हालात

‘लोगों को न पता चले देश की असली आर्थिक हालत और सरकारी नीतियों की वजह, इसलिए RTI एक्ट में बदलाव कर रही सरकार’

एनसीपीआरआई की सह संयोजक अंजलि भारद्वाज का कहना है कि यह सरकार पारदर्शी नहीं है इसीलिए वह सूचनाओं को छिपाने के मकसद से आरटीआई कानून में बदलाव करना चाहती है। बता दें कि गुरुवार को राज्यसभा में हुई वोटिंग में सूचना का अधिकार संशोधन बिल पास हो गया।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

हाल ही में लोकसभा ने सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 पास कर दिया। इसके पक्ष में 218 मत पड़े जबकि विपक्ष में 79 मत। यह आरटीआई कानून में बदलाव करने वाला है। इससे सूचना आयुक्तों (आईसी) के वेतन और उनके कार्य अवधि में भी बदलाव होगा। यह विधेयक अब राज्यसभा में है। इस मसले को समझने के लिए नवजीवन से एशलीन मैथ्यू ने नेशनल कैंपेन फाॅर पीपुल्स राइट टु इन्फाॅर्मेशन (एनसीपीआरआई) की सह संयोजक और सतर्क नागरिक संगठन (एसएनएस) की सदस्य अंजलि भारद्वाज से बातचीत की। उनका कहना है कि यह सरकार पारदर्शी नहीं है और वह सूचनाएं यथासंभव छिपाने के लिए आरटीआई कानून में बदलाव करना चाहती है।

सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक के साथ क्या समस्या है ?

हमें समझना होगा कि इन संशोधनों के पीछे क्या तर्क हैं। इन संशोधनों की वजह होनी चाहिए। यह नहीं होना चाहिए कि कोई सरकार एक दिन अचानक सोचे कि किसी कानून में संशोधन कर दिया जाए, खास तौर से तब जब कोई कानून ठीक ढंग से काम कर रहा हो।

इन संशोधनों के साथ कई समस्याएं हैं। सरकार अब कहने की कोशिश कर रही है कि 65 साल में रिटायरमेंट की उम्र के मद्देनजर सूचना आयुक्तों के पांच साल के निश्चित कार्यकाल की जगह केंद्र सरकार खुद यह निर्णय करेगी कि सूचना आयुक्तों का कार्यकाल क्या हो। दूसरी बात, वह यह कह रहे हैं कि चुनाव आयुक्त जो सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की तरह हैं, के स्तर तक की सेवा शर्तों, मानदेयों और वेतनों की जगह केंद्र सरकार इन सबको निश्चित करने का अधिकार अपने पास लेना चाहती है।

Published: undefined

हम जानते हैं कि अगर हम किसी संस्था को स्वतंत्र रूप से काम कर देना चाहते हैं, तो सरकार या कार्यपालिका की उसमें काम करने वाले लोगों की कार्य अवधि या वेतन निश्चित करने में कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए। इस मामले में, कानून पहले से है और इसके साथ कोई समस्या भी नहीं है। इसके कार्यान्वयन के 14 साल बाद सरकार अब सिर्फ यह कहना चाह रही है कि वह इसे अपने हाथ में ले लेगी। इससे सूचना आयोग की स्वायत्तता का अवमूल्यन होगा और तब यह होगा कि आयोग वैसे सूचनाओं को सामने लाने के लिए आदेश देने के बारे में एहतियात बरतने लगेगा जो सरकार के लिए असहज या लज्जाजनक हो।

हमें यह समझना होगा कि भारत में आरटीआई कानून का नागरिक बड़े पैमाने पर उपयोग करते हैं। हर साल 40 से 60 लाख आरटीआई आवेदन दाखिल किए जाते हैं और वे इसका उपयोग देश के उच्चतम अधिकारियों पर सवाल उठाने के लिए उपयोग कर रहे हैं। ये बड़े लोगों के भ्रष्टाचार उजागर करने, गलत-सलत को सामने लाने और मानवाधिकार हनन मामलों के लिए उपयोग किए जा रहे हैं। सरकारें इन सबके बारे में सूचनाएं नहीं देना चाहतीं। आयोग की भूमिका, बिना किसी भय या पक्षपात के, सरकार को यह सूचना तब भी देने के लिए निर्देश देने का है, जब वह यह सूचना नहीं देना चाहती है। अगर आयोग की स्वायत्तता के साथ समझौता होता है, तो इस पर प्रभाव पड़ेगा।

केंद्र सरकार इन संशोधनों की जरूरत को किस तरह उचित ठहरा रही है?

