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अजित डोवाल की हर विभाग में दखलंदाज़ी और राजनीतिक बयानों से बेचैनी बढ़ने लगी है मोदी सरकार में

अजित डोवाल मोदी सरकार में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं। लेकिन वे अपने कार्यक्षेत्र से आगे जाकर लगभग हर विभाग में दखलंदाज़ी करते हैं और राजनीतिक बयान देते हैं। उनकी इस कार्यशैली से सरकार के ही एक तबके में जबरदस्त बेचैनी है।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल

अजित डोवाल को जब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया गया था और उन्हें टीम मोदी तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई तो किसी को खास आश्चर्य नहीं हुआ था, क्योंकि डोवाल ‘मोदी को पीएम बनाओ’ अभियान में सक्रिय भूमिका निभाते रहे थे। 74 साल के अजित डोवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उम्र मं 6 साल बड़े हैं और उन्हीं की सलाह पर नृपेंद्र मिश्र को पीएम का प्रधान सचिव बनाया गया था।

अजित डोवाल को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाए जाने पर कुछ लोगों ने दबे सुरों में शक जताया था, लेकिन उनके दबदबे में कभी कोई कमी नहीं आई। लेकिन, अब साढ़े चार साल बाद खतरे की घंटी बजती नजर आ रही है। राजनीतिक मामलों में उनकी अति-सक्रियता और सत्तारूढ़ दल के राजनीतिक हितों की रक्षा और उन्हें साधने के लिए सरकारी मशीनरी के दुस्साहसपूर्ण इस्तेमाल में संकोच न करने की उनकी कार्यशैली से अब बेचैनी बढ़ने लगी है।

अपने पूर्ववर्ती एनएसए से उलट वे खुले तौर पर आरएसएस और बीजेपी से अपनी नजदीकियां दिखाते हैं और अपनी कार्यसीमा से परे जाकर राजनीतिक मामलों और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में दखल देते हैं।

बृजेश मिश्रा भारत के पहले एनएसए थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से उनकी नजदीकियां जगजाहिर थीं, लेकिन उन्होंने कभी भी गृह मंत्री और विदेश मंत्री के अधिकार क्षेत्र में दखल देने की कोई ऐसी कोशिश नहीं की जैसे कि अजित डोवाल करते हैं।

मोदी सरकार की विदेश नीति तय करने और भारत की अमेरिका और इज़रायल से बढ़ती नजदीकियों का श्रेय अजित डोवाल को ही दिया जाता है। कहा जाता है कि पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक का तानाबाना भी उन्होंने ही बुना था। पाकिस्तान को सामरिक तौर पर नुकसान पहुंचाने और जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों के आक्रामक रुख के साथ ही आम लोगों पर पैलेट गन के इस्तेमाल की छूट देने के फैसले में भी अजित डोवाल का ही दिमाग माना जाता है। आलम यह है कि कानून मंत्रालय के दस्तावेज़ों से संकेत मिलता है कि अजित डोवाल ने ही फ्रांस के साथ राफेल विमान सौदे का मोल-भाव किया था।

अजित डोवाल सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों तक ही सीमित नहीं हैं। 23 अक्टूबर की आधी रात को हुए सीबीआई के तख्ता पलट के लिए पीएमओ से अधिसूचना जारी कराने के पीछे भी उन्हीं का नाम सामने आया है। बताया जाता है कि अजित डोवाल ने ही तत्कालीन सीबीआई डायरेक्टर को उनके पद से हटाने में अहम भूमिका निभाई।

इसी तरह, जब इस साल जून में जम्मू-कश्मीर में बीजेपी ने पीडीपी के साथ गठबंधन खत्म करने का फैसला किया तो इसके पीछे भी डोवाल का ही हाथ माना गया, जबकि खबरें ऐसी सामने आई थीं कि केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह तक को इस बारे में कुछ नहीं पता था।

अजित डोवाल डोभाल मंचों से राजनीतिक भाषण देने में भी नहीं संकोच नहीं करते हैं। हाल ही में सरदार पटेल स्मृति व्याख्यान देते हुए उन्होंने साफ कहा कि भारत को अगले दस साल तक कमजोर और गठबंधन वाली सरकार नहीं चाहिए। उनके इस बयान को मौजूदा सरकार की तारीफ के तौर पर देखा गया। इससे पहले वह यह भी कह चुके हैं कि जम्मू-कश्मीर के लिए अलग संविधान बनान एक भूल है।

यूं तो अजित डोवाल की मीडिया के बारे में कोई अच्छी राय नहीं है। मीडिया को रोचक मनोरंजन की संज्ञा देने वाले डोवाल कहते हैं कि उनके बारे में जो कुछ भी मीडिया में आता है, उसमें एक फीसदी भी सच्चाई नहीं होती है, और मीडिया को सबसे ऊपर राष्ट्रहित रखना चाहिए, लेकिन अपने कुछ पसंदीदा और विश्वासपात्र पत्रकारों के साथ चुनिंदा दस्तावेज, सूचनाएं और वीडियो भी खूब साझा करते हैं।

लेकिन विरोधाभास तब सामने आता है जब व्हाट्सऐप पर शेयर किए जा रहे फेक न्यूज और छेड़छाड़ की गई तस्वीरों और वीडियो पर खामोश रहते हैं। हिंसा और मॉब लिंचिंग के बढ़ते मामलों को उनके पूर्ववर्ती एनएसए ने देश के लिए एक बड़ा खतरा बताया था, लेकिन अजित डोवाल इस मामले में चुप्पी साधे रहते हैं।

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अभी हाल में सरकार की उस समय किरकिरी हुई थी जब सीबीआई के डीआईजी मनीष सिन्हा ने कोर्ट में कहा था कि दुबई के इंवेस्टमेंट कंसल्टेंट मनोज प्रसाद ने अजित डोवाल को निजी फायदा पहुंचाया था। कहा गया कि निजी फायदा शायद अजित डोवाल के पुत्र शौर्य डोवाल के कारोबारी लेनदेन से जुड़ा हो सकता है। प्रसाद को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था, लेकिन 31 अक्टूबर को उसे छोड़ दिया गया था।

शौर्य डोवाल एक इंवेस्टमेंट बैंकर रहे हैं। वह कई ऐसी वित्तीय फर्मों के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं, जिनमें सऊदी अरब के राजपरिवार का कोई न कोई सदस्य चेयरमैन है। सऊदी राजकुमार मिशल बिन अब्दुल्ला बिन तुर्की बिन अब्दुलअजीज अल सऊद ज़्यूस कैप्स के चेयरमैन थे। और ज़्यूस कैप्स के अधिग्रहण के बाद भी वे टॉर्च फायनेंशियल सर्विसेस के चेयरमैन बने रहे। टॉर्च फायनेंशियल सर्विसेस का इंडिया कार्यालय अजित डोवाल के नोएडा के सेक्टर 44 स्थित घर में है।

डोवाल के सऊदी अरब से रिश्तों को लेकर सवाल खड़े होना स्वाभाविक हैं। एनएसए रहते हुए वे कई बार सऊदी अरब की यात्रा कर चुके हैं। 2015 में जब सऊदी अरब के एक राजनयिक पर 2015 में गुड़गांव के अपने फ्लैट में दो नेपाली महिलाओं को प्रताड़ित करने और उनके साथ दुष्कर्म करने का आरोप लगा, तो उन्हें बिना भारतीय कानून के मुताबिक आरोपी बनाने के बजाय देश छोड़ने की अनुमति दे दी गई। यहां ध्यान रखना होगा कि किसी राजनयिक को भारत में अपराध करने पर राजनयिक छूट नहीं मिलती है। सही था या गलत, कह नहीं सकते, लेकिन इस मामले में भी अजित डोवाल का नाम सामने आया था कि उनके दखल से ही सऊदी राजनयिक को यहां से जाने की छूट मिली।

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