हालात

नहीं रहे गांधीवादी पत्रकार नचिकेता देसाई

रिपोर्टर, संपादक, अनुवादक और विद्वान नचिकेता देसाई का रविवार (5 फरवरी) सुबह अहमदाबाद में निधन हो गया। अपने अंतिम वर्षों में उन्होंने खुद को एक एक्टिविस्ट के रूप में भी स्थापित किया था।

बाएं से तीसरे नंबर पर नचिकेता देसाई। यह तस्वीर पिछले माह प्रकाशित उनकी पुस्तक के लोकार्पण के समय की है
बाएं से तीसरे नंबर पर नचिकेता देसाई। यह तस्वीर पिछले माह प्रकाशित उनकी पुस्तक के लोकार्पण के समय की है 

गांधीवादी और नेशनल हेरल्ड में सलाहकार संपादक रहे नचिकेता देसाई का आज देहांत हो गया। वे 72 वर्ष के थे और रविवार सुबह उन्होंने अहमदाबाद के अखबार नगर में अपने निवास में आखिरी सांस ली।

महात्मा गांधी के निजी सचिव रहे महादेव देसाई के पौत्र और गांधीवादी स्कॉलर नारायण देसाई के पुत्र नचिकेता देसाई बहुभाषी पत्रकार और लेखक थे। महादेव देसाई की मृत्यु उस समय जेल में हुई थी जब उन्हें भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गांधी जी के साथ गिरफ्तार किया गया था। उनके बहुत से अप्रकाशित लेखों को नचिकेता देसाई ने प्रकाशित किया था और पिछले महीने ही साबरमती आश्रम में उसका लोकार्पण हुआ था।

नचिकेता देसाई ने अपने पत्रकारीय जीवन की शुरुआत 1978 में इंडियन एक्सप्रेस अखबार के साथ की थी। इसके बाद उन्होंने करीब 40 वर्षों के अपने पत्रकारीय जीवन में हिम्मत वीकली, यूएनआई, द टेलीग्राफ, द इंडिपेंडेंट, ईटीवी न्यूजटाइम, आईएएनएस और दैनिक भास्कर जैसे अखबारों में विभिन्न पदों पर काम किया।

उनके साथ काम करने चुके लोग और उनके दोस्त उन्हें एक सटीक बात करने वाले पत्रकार के तौर पर याद करते हैं। उन्होंने कई शानदार खोजी और ह्यूमन इंटरेस्ट की रिपोर्ट क थीं। उन्होंने गुजरात, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार के विभिन्न मुद्दों पर शानदार खबरें लिखीं।

उनके परिवार के मुताबिक नचिकेता काफी समय से बीमार थे और उनकी हालत बीते दो वर्षों में अधिक खराब हो गई थी। लेकिन अपनी खराब  सेहत के बावजूद उन्होंने अपने जुनून के चलते काम जारी रखा। उनकी संपादित पुस्तक ‘महादेव देसाई – महात्मा गांधी के अग्रणी रिपोर्ट’ पिछले साल तैयार हुई थी जिसका साबरमती आश्रम और ने जनवरी 2023 में लोकार्पण किया था।

नचिकेता देसाई गांधीवादी विचारों के वाहक थे और कभी भी वंचित तबके की आवाज उठाने में पीछे नहीं रहे। उन्होंने विवादास्पद नागरिकता संशोधन विथेयक के खिलाफ साबरमती आश्रम एक बाहर अनशन किया था। वह अकेले ही मौन अनशन कर रहे थे, लेकिन उन्हें आश्रम छोड़ने पर मजबूर किया गया था और जबरदस्ती हटा दिया गया था।

साबरमती आश्रम के कथित विकास को लेकर जब गुजरात सरकार ने कदम बढ़ाए थे तो भी उन्होंने इसका खुलकर विरोध किया था।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined