ऐसी आशंका की वजह है। कई देशों ने इंटरनेशनल फ्लाइट्स बंद कर दिए हैं। अपने यहां भी ऐसा हुआ है। विभिन्न देशों में बीमारी जिस तरह फैल रही है, यह कहना मुश्किल है कि इन फलाइट्स के ऑपरेशन कब तक बहाल होंगे और शुरू हुए भी, तो कितने। इंडियन एसोसिएशन ऑफ टूर ऑपरेटर्स के प्रसिडेंट प्रणव सरकार ने कहा भी है कि विदेशी पर्यटकों का आना-जाना जनवरी-मार्च की तिमाही में 67 प्रतिशत कम हो गया है। इस वजह से इंटरनेशनल फ्लाइट्स के अधिकांश पायलटों को फिलहाल छुट्टी दे दी गई है और वह भी अधिकांशतः लीव विदाउट पे।

इसी तरह हवाई अड्डों पर काम करने वाले काफी सारे ग्राउंड स्टाफ को घर बैठने को कहा जाने लगा है, क्योंकि फिलहाल उनकी जरूरत नहीं है। ऐसे स्टाफ को वेतन के तौर पर कंपनियां बमुश्किल पांच हजार से लेकर 20-25 हजार रुपये मासिक भुगतान करती हैं। ये लोग ठेके पर काम करते हैं इसलिए स्वाभाविक है, उन्हें कोई भुगतान नहीं होगा। आने वाले दिनों में कितनों को कब तक रोजगार पर वापस लिया जाएगा, यह कहना मुश्किल ही है।

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घरेलू फ्लाइट्स में भी यात्रियों की संख्या मार्च के शुरुआती दो हफ्ते में ही एकबारगी घट गई है। भारत के सबसे बड़े एयरलाइन- इंडिगो ने तो बताया भी है कि मार्च के दूसरे-तीसरे हफ्ते में डेली बुकिंग 15 से 20 फीसदी घट गई है। इस रिपोर्ट को फाइल करते समय तक रेलवे के आंकड़े नहीं आए हैं लेकिन कोरोना वायरस के भय से जिस तरह ट्रेनें रद्द की जा रही हैं और जो ट्रेनें चल भी रही हैं, उनमें कन्फर्म्ड टिकट आराम से मिल रहे हैं, उससे समझा जा सकता है कि लोगों की आवाजाही किस तरह कम हो गई है। वैसे, करीब 250 स्टेशनों पर प्लेटफाॅर्म टिकट के दाम 10 से बढ़ाकर 50 रुपये कर दिए गए हैं ताकि लोग अत्यंत जरूरी होने पर ही प्लेटफाॅर्म पर जाएं।

ऐसे में, यह ध्यान देने वाली बात है कि लोग ट्रैवल ही नहीं करेंगे, तो हवाई अड्डों और रेलवे स्टेशनों की दुकानों का व्यापार खत्म हो जाएगा। इनके कर्मचारी भी बेरोजगार हो जाएंगे। लोग यहां-वहां नहीं जाएंगे, तो ट्रैवल एजेंट्स की आमदनी कम हो जाएगी। लंबी दूरी की टैक्सियों की बुकिंग लगभग बंद ही हो जाएगी। लोगों को जिस तरह ऑफिस आने की जगह वर्क फ्राॅम होम करने को कहा जा रहा है, वैसे में लोकल कैब्स की भी जरूरत काफी कम हो जाएगी। ओला, उबर चलाने वाले अधिकतर लोगों ने किस्त पर लोन ले रखा है। यह चुकाना मुश्किल हो जाएगा। यह तो छोड़िए, ऑटो, ई-रिक्शा से लेकर पैर से खींचे जाने वाले रिक्शे तक की सवारियां घट गई हैं। इन्हें चलाने वालों के लिए रोजाना का खर्चा निकालना मुश्किल होता जा रहा है।