संवैधानिक इकाई बनाम वैधानिक इकाई का सरकार का तर्क बेकार है। इसका एक साधारण-सा कारण यह है कि संविधान या किसी कानून में ऐसा कुछ नहीं है कि जो कहता हो कि इसकी अनुमति नहीं है। अगर सरकार किसी सनक में काम करना चाहती है, तो कोई कुछ नहीं कर सकता। यह एक परंपरा है जिसका पालन किया जा रहा है- चाहे वह लोकपाल कानून हो या सीवीसी का मामला हो, आयुक्तों का स्तर संवैधानिक इकाइयों के स्तर पर रखा जाता है।

Published: undefined

अगर सरकार आरटीआई कानून को लेकर इतनी ही चिंतित थी, तो उसे सूचना आयोग का स्तर संवैधानिक इकाई तक बढ़ाने से संबंधित संशोधन लाना चाहिए था। इस तरह का संशोधन लाने से सरकार को कोई चीज नहीं रोक रही थी। साफ तौर पर, जो कुछ हो रहा है, वह यह है कि सरकार की इच्छा यह है कि वह नहीं चाहती कि लोगों के पास सूचना हो। वे जानते हैं कि देश भर के काफी संख्या में ऐसे लोग हैं जो सूचना हासिल करने के कानून का उपयोग करते हैं और सरकार उस पर नियंत्रण पाने के लिए कुछ नहीं कर सकती, इसलिए अब वह उस संस्था पर नियंत्रण की कोशिश कर रही है जो लोगों को इस तरह सक्षम बनाती है।

नोटबंदी, एनपीए, लोन डिफाॅल्टर और रोजगार के आंकड़ों से संबंधित सूचनाएं ऐसी हैं जो सरकार जारी नहीं करना चाहती थी, और इससे जब भी सरकार ने इनकार किया, तो आयोग ने सरकार को इसे जारी करने का आदेश दिया। और सरकार के लिए तब स्थिति असुविधाजनक हो जाती है। लोगों ने राशन, पेंशन, स्वास्थ्य, शिक्षा, बड़े ठेकों, रक्षा और खनन सौदों को लेकर सूचनाएं हासिल करने के अधिकार का इस कानून के जरिये काफी उपयोग किया है।

Published: undefined

लेकिन मोदी सरकार कह रही है कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णयात्मक कदम उठा रही है...

अगर कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ सचमुच प्रतिबद्ध है, तो उसे पारदर्शी होना होगा। लोगों को जानने लायक होना होगा कि क्या हो रहा है। अपने को क्लीनचिट दे देना पर्याप्त नहीं है। आरटीआई कानून लोगों को अंदर तक देखने की सुविधा देता है कि क्या हो रहा है। सरकार यह नहीं कह सकती कि हम सूचना नहीं देंगे बल्कि हमारी बातों पर यकीन करो कि हम भ्रष्ट नहीं हैं। इसलिए सरकार का अपने को क्लीनचिट देने से हमें कोई मदद नहीं मिलने जा रही है।

क्या आपको लगता है कि इस सरकार के पास छिपाने को बहुत कुछ है और इसी वजह से वह यह संशोधन ला रही है?

यह सरकार बिना किसी तर्क काफी सारी सूचना लोगों को उपलब्ध कराने से हिचकती रही है। यह साफ लग सकता है कि सरकार सार्वजनिक जांच-पड़ताल के लिए और लोगों के प्रति उत्तरदायी होने के लिए अपने को खोलना नहीं चाहती। यह बताता है कि पारदर्शी होने की उनके पास राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं है, अन्यथा ये संशोधन लाने की कोई वजह नहीं है। और ऐसा वे तब भी कर रहे हैं जबकि इसको लेकर लोक विरोध है और विपक्षी सांसद हल्ला मचा रहे हैं।

Published: undefined

दरअसल यह सरकार पूरी तरह अपारदर्शी तरीके से काम करना चाहती है और यह बात बिल्कुल साफ है। आरटीआई संशोधन विधेयक समेत तमाम बिलों को देखें। इन बिलों की बातों को बिना सार्वजनिक दायरे में लाए इन्हें लाया जा रहा है जो पारदर्शिता के सिद्धांतों के विपरीत और आरटीआई कानून का उल्लंघन भी है। इसलिए, सरकार पारदर्शी ढंग से काम नहीं कर रही है और यहां तक कि स्थायी समितियों के जरिये भी इन कानूनों पर उचित विचार-विमर्श की अनुमति नहीं दे रही है।

आम लोगों ने भी इस संशोधन कानून को पेश करने का विरोध किया था, लेकिन इसके बावजूद इस संशोधन को लोकसभा में पेश किया गया। इसे स्थायी समिति को भेजने की मांग थी और अब हम लोग इसे राज्यसभा की सेलेक्ट कमिटी में भेजने की मांग कर रहे हैं।

अगर सरकार इस कानून को आज पारित कर देती है, तो क्या होगा?

अगर सरकार इसे पास करा ले जाती है, तो लोग तब भी अपनी मांग जारी रखेंगे। हम राष्ट्रपति से भी अनुरोध करेंगे कि वह इस पर हस्ताक्षर नहीं करें। वास्तविकता यह है कि अगर यह कानून बन जाता है, तो यह लोगों के सूचना के अधिकार को काफी हलका कर देना होगा।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined