देश में इन दिनों कथित तौर पर जीएसटी बचत उत्सव का माहौल बनाया जा रहा है। केंद्र सरकार के मंत्री, बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता बाजारों में घूम-घूम कर लोगों को बता रहे हैं कि किस तरह जीएसटी दरों में बदलाव से लोगों को फायदा पहुंच रहा है। प्रधानमंत्री तो अपने भाषणों में दावा कर रहे हैं कि जीएसटी दरों में बदलाव से देश के लोगों को हर साल 2.5 लाख करोड़ रुपए की बचत होगी। लेकिन जिस बात का जिक्र नहीं किया जा रहा है वह यह है कि इससे राज्यों को होने वाले नुकसान की भरपाई कैसे की जाएगी।
अब यह बात सामने आई है कि जीएसटी परिषद की जिस बैठक में जीएसटी दरों में बदलाव के फैसले पर मुहर लगाई गई या लगवाई गई, उसमें राज्यों को होने वाले राजस्व के नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजा देने के मुद्दे पर चर्चा तक नहीं हुई। दो दक्षिण भारतीय राज्यों केरल और तेलंगाना ने सार्वजनिक तौर पर इस बात का खुलासा किया है 3 सितंबर को हुई जीएसटी काउंसिल की बैठक के एजेंडे में राज्यों को दिए जाने वाले मुआवजे का मुद्दा भी था, लेकिन बैठक की कार्यवाही के दौरान इसे एजेंडे से बाहर कर दिया गया।
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दिल्ली में द हिंदू अखबार के एक कार्यक्रम में शामिल तेंलगाना के डिप्टी सीएम भट्टी विक्रमार्क मल्लू और केरल के वित्त मंत्री के एन बालगोपाल ने कहा कि “केंद्र के प्रस्तावित दर कटौती के कारण राजस्व पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव की आशंका जताते हुए, केरल और तेलंगाना सहित आठ राज्यों ने 3 सितंबर को जीएसटी परिषद की बैठक से पहले दिल्ली में मुलाकात की और परिषद से मुआवजे की मांग करने का फैसला किया था। बालगोपाल ने कहा कि, "वास्तव में, एजेंडे में मुआवजे का प्रश्न भी था, लेकिन उस एजेंडे पर चर्चा नहीं हुई। हमने अपने भाषण दिए, हमने अपनी टिप्पणी दी, लेकिन मुआवजे के उपकर पर क्या हो सकता था, इस पर कोई चर्चा नहीं हुई।"
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जीएसटी काउंसिल के सदस्य तेलंगाना और केरल दोनों के वित्त मंत्रियों ने कहा कि जीएसटी ने केंद्र पर राज्यों की निर्भरता को काफी बढ़ा दिया है, और विकास पर होने वाले खर्च के लिए राज्यों की अपने स्वयं के धन जुटाने की उनकी क्षमता को कम कर दिया है। तेलंगाना के उपमुख्यमंत्री भट्टी विक्रमार्क मल्लू और केरल के वित्त मंत्री के.एन. बालगोपाल ने वर्तमान केंद्र-राज्य राजकोषीय गतिशीलता को लेकर राज्यों के सामने आने वाले मुद्दों पर बात की। मल्लू ने समझाया कि, "भारत सरकार ने राज्यों को आश्वासन दिया था कि उन्हें जीएसटी-पूर्व अवधि की तुलना में 14% कर मिलेगा, जब यह लगभग 14-18% हुआ करता था, लेकिन इस अवधि के अंत तक, हमने महसूस किया है कि 18% को भूल जाइए, वे इन पांच वर्षों में कर राजस्व में 14% वृद्धि को भी स्थिर नहीं कर पाए हैं। यह लगभग 7-8% है।" इसके साथ ही यह तथ्य भी है कि देश में अधिकांश खर्च राज्यों द्वारा किया जाता है, जबकि अधिकांश राजस्व केंद्र के पास जाता है।
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बालगोपाल ने बताया कि, "पंद्रहवें वित्त आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, पूरी सरकार के कुल खर्च का लगभग 64% राज्य सरकारों द्वारा वहन किया जाता है। उन्होंने कहा कि, "और वे कह रहे हैं कि सरकार के कुल राजस्व में से, पूरे भारत में, लगभग 63-64% संघ (केंद्र) को मिल रहा है। तो, दो-तिहाई खर्च राज्यों द्वारा वहन किया जाता है लेकिन दो-तिहाई राजस्व केंद्र के पास जाता है।"
दोनों मंत्रियों ने कहा कि इस संरचना को केंद्र द्वारा उपकर (सेस) के उपयोग से और असंतुलित किया गया है। उन्होंने कहा कि जबकि पंद्रहवें वित्त आयोग ने केंद्र को अपने राजस्व का 41% राज्यों के साथ साझा करने की सिफारिश की थी, इसका लगभग 20% राजस्व उपकरों से आता है जिसे साझा करने की आवश्यकता नहीं होती है। नतीजतन, केंद्र के लगभग 30-32% कर ही वास्तव में राज्यों के साथ साझा किए जाते हैं।
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बालगोपाल ने कहा कि जीएसटी दरों को तय करने वाली समिति को आमतौर पर किसी भी नई व्यवस्था की योजना पर विस्तृत रिपोर्ट मिलती है, लेकिन हाल में दरों में जो बदलाव किए गए हैं उससे जुड़ी कोई रिपोर्ट इस समिति को नहीं मिली। उन्होंने बताया कि "मैं पिछले 3-4 वर्षों से जीएसटी दर तय करने वाली समिति में था। जब हम बैठक में बैठते थे, तो सभी विस्तृत अध्ययन रिपोर्ट आती थीं। इस बार, कोई रिपोर्ट नहीं आई, केवल केंद्र सरकार का सुझाव आया। इसलिए, विस्तृत विश्लेषण नहीं किया गया।"
उन्होंने आगे बताया कि "नुकसान कितना है, इसकी कोई स्पष्ट तस्वीर नहीं है। उनका कहना था कि, "हमने हिसाब-किताब लगाया कि केरल के लिए, हमें लगभग ₹8,000-10,000 करोड़ राजस्व का नुकसान होने वाला है। हर राज्य की अपनी गणना है। इसलिए, वास्तविक अखिल भारतीय तस्वीर फिलहाल उपलब्ध नहीं है।"
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