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इन सब वजहों से होटल और रेस्टोरेंट के व्यापार पर गहरा असर होने लगा है। बाहर से आवाजाही तो बंद है ही, लोकल लोगों ने भी रेस्टोरेंट जाना या वहां से खाना मंगाना कम कर दिया है। जोमैटो, स्विगी का बिजनेस प्रभावित होने लगा है। एक मोटे अनुमान के अनुसार, सिर्फ फरवरी के अंतिम और मार्च के शुरुआती सप्ताह में रेस्टोरेंट बिजनेस में 30 से 35 फीसदी तक की गिरावट आई है। मंदी के हाल के वर्षों में जोमैटो, स्विगी ने लाखों लोगों को रोजगार दिया हुआ था। स्वाभाविक है कि इससे जुड़े लोगों का रोजगार संकट में आ गया है।

कई राज्यों में सिनेमा हॉल, मॉल वगैरह बंद कर दिए गए हैं। इससे इन सबका व्यापार चौपट हो गया है। अक्षय कुमार की फिल्म सूर्यवंशी की रिलीज डेट आगे खिसका दी गई है। कई अन्य प्रोडक्शन कंपनियां भी ऐसा ही करने को मजबूर हैं। सिनेमा हाॅल के साथ मुंबई समेत कई शहरों में कई कंपनियों ने फिल्में और टीवी सीरियल बनाने के काम रोक दिए हैं, क्योंकि सरकार ने भी भीड़भाड़ से बचने को कहा है। इन सबसे कितने लाख लोग जुड़े हैं, इसका अंदाजा लगाइए। इन सबकी आमदनी बंद। ऐसे काम करने वाले मध्य और बिल्कुल निचले स्तर के लोगों के साथ कोई काॅन्ट्रैक्ट तो होता नहीं। तो, इनकी नौकरी जाने की शुरुआत भी हो गई है।

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बड़े-बड़े इवेन्ट से लेकर शादी-विवाह-जैसे आयोजन तक बंद हैं। कोरोना का खौफ जब तक रहेगा, ये बंद ही रहेंगे। इन आयोजनों के कर्ता-धर्ता सारे प्रोफेशनल्स, व्यापारी, कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं। इनमें भी वही हाल है। अधिकतर लोग असंगठित क्षेत्र के कर्मचारी हैं और उनकी नौकरी बिल्कुल संकट में है। बाजारों में लोग तब ही जा रहे हैं जब जरूरी है- मतलब, कपड़े से लेकर दैनिक उपयोग के सामान तक की खपत में कमी। इनके उत्पादन में लगे लोगों की आमदनी का सीधे-सीधे प्रभावित होना तय है। देश का औद्योगिक उत्पादन वैसे ही लगातार गिरता गया है।

फरवरी-मार्च में इस तरह की स्थिति होने की वजह से कई कंपनियां इस बार अपने रेगुलर कर्मचारियों को एनुअल इन्क्रिमेंट न दें, तो आश्चर्य नहीं। यही नहीं, बिजनेस पर प्रभाव होने के कारण कर्मचारियों की छंटनी हो या कम पैसे पर काम करने की शर्त पर कर्मचारियों की नौकरी न जाए, तब भी चौंकना नहीं चाहिए। यह सब हो जाने की वजह से बाजार में मांग में कमी हो रही है।स्वाभाविक ही कई जरूरी चीजों के दाम मनमाने ढंग से बढ़ रहे हैं क्योंकि एक तो कालाबाजारी करने वाले लोग इसका फायदा उठाने लगे हैं; दूसरे कि प्रोडक्शन में कमी से लेकर सप्लाई चेन तक बाधित हुई है। इसकी सबसे अधिक मार मध्य और निम्न वर्ग पर पड़ने लगी है।

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इन सबका मैसेज क्या है

एक दफा भी छह महीने से एक साल तक ऐसी स्थिति बनती है, तो तमाम बड़ी कंपनियां विकल्प की तलाश में तुरंत लग जाती हैं। ऐसा करना उचित भी है क्योंकि टेक्नोलाॅजी की वजह से जिस तरह सुविधाएं बढ़ती गई हैं, उनका उपयोग कर कामकाज को बेहतर करने की कोशिश निरंतर होती गई है। इसलिए ध्यान दें कि अपने यहां क्या-क्या हो सकता हैः

  • बीमारी न फैले, इसलिए इन दिनों वर्क फ्रॉम होम पर जोर दिया जा रहा है। कितनी भी बड़ी कंपनी क्यों न हो, किसी के पास कंप्यूटर, इसमें उपयोग किए जाने वाले सॉफ्टवेयर, इसके लिए जरूरी इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं है कि वह हर कर्मचारी को घर से काम करने को कहे। बड़ी कंपनियों तक में अब भी 10 से 15 फीसदी कर्मचारी ही ऐसे होते हैं जो घर से ऑफिस का हर तरह का काम कर सकें। स्वाभाविक है कि कंपनियां अधिकांश कर्मचारियों को सभी सुविधाओं वाले कंप्यूटर उपलब्ध कराने में इनवेस्टमेंट करने को मजबूर होंगी। इसके लिए भारी-भरकम निवेश की जरूरत होगी, तो फिर, कर्मचारियों की संख्या कम की जाएगी और ऐसा हर जगह होगा। देर से ही सही, सरकारें भी यही सब करेंगी लेकिन वहां भी कर्मचारियों की छंटनी होगी।
  • औद्योगिक उत्पादन, उनके निर्यात-आयात के तौरतरीके बदलने जा रहे हैं। उदारीकरण के दौर में दुनिया खुल गई थी लेकिन इस वक्त सबने एक-दूसरे से लेनदेन पर रोक लगा दी है। यह धीरे-धीरे खुला भी, तो कौन-सा देश किससे कितना और कौन-सा सामान खरीदना शुरू करेगा, अभी नहीं कहा जा सकता। भारत में बीमारी ज्यादा नहीं फैली, तो संभव है, वह बेहतर स्थिति में रहे और औद्योगिक उत्पादन को पंख लगे। लेकिन ऐसा होगा या नहीं, यह कम-से-कम एक महीने में पता चलेगा। यह तो तय है कि कई छोटे देश तो आर्थिक भंवर में फंस ही जाएंगे।
  • कई देशों की तरह अपने यहां भी स्कूल-काॅलेज बंद कर दिए गए हैं। अगस्त में कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद करीब छह महीने तक जो स्थिति रही थी, अभी कम-से-कम स्कूल-काॅलेज के खयाल से, लगभग पूरे देश में वही स्थिति है। ऐसे में, आने वाले दिनों में ई-लर्निंग पर जोर दिया जाने लगे, तो आश्चर्य नहीं। कई इंटरनेशनल स्कूल और संस्थान इस दिशा में पहले से ही काम कर रहे हैं। यह प्रवृत्ति बढ़ती जा सकती है। इन सबसे शिक्षा का काॅस्ट बढ़ता जाएगा। इसकी मार भी निम्न मध्य वर्ग और निम्न वर्ग पर सबसे अधिक होगी, क्योंकि आज ही वे बहुत मुश्किल से मिलने वाले एजुकेशन लोन के बिना टेक्निकल और उच्च शिक्षा से वंचित रहते हैं।
  • इस बीमारी का खौफ एक साल के दौरान कम भी हो गया, तब भी शक नहीं कि हेल्थ सेक्टर में अधिक इन्वेस्टमेंट होगा- सरकारें भी करेंगी और निजी कंपनियां भी। डाॅक्टर्स के साथ सामान्य हेल्थ वर्कर्स की भी जरूरत होगी। इसके लिए विशेष किस्म की न्यूनतम पढ़ाई की जरूरत होगी। लेकिन इनके साथ भी उसी तरह का सुलूक किया जाएगा जो संविदा पर रखे जाने वाले लोगों के साथ किया जाता है- हर वक्त सिर पर लटकती तलवार।
  • सबसे अधिक दिक्कत उन लोगों को होगी जो निर्माण कार्य, घरेलू कामकाज आदि का काम दिहाड़ी पर करते हैं। चूंकि मंदी ग्लोबल होगी, अधिकांश निवेश रोक दिए जाएंगे। मंदी में सबसे अधिक प्रभावित होते हैं दिहाड़ी मजदूर ही। तो उन्हें तो सबसे ज्यादा भुगतना ही होगा।

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