नई दिल्ली के प्रगति मैदान में 1 से 9 फरवरी तक हुए विश्व पुस्तक मेले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां से वहां तक छाए रहे। वह हर जगह मौजूद थे- उनकी फोटो वाले सेल्फी प्वाइंट में, पेवेलियन में, और किताबों के कवर पर तो वह थे ही। मेले का थीम था- हम भारत के लोग और बताया गया था कि यह संविधान के 75वें साल के जश्न का प्रतीक है। प्रधानमंत्री के बड़े-बड़े होर्डिंग तो लगे थे ही, नेशनल बुक ट्रस्ट के लगभग आधे हिस्से में प्रधानमंत्री मोदी की किताब परीक्षा पे चर्चा फैली थी। इसे ट्रस्ट ने 14 भाषाओं में अनुवाद कर छापा है। इस मेले से देश के पहले प्रधानमंत्री और संविधान निर्माण के आधार जवाहरलाल नेहरू नदारद थे। हो सकता है, नेहरू जी की कोई किताब वहां हो, पर दिखी शायद किसी को नहीं।
केवल एक साल में नेशनल बुक ट्रस्ट ने मोदी की या उन पर कई किताबें छापी हैं। 'बियॉन्ड बाउंड्रीः इंपैक्ट ऑफ मन की बात', 'इग्निसिटी कलेक्टिव गुडनेसः मन की बात' के साथ 'वर्क एथिक्स ऑफ नरेंद्र मोदीः अ जर्नी', 'इंडियाज सिंगापुर स्टोरी', 'लोकतंत्र के प्रहरी’, पुरुषार्थ के मंदिरः नरेन्द्र मोदीज क्वेस्ट फॉर नेशनल प्रोग्रेस' जैसी किताबों के साथ गोलवलकर पर भी किताबें वहां थीं।
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ट्रस्ट के निदेशक युवराज मलिक ने पिछले महज एक साल में तीन किताबें लिखी हैं और इन्हें ट्रस्ट ने ही प्रकाशित किया है। अंग्रेजी के साथ हिंदी में भी छपी हैं। ये हैंः खेल भावना में विजेता, भारत भाग्य विधाता और चंद्रयान। अब आप इसे भले ही परिवारवाद न मानें, पर ट्रस्ट ने अपने निदेशक की पत्नी दीपाली वशिष्ठ की भी एक किताब छापी हैः 'खाटू श्याम'।
ट्रस्ट की वेबसाइट पर बताया गया है कि निदेशक मलिक 'उत्साही पाठक' हैं जबकि उनकी पत्नी दीपाली को बीएलएफ (भारत लिट फेस्ट) में 'लेखक और निदेशक' बताया गया है। लगता है, इसकी वेबसाइट- https://bharatlitfest.com को अंतिम रूप देने का फिलवक्त काम चल रहा है, पर इस साल के मेले में इसका यह तीसरा कार्यकाल बताया गया।
कई लोगों ने बताया कि उन्होंने मेले के मद्देनजर पहले से कोई कार्यक्रम बनाया हुआ था, पर 'एक तरीके से' उनकी बांह मरोड़ी गई कि वे इन्हें बीएलएफ के बैनर तले आयोजित करें। मेले के थीम पेवेलियन में एक बड़े गायक की कविता की पुस्तक के लोकार्पण का कार्यक्रम एक बड़े प्रकाशक द्वारा आयोजित किया जाना था। जब सारी तैयारी हो गई, तो उन्हें कह दिया गया कि यह आयोजन करवाना है, तो इसे बीएलएफ के अंतर्गत करवाना होगा। बेचारे प्रकाशक को तैयार होना ही पड़ा।
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केंद्र सरकार में मानव संसाधन मंत्री रहे रमेश पोखरियाल निशंक की सिफारिश पर सेना में कार्यरत लेफ्टिनेंट कर्नल युवराज मलिक को नियमों को ताक पर रख कर निदेशक बनाया गया था। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे निशंक की आठ किताबें ट्रस्ट छाप चुका है। डीओपीटी (प्रधानमंत्री कार्यालय के अंतर्गत कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग) के नियमों के विरुद्ध मलिक पांच साल से अधिक समय से डेपुटेशन पर हैं। ट्रस्ट की वेबसाइट पर मलिक के परिचय में बताया गया है कि वह 'भारतीय सेना से डिपुटेशन पर' ट्रस्ट में हैं। ट्रस्ट निदेशक के तौर पर उन्होंने सरकार द्वारा नीति की घोषणा के 30 दिनों के अंदर एनईपी (राष्ट्रीय शिक्षा नीति) के अनुरूप स्कूली बच्चों के लिए दो भाषाओं में किताबें छापना सुनिश्चित किया है।
आजादी के 10 साल बाद 1 अगस्त 1957 को किताबों के प्रोन्नयन और प्रकाशन के लिए नेशनल बुक ट्रस्ट की स्थापना की गई थी। जवाहरलाल नेहरू के लिए इसका मकसद किफायती दाम में अच्छे साहित्य को प्रकाशित करना, उसे लोगों तक पहुंचना और लोगों को किताबों के प्रति प्रोत्साहित करना था। नेहरू जी ने कल्पना की थी कि एनबीटी नौकरशाही मुक्त संस्था होगी और इसीलिए इसे गांधी जी के न्यासी सिद्धांत के अनुरूप एक स्वतंत्र निकाय के रूप में स्थापित किया गया था। ट्रस्ट की पहली किताब ही बच्चों के लिए छपी और और आज भी गुणवत्तापूर्ण, वैज्ञानिक सोच और कम दाम की किताबों के लिए ट्रस्ट पहचाना जाता है।
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ट्रस्ट अन्य देशों में लगने वाले पुस्तक मेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करता रहा है। सन् 2007 में हुए कराची पुस्तक मेले में गए प्रतिनिधिमंडल में यह लेखक भी सदस्य था। इसका उद्घाटन सिंध विधानसभा के स्पीकर ने किया था और जर्मनी के काउंसुलेट मुख्य अतिथि थे। स्पीकर ने अपने भाषण में कम-से-कम तीन बार भारत की प्रगति और इसके कंप्यूटर इंजीनियर्स के कमाल का जिक्र किया।
बाद में इस लेखक के साथ अनौपचारिक बातचीत में जब उनसे पूछा गया कि हम दोनों देश एक साथ आजाद हुए तब आप क्यों पिछड़ गए, तो उन्होंने कहा कि आपके यहां नेहरू और उनकी दृष्टि थी और इसी वजह से यह सब अंतर है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में किताबों के लिए केवल एक विभाग है- पाकिस्तान बुक फाउंडेशन जबकि भारत में नेशनल बुक ट्रस्ट, एनसीईआरटी, साहित्य अकादमी और दर्जन भर अन्य विभाग हैं जो सरकार के बंधन से मुक्त हैं।
नेशनल बुक ट्रस्ट की यात्रा में कई बड़े लेखक-विचारक इसके अध्यक्ष और न्यासी मंडल के सदस्य हुए। सरकारें आती-जाती रहीं लेकिन किसी ने इसके कामकाज में दखलंदाजी नहीं की। न तो किसी किताब को रोकने की जरूरत हुई, न किसी किताब का अलग से प्रचार-प्रसार किया गया।
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ट्रस्ट ने कोई 55 भारतीय भाषाओं में 18 हजार से अधिक किताबें छापी हैं- यह प्रकाशन की दुनिया में संभवतः सबसे बड़ा ब्रांड है। अलग-अलग पाठक वर्ग के लिए अलग-अलग पुस्तकमालाएं हैं। खासकर बच्चों की किताबें तो ट्रस्ट की विशिष्ट पहचान रहीं। इस पुस्तकमाला का नाम पंडित नेहरू के देहावसान के बाद 'नेहरू बाल पुस्तकालय' रखा गया। इस श्रृंखला की किताबों पर गुलाब का फूल होता था जो इसकी पहचान था।
फिर भी, नेशनल बुक ट्रस्ट कभी भी नेहरू बुक ट्रस्ट नहीं बना। भले ही संस्थान की स्थापना नेहरू ने की, सन 90 तक नेहरू पर एक ही किताब संस्था ने छापी। यह तारा अली बेग की बच्चों के लिए नेहरू पर पतली-सी किताब थी। उसके बाद अर्जुन देव के संपादन में 'जवाहरलाल नेहरूः संघर्ष के दिन' किताब आई जिसमें नेहरू के चुनिंदा लेखन को संकलित किया गया था। साक्षरता अभियान से साक्षर बने प्रौढ़ लोगों के लिए 1996 में बनाई गई नवसाक्षर पुस्तकमाला के अंतर्गत देशराज गोयल की दो पतली-पतली किताबें आईं- 'बात जवाहरलाल की' और 'याद जवाहरलाल की'। उसके बाद सन 2005 में पी डी टंडन ने 'अविस्मरणीय नेहरू' शीर्षक से एक किताब युवाओं के लिए लिखी। इंदिरा गांधी पर इन्दर मल्होत्रा की किताब 2009 में आई और उसमें इंदिरा गांधी की कई जगह आलोचना भी है। ट्रस्ट की राजीव गांधी पर कोई किताब नहीं है।
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नरेंद्र मोदी की या उन पर लिखी किताबें ट्रस्ट छापता ही जा रहा है, उसके मद्देनजर यह सब याद किया जाना उचित ही है। कई दशक तक नेशनल बुक ट्रस्ट और उसके बाद चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट की किताबें बच्चों के लिए मानक बन कर बाजार में रहीं। न्यासी मंडल के सामने नेहरू के सपनों का 'बुक अस्पताल' रहा जिसके जरिये लोगों के मन-मिजाज की बेहतरी करना था।
सन 2014 के बाद से नेशनल बुक ट्रस्ट में सबसे बड़ा बदलाव तो यही हुआ है कि संस्थान में जहां भी जितनी जल्द संभव हो, नेहरू का नाम मिटा दिया जाए। शुरुआत में, 'नेहरू बाल पुस्तकालय' पुस्तकमाला के कवर पेज के लोगो से गुलाब के फूल को हटाया गया। फिर, हर साल 14 से 20 नवंबर तक देश के दूरस्थ अंचलों तक 'राष्ट्रीय पुस्तक सप्ताह' मनाया जाता था। इसके तहत छोटे-छोटे स्कूलों तक ट्रस्ट किताबों से जुड़ी गतिविधियों का फोल्डर, पोस्टर भेजता और सैकड़ों जगह किताबों की प्रदर्शनियां लगतीं। इस एक हफ्ते में औसतन सारे देश में 20 हजार आयोजन किताबों से जुड़े होते। सन 2015 के बाद ये आयोजन बंद कर दिए गए।
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ट्रस्ट का भवन 2008 में बना और इसका नाम नेहरू भवन रखा गया। पिछले तीन सालों से ट्रस्ट की स्टेशनरी, मतलब लेटर हेड, विजिटिंग कार्ड, वेबसाइट से 'नेहरू भवन' शब्द हटा दिया गया। फिर किताबों में छपने वाले पते से भी 'नेहरू भवन' शब्द हटा दिया गया। हाल ही में ट्रस्ट की सबसे लोकप्रिय पुस्तकमाला- 'नेहरू बाल पुस्तकालय' का भी नाम बदलकर 'नेशनल बाल पुस्तकालय' कर दिया ।
वर्ष 2024 में नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा सबसे पहले बच्चों की जो किताब छापी गईं, वह थी खाटू श्याम पर और उसके चतुर्थ कवर पर एक व्यक्ति की कटी गरदन लेकर खड़े व्यक्ति का चित्र है। दुनिया में कहीं भी आज बाल साहित्य में इस तरह के अमानवीय चित्र की अनुमति नहीं दी जाती।
पौराणिक और लोक कथाओं को बच्चों के लिए चुनते समय यह ध्यान दिया जाता है कि उसमें हिंसा या ताकत पाने के लिए कुटिलता का इस्तेमाल न हो। लेकिन जब उद्देश्य सिर्फ धार्मिकता फैलाना हो, तो क्या कुछ नहीं हो सकता। इसी तरह, चन्द्रयान अभियान पर अंग्रेजी में एक किताब आई है। इसके मेन और चौथे कवर पर किसी वैज्ञानिक की नहीं, नरेन्द्र मोदी की फोटो लगाई गई है। जाहिर है, किताब का उद्देश्य चन्द्रयान अभियान की जानकारी देने से ज्यादा प्रधानमंत्री का प्रचार करना भर है।
